मैं सबसे छोटी होऊं: सुमित्रानंदन पंत

मैं सबसे छोटी होऊं: सुमित्रानंदन पंत की कविता

मैं सबसे छोटी होऊं: प्रस्तुत कविता के रचयिता सुमित्रानंदन पंत जी हैं। इस कविता का मुख्य केन्द्र एक छोटी बच्ची हैं। छोटी बच्ची चाहती है की उसका बचपन हमेशा ऐसे ही बना रहे। उसे उसकी माँ का प्रेम ऐसे ही मिलता रहे।

कविता में पन्त जी ने बाल सुलभ चेष्टाओं का सुंदर वर्णन किया है। इस कविता में सहज रूप में बताया गया है कि बच्चों को उनका बचपन कितना प्रिय होता है। माँ का प्यार, माँ का साथ तथा उसके आँचल की छाया को बच्चा छोड़ना नहीं चाहता। इस कविता में बालिका जानती है कि उसके बड़े होने पर बचपन के साथ-साथ और भी बहुत कुछ छिन जाएगा, इसलिए वह हमेशा छोटी ही बनी रहना चाहती है।

मैं सबसे छोटी होऊं: सुमित्रानंदन पंत

मैं सबसे छोटी होऊँ
तेरी गोदी में सोऊँ

तेरा आँचल पकड़-पकड़कर
फिरू सदा माँ तेरे साथ
कभी न छोड़ूँ तेरा हाथ

बड़ा बनाकर पहले हमको
तू पीछे छलती है माँ
हाथ पकड़ फिर सदा हमारे
साथ नहीं फिरती दिन-रात

अपने कर से खिला, धुला मुख
धूल पोंछ, सज्जित कर गात
थमा खिलौने, नहीं सुनाती
हमें सुखद परियों की बात

ऐसी बड़ी न होऊँ मैं
तेरा स्‍नेह न खोऊँ मैं
तेरे अंचल की छाया में
छिपी रहूँ निस्‍पृह, निर्भय
कहूँ दिखा दे चंद्रोदय

∼ ‘मैं सबसे छोटी होऊं‘ by सुमित्रानंदन पंत

सुमित्रानंदन पंत को ‘प्रकृति के सुकुमार कवि’ के रूप में भी जाना जाता है, उनका जन्म आज के उत्तराखण्ड के बागेश्वर ज़िले के कौसानी में 20 मई 1900 को हुआ। जन्म के कुछ ही घंटों बाद उनकी माँ परलोक सिधार गईं।  उनका लालन-पालन उनकी दादी ने किया। पंत जी का बचपन में गोसाईं दत्त नाम रखा गया था। प्रयाग में उच्च शिक्षा के दौरान 1921 के असहयोग आंदोलन में महात्मा गाँधी के बहिष्कार के आह्वान पर उन्होंने महाविद्यालय छोड़ दिया और हिंदी, संस्कृत, बांग्ला और अँग्रेज़ी भाषा-साहित्य के स्वाध्याय में लग गए।

‘युगांतर’, ‘स्वर्णकिरण’, ‘कला और बूढ़ा चाँद’, ‘सत्यकाम’, ‘मुक्ति यज्ञ’, ‘तारापथ’, ‘मानसी’, ‘युगवाणी’, ‘उत्तरा’, ‘रजतशिखर’, ‘शिल्पी’, ‘सौवर्ण’, ‘पतझड़’, ‘अवगुंठित’, ‘मेघनाद वध’ आदि उनके अन्य प्रमुख काव्य-संग्रह हैं। ‘चिदंबरा’ संग्रह का प्रकाशन 1958 में हुआ जिसमें 1937 से 1950 तक की रचनाओं का संचयन है। कविताओं के अतिरिक्त उन्होंने नाटक, उपन्यास, निबंध और अनुवाद में भी योगदान किया है।

उन्हें 1960 में ‘कला और बूढ़ा चाँद’ काव्य-संग्रह के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार से और 1968 में ‘चिदंबरा’ काव्य-संग्रह के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से अलंकृत किया और उनपर डाक टिकट जारी किया है।

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