जीवन की ही जय है - मैथिली शरण गुप्त

जीवन की ही जय है – मैथिली शरण गुप्त

मृषा मृत्यु का भय है
जीवन की ही जय है

जीव की जड़ जमा रहा है
नित नव वैभव कमा रहा है
पिता पुत्र में समा रहा है

यह आत्मा अक्षय है
जीवन की ही जय है

नया जन्म ही जग पाता है
मरण मूढ़-सा रह जाता है
एक बीज सौ उपजाता है

सृष्टा बड़ा सदय है
जीवन की ही जय है

जीवन पर सौ बार मरूँ मैं
क्या इस धन को गाड़ धरूँ मैं
यदि न उचित उपयोग करूँ मैं

तो फिर महाप्रलय है
जीवन की ही जय है

∼ मैथिली शरण गुप्त (राष्ट्र कवि)

शब्दार्थ:
मृषा ∼ व्यर्थ
अक्षय ∼ कम न होने वाला

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