शिव द्रोण मंदिर शिवबाड़ी अम्बोटा, गगरेट, ऊना जिला, हिमाचल प्रदेश

शिव द्रोण मंदिर शिवबाड़ी अम्बोटा, गगरेट, ऊना जिला, हिमाचल प्रदेश

कैलाश पर्वत को जहां भगवान शिव का वास कहा जाता है वहीं हिमाचल राजा की बेटी से उनके विवाह के चलते हिमाचल का नाम भी भगवान शिव के साथ आदर से लिया जाता है। यही वजह है कि हिमाचल प्रदेश में भगवान शिव के ऐसे कई स्थान हैं जिनके साथ भगवान शिव से संबंधित कोई न कोई घटना जुड़ी है।

यहां स्थित भगवान शिव के मंदिरों में शिव भक्तों की इतनी आस्था है कि देश के कोने-कोने से शिव भक्त यहां आकर नतमस्तक होना नहीं भूलते। जब मौका महा शिवरात्रि का हो तो आस्था के इन केंद्रों में विशाल जनसमूह उमड़ना स्वाभाविक है। इनमें से ही भगवान शिव का एक अति मनमोहक स्थल है शिव द्रोण मंदिर शिवबाड़ी अम्बोटा।

हर साल महा शिवरात्रि पर्व पर यहां शिव भक्तों का उत्साह देखने लायक होता है। सोमभद्रा नदी के किनारे जंगल में स्थित भगवान शिव का यह स्थान अति रमणीक है। मान्यता है कि किसी समय यह जंगल गुरु द्रोणाचार्य की नगरी हुआ करता था और यहीं पर पांडवों ने गुरु द्रोणाचार्य से धनुर्विद्या के गुर सीखे। इस मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। दंत कथा के अनुसार गुरु द्रोणाचार्य प्रतिदिन कैलाश पर्वत पर शिव जी की आराधना करने जाया करते थे। उनकी एक पुत्री थी जिसका नाम जज्याति था।

उसने पिता से पूछा कि वह प्रतिदिन कैलाश पर्वत पर क्या करने जाते हैं तो गुरु द्रोणाचार्य ने कहा कि वह प्रतिदिन पर्वत पर शिव की आराधाना करने जाते हैं। जज्याति भी एक दिन उनके साथ जाने की जिद करने लगी। गुरु द्रोणाचार्य ने कहा कि वह अभी छोटी है इसलिए वह घर पर ही शिव की आराधना करें। जज्याति शिवबाड़ी में ही मिट्टी का शिवलिंग बना कर भगवान शिव की आराधना करने लग पड़ी। लोभ रहित बालिका की निस्वार्थ तपस्या देख भगवान शिव बालक के रूप में रोजाना उसके पास आने व उसके साथ खेलने लगे। जज्याति ने यह बात अपने पिता को बताई।

अगले दिन गुरु द्रोणाचार्य कैलाश पर्वत पर न जाकर वहीं पास में छिप कर बैठ गए। जैसे ही वह बालक जज्याति के साथ खेलने पहुंचा तो गुरु द्रोणाचार्य उस बालक के प्रकाश को देख कर समझ गए कि यह तो साक्षात भगवान शिव हैं। गुरु द्रोणाचार्य बालक के चरणों में गिर गए और भगवान ने साक्षात उन्हें दर्शन दे दिए। भगवान ने कहा कि यह बच्ची उनको सच्ची श्रद्धा से बुलाती थी इसलिए वह यहां पर आ जाते थे। जब जज्याति को इस बात का पता चला तो उसकी खुशी का कोई ठिकाना न रहा।

जज्याति ने भगवान शिव से वहीं रहने की जिद कर डाली। उसकी जिद पर भगवान शिव ने स्वयं वहां पिंडी की स्थापना की और वचन दिया कि हर वर्ष बैसाखी के दूसरे शनिवार यहां पर विशाल मेला लगा करेगा और उस दिन वह इस स्थान पर विराजमान रहा करेंगे। तत्पश्चात इस मंदिर की स्थापना हुई। बैसाखी के बाद आने वाले दूसरे शनिवार को वह दिन माना जाता है जब भगवान शिव पूरा दिन यहां रह कर भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं।

क्या हैं मंदिर की विशेषताएं

इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग की यह विशेषता है कि यह धरती में धंसा हुआ है। शिवबाड़ी के चारों ओर चार कुओं की स्थापना की गई है। इस जंगल की लकड़ी का उपयोग भी केवल मुर्दे जलाने के लिए किया जाता है। जो भी इस जंगल की लकड़ी का उपयोग अन्य कार्यों के लिए करने की कोशिश करता है उसे अनिष्टता का सामना करना पड़ता है।

यहां स्थित शिवलिंग की पूरी परिक्रमा ली जाती है जब कि आम तौर पर शिवलिंग की आधी परिक्रमा ही ली जाती है। यदि क्षेत्र में बारिश न हो तो नीचे स्थित कुएं में से गांव वाले पानी भर कर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं जब यह पानी शिवलिंग से बहता हुआ नीचे स्वां नदी में जा मिलता है तो बारिश हो जाती है। आज भी लोग बारिश न होने पर ऐसा करते हैं। उक्त कुआं 12 माह पानी से लबालब रहता है।

सिद्ध-महात्माओं की तपस्थली है शिवबाड़ी

शिवबाड़ी गुरु द्रोणाचार्य सहित कई सिद्ध-महात्माओं की तपस्थली रही है। कई महात्माओं की समाधियां आज भी यहां पर स्थित हैं। इन सिद्ध-महात्माओं में से एक थे महात्मा बलदेव गिरि जी। कहा जाता है कि शिवबाड़ी में पहले भूत-प्रेतों का वास था। बलदेव गिरि जी ने यहां पर घोर तप करके इस शिवबाड़ी को अपने मंत्रों से कील दिया था। महा शिवरात्रि व बैसाखी पर तो इस मंदिर में लाखों की तादाद में शिव भक्त पहुंच कर पूजा-अर्चना करते हैं। इस मंदिर से आज तक कोई भी खाली हाथ नहीं लौटा है।

Check Also

World Liver Day: Information, Cleansing Tips, Functions & Diseases

World Liver Day: It is observed on April 19 to spread awareness about the diseases …