Poems For Kids

Poetry for children: Our large assortment of poems for children include evergreen classics as well as new poems on a variety of themes. You will find original juvenile poetry about trees, animals, parties, school, friendship and many more subjects. We have short poems, long poems, funny poems, inspirational poems, poems about environment, poems you can recite

मेरा गाँव – किशोरी रमण टंडन

वो पनघट पे जमघट‚ वो सखियों की बातें वो सोने के दिन और चाँदी–सी रातें वो सावन की रिमझिम‚ वो बाग़ों के झूले वो गरमी का मौसम‚ हवा के बगूले वो गुड़िया के मेले‚ हज़ारों झमेले कभी हैं अकेले‚ कभी हैं दुकेले मुझे गाँव अपना बहुत याद आता। वो ढोलक की थापें‚ वो विरह वो कजरी वो बंसी की तानें‚ …

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विप्लव गान – बालकृष्ण शर्मा ‘नविन’

कवि‚ कुछ ऐसी तान सुनाओ— जिससे उथल–पुथल मच जाये! एक हिलोर इधर से आये— एक हिलोर उधर से आये; प्राणों के लाले पड़ जाएं त्राहि–त्राहि रव नभ में छाये‚ नाश और सत्यानाशों का धुआंधार जग में छा जाये‚ बरसे आग जलद् जल जायें‚ भस्मसात् भूधर हो जायें‚ पाप–पुण्य सदसद्भावों की धूल उड़ उठे दायें–बायें‚ नभ का वक्षःस्थल फट जाये‚ तारे …

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उतना तुम पर विश्वास बढ़ा – रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’

बाहर के आंधी पानी से मन का तूफान कहीं बढ़कर‚ बाहर के सब आघातों से‚ मन का अवसान कहीं बढ़कर‚ फिर भी मेरे मरते मन ने तुम तक उड़ने की गति चाही‚ तुमने अपनी लौ से मेरे सपनों की चंचलता दाही‚ इस अनदेखी लौ ने मेरी बुझती पूजा में रूप गढ़ा‚ जितनी तुम ने व्याकुलता दी उतना तुम पर विश्वास …

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याद आती रही – प्रभा ठाकुर

आंख रह–रह मेरी डबडबाती रही‚ हम भुलाते रहे याद आती रही! प्राण सुलगे‚ तो जैसे धुआं छा गया। नैन भीगे‚ ज्यों प्यासा कुआं पा गया। रोते–रोते कोई बात याद आ गई‚ अश्रु बहते रहे‚ मुसकुराती रही! सांझ की डाल पर सुगबुगाती हवा‚ फिर मुझे दृष्टि भरकर किसी ने छुआ‚ घूम कर देखती हूं‚ तो कोई नहीं‚ मेरी परछाई मुझको चिढ़ाती …

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कहने को घर अब भी है – वीरेंद्र मिश्र

कहने को घर अब भी है, पर उस से छूट गई कुछ चीजें। आते–जाते हवा कि जैसे अटक गई है बालकनी में सूंघ गया है सांप फर्श को दर्द बढ़ा छत की धमनी में हर जाने–आने वाले पर हंसती रहती हैं दहलीजें। कब आया कैसे आया पर यह बदलाव साफ़ है अब तो मौसम इतना हुआ बेरहम कुछ भी नहीं …

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सूरज डूब गया बल्ली भर – नरेंद्र शर्मा

सूरज डूब गया बल्ली भर– सागर के अथाह जल में। एक बाँस भर उग आया है– चांद, ताड़ के जंगल में। अगणित उंगली खोल, ताड़ के पत्र, चांदनी में डोले, ऐसा लगा, ताड़ का जंगल सोया रजत–छत्र खोले कौन कहे, मन कहाँ-कहाँ हो आया, आज एक पल में। बनता मन का मुकुर इंदु, जो मौन गगन में ही रहता, बनता …

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ज्योति कलश छलके – नरेंद्र शर्मा

ज्योति कलश छलके हुए गुलाबी लाल सुनहरे रंग दल बादल के ज्योति कलश छलके। घर आंगन बन उपवन उपवन करती ज्योति अमृत से सिंचन मंगल घट ढलके ज्योति कलश छलके। पात पात बिरवा हरियाला धरती का मुख हुआ उजाला सच सपने कल के ज्योति कलश छलके। ऊषा ने आंचल फैलाया फैली सुख की शीतल छाया नीचे आंगन के ज्योति कलश …

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कमरे में धूप – कुंवर नारायण

हवा और दरवाजों में बहस होती रही दीवारें सुनती रहीं। धूप चुपचाप एक कुरसी पर बैठी किरणों के ऊन का स्वैटर बुनती रही। सहसा किसी बात पर बिगड़कर हवा ने दरवाजे को तड़ से एक थप्पड़ जड़ दिया। खिड़कियाँ गरज उठीं‚ अखबार उठ कर खड़ा हो गया किताबें मुँह बाए देखती रहीं पानी से भरी सुराही फर्श पर टूट पड़ी …

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क्या वह नहीं होगा – कुंवर नारायण

क्या फिर वही होगा जिसका हमें डर है? क्या वह नहीं होगा जिसकी हमें आशा थी? क्या हम उसी तरह बिकते रहेंगे बाजारों में अपनी मूर्खताओं के गुलाम? क्या वे खरीद ले जाएंगे हमारे बच्चों को दूर देशों में अपना भविष्य बनवाने के लिये? क्या वे फिर हमसे उसी तरह लूट ले जाएंगे हमारा सोना हमें दिखलाकर कांच के चमकते …

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नीम के फूल – कुंवर नारायण

एक कड़वी–मीठी औषधीय गंध से भर उठता था घर जब आँगन के नीम में फूल आते। साबुन के बुलबुलों–से हवा में उड़ते हुए सफ़ेद छोटे–छोटे फूल दो–एक माँ के बालों में उलझे रह जाते जब की तुलसी घर पर जल चढ़ाकर आँगन से लौटती। अजीब सी बात है मैंने उन फूलों को जब भी सोचा बहुवचन में सोचा उन्हें कुम्हलाते …

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