कोणार्क सूर्य मंदिर, पुरी ज़िला, उड़ीसा, भारत

कोणार्क सूर्य मंदिर, पुरी ज़िला, उड़ीसा, भारत

कोणार्क सूर्य मंदिर भारत के ओड़िशा के पुरी जिले में समुद्र तट पर पुरी शहर से लगभग 35 किलोमीटर (22 मील) उत्तर पूर्व में कोणार्क में एक 13 वीं शताब्दी C.E. (वर्ष 1250) सूर्य मंदिर है। मंदिर का श्रेय पूर्वी गंगवंश के राजा प्रथम नरसिंह देव को दिया जाता है। सन् 1984 में UNESCO ने इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी है।

भारतीय सांस्कृतिक विरासत के लिए इसके महत्व को दर्शाने के लिए भारतीय 10 रुपये का नोट के पीछे कोणार्क सूर्य मंदिर को दर्शाया गया है।

Name: कोणार्क सूर्य मंदिर (Konark Sun Temple)
Location: Konark, Puri district, Odisha, India
Deity: Lord Sun (Surya)
Affiliation: Hinduism
Style: Kalinga
Creator: Narasingha Deva I: Gajapati Langula Narasingha Deva I was an Eastern Ganga monarch and a warrior of the early medieval Odisha region who reigned from 1238 CE to 1264 CE. He defeated the Muslim forces of Bengal who constantly threatened the Eastern Ganga dynasty’s rule over his kingdom of Kalinga (ancient Odisha) from the times of his father Anangabhima Deva III. He was the first king from Kalinga and one of the few rulers in India who took the offensive against the Islamic expansion over India by Turko-Afghan invaders of Eastern India. His father had successfully defended his kingdom against the Turko-Afghan rulers of Bengal and crossed into Rarh, Gauda and Varendra in Bengal chasing the invaders on backfoot. He became the dominant ruler of the peninsula by defeating the Turko-Afgan, Gouda, and the powerful monarch of the south kakatiya Dynasty king Ganapati Deva, and was one of the most powerful Hindu rulers in India. He also built the Konark temple to commemorate his victories over the Muslims as well as other temples and the largest fort complex of Eastern India at Raibania in Balasore.He also built famous Varaha Lakshmi Narasimha Temple at Simhachalam, Andhra Pradesh. The Kendupatana plates of his grandson Narasingha Deva II mention that Sitadevi, the queen of Narasingha Deva I was the daughter of the Paramara king of Malwa.
Site Area: 10.62 ha (26.2 acres)
Festivals: Chandrabhaga Melan
Completed In: 13th century C.E

उड़ीसा प्रांत में स्थित कोणार्क भारत की विश्व प्रसिद्ध धरोहर है। UNESCO ने भी ऐतिहासिक पुरातन धरोहरों में इसे सम्मिलित कर रखा है। अपनी शिल्पकला, स्थापत्य कला, मूर्तकला, अद्भुत नक्काशी तथा सजीव मैथुन दृश्यों के लिए प्रसिद्ध कोणार्क में सूर्य मंदिर का अस्तित्व है। वैसे तो सूर्य भगवान शक्तिशाली देवताओं में शुमार होते हैं मगर कुष्ठ रोग के निवारण के लिए तथा शनि की पीड़ा से मुक्ति पाने के लिए अनादिकाल से सूर्य उपासना एक महत्वपूर्ण कर्म रहा है। भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को कुष्ठ रोग हो गया था। कुष्ठ रोग निवारण के लिए तब भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं साम्ब को सूर्य उपासना का निर्देश दिया था।

ऐसा माना जाता है कि तब साम्ब ने सूर्य भगवान की मूर्ति स्थापित की थी जो आज जगन्नाथपुरी में सुरक्षित है। इसी प्रकार से राजा लांगुला नृसिंह देव को भी कुष्ठ रोग हो गया था जिसके निवारण के लिए धर्मवेत्ताओं ने उन्हें सूर्य मंदिर की स्थापना करके कुष्ठ निवारण का उपाय बताया था। धर्मवेत्ताओं की सलाह पर राजा ने उड़ीसा के एकांत सागर तट पर भगवान सूर्य का ऐसा भव्य मंदिर बनाया वैसा आज तक कोई नहीं बना। कोणार्क जगन्नाथपुरी व भुवनेश्वर से ज्यादा दूरी पर नहीं है। केवल कुछ समय में ही उसका सफर तय किया जा सकता है।

एक तो समुद्री किनारा, दूसरा चंद्रभागा नदी का निकट होना कोणार्क के सूर्य मंदिर के लिए वरदान सिद्ध हुआ। प्राचीन समय में माघ शुक्ला सप्तमी के दिन चंद्रभागा नदी में स्नान करना पुण्यदायी माना जाता था। मान्यता आज भी कायम है। इन्हीं कारणों सहित अन्य कई कारणों से कोणार्क का सूर्य मंदिर एक समय में सौर सम्प्रदाय का महत्वपूर्ण केंद्र हो गया था। 13वीं शताब्दी में काले ग्रेनाइट पत्थरों से बने कोणार्क के सूर्य मंदिर को ‘ब्लैक पैगोडा’ भी कहा जाता है। रबिन्द्रनाथ टैगोर ने इस मंदिर के विषय में यह कहा था कि कोणार्क का सूर्य मंदिर वह स्थान है जहां पत्थरों की भाषा, मनुष्यों की भाषा से बढ़कर है।

कोणार्क मंदिर में कोई मूर्त नहीं है, यह इस मंदिर की अनूठी विशेषता है। यह मंदिर चारों ओर से पक्के घेरे के भीतर है जो सरोवर की तरह जान पड़ता है। वस्तुत: यह विशाल रथ मंदिर है जिसमें रथ पर आरूढ़ सूर्य भगवान की कल्पना की गई है। यह मंदिर 1200 शिल्पियों की कड़ी मेहनत से 12 साल में लाखों रुपयों के खर्चे के बाद निर्मित हुआ। कोणार्क मंदिर में 3 आकार के सूर्य देवता है जो चारों ओर की बाहरी दीवारों पर अवस्थित हैं।

मंदिर के दक्षिण की ओर सूर्य देवता को उदित सूर्य देवता के रूप में उकेरा गया है जिसकी ऊंचाई 8.3 फुट है। पश्चिम की ओर से सूर्य देवता को दोपहर के सूर्य रूप में माना गया है जिसकी ऊंचाई 9.6 फुट है। उत्तर की ओर जो सूर्य देवता उकेरे गए हैं उनकी कल्पना अस्त सूर्य के रूप में की गई है जिनकी ऊंचाई 3.49 मीटर है। कोणार्क सूर्य मंदिर के रथ में 24 पहिए हैं। हर पहिए में आठ आरा हैं। इनका व्यास 9.9 फुट है। 24 पहिए बनाने के पीछे समय गतिचक्र का हिसाब रखा गया है। हिंदू महीनों में एक वर्ष के दौरान बारह महीनों में 24 पक्ष होते हैं जिनमें बारह कृष्ण पक्ष और बारह शुक्ल पक्ष। समय की वार्षिक चक्र गति का इसी प्रकार से ध्यान रखते हुए सूर्य मंदिर का निर्माण कोणार्क में करवाया गया।

कोणार्क के सूर्य मंदिर में 7 घोड़े हैं तथा सारथी का स्थान भी बना है जो बहुत ऊंचा है। मंदिर का जो शिखर भाग था वह तो आज लुप्त है। मुगल बादशाह जहांगीर ने कोणार्क के सूर्य मंदिर को तोडऩे की भरपूर कोशिश की थी। समय अंतराल पर यह मंदिर भूमि में भी धंस गया था, कारण यह कि यह भी कल्पना है कि केवल 3 किलोमीटर की दूरी पर ही समुद्र स्थित है। शायद भयंकर बाढ़ ने मंदिर को गर्त में धंसा दिया हो?

पुरातत्व विभाग की खोज से इस मंदिर का अस्तित्व पुन: उभरा और धंसे हुए पूरे मंदिर को सावधानीपूर्वक बाहर निकाला गया। आज के वर्तमान स्वरूप में शिखर का भाग टूटा हुआ है। श्री मंदिर तो है ही नहीं केवल सम्मुख के भोग मंडप का कुछ भाग खड़ा है। पूर्व समय में सूर्य पत्नी संज्ञा का भी मंदिर था जो भग्र अवस्था में है। कोणार्क के मंदिर की शुरूआत दो शेरों से होती है जो आक्रामक रूप में दो हाथियों को अपने नीचे दबाए हुए हैं। इसी तरह दक्षिण की ओर अलंकार से भूषित दो भड़कीले योद्धा घोड़े हैं जिसमें प्रत्येक घोड़े की लम्बाई 10 फुट चौड़ाई 7 फुट है। इन घोड़ों को उड़ीसा सरकार ने अपनी सरकारी मोहर के रूप में स्वीकार किया हुआ है। कोणार्क के इस सूर्य मंदिर में तीन ओर ऊंचे-ऊंचे प्रवेश द्वार हैं जो चौकोर परकोटे से घिरे हैं। मुख्य द्वार पूर्व दिशा में था जिसके ठीक सामने समुद्र से सूर्य उदय होता था। यह विशाल सूर्य मंदिर नाट्य मंडप, जग मंडप और गर्भ गृह आदि 3 भागों में विभाजित है।

इस विशाल किलेनुमा मंदिर की दीवारों पर देव किन्नर, गंधर्व, अप्सराएं, नृत्यांगनाएं, पशु, प्रेमी युगल, संगीतकार, बेल-बूटे, फूल-पत्तियां जीव-जन्तु आदि को इस भांति उकेरा गया है कि लोग देखते ही रह जाते हैं। इन विविध आकृतियों में छैनी, हथौड़ी व अन्य औजारों को इस भांति कार्य में लिया गया है कि कहीं भी कोई त्रुटि नहीं निकाल सकता। खजुराहो के बाद कोणार्क का सूर्य मंदिर ही विश्व की ऐसी इमारत है जहां शृंगार रस को सजीव मैथुनिक रूप में उकेरा जाता है। ऐसा माना जाता है कि कोणार्क मंदिर के कुछ आकर्षक हिस्से पुरी के जगन्नाथ मंदिर में अवस्थित हैं। कुछ हिस्से राजा द्वारा बनवाए गए किले में काम में ले लिए गए तथा कुछ हिस्से स्थानीय लोगों द्वारा उपयोग में लिए गए। उड़ीसा के रेतीले लाल पत्थरों तथा काले ग्रेनाइट पत्थरों से बना कोणार्क का सूर्य मंदिर का मुख्य भाग 227 फुट ऊंचा है। ऐसा माना जाता है कि सूर्य मंदिर के शीर्ष पर स्थित लोडस्टोन पत्थर चुंबकीय प्रभाव रखता है जिसके कारण समुद्र में पहले कई जलयान क्षतिग्रस्त भी हो चुके हैं।

‘कोणार्क सूर्य मंदिर’ पर पड़ती है सूर्य की पहली किरण

ओडिशा स्थित प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर करीब 800 साल पुराना है।इस मंदिर का निर्माण 1250 C.E. में गांग वंश के राजा नरसिंहदेव प्रथम ने कराया था। उन्होंने 2 साल के पूरे राजस्व को मंदिर के निर्माण में लगा दिया था।

बलुआ पत्थर और ग्रेनाइट से बने इस मंदिर की लोकप्रियता पूरी दुनिया में है, जिसे देखने सभी देशों से सैलानी आते हैं। इस मंदिर का
निर्माण इस तरह से किया गया है कि सूर्य की पहली किरण मंदिर के प्रवेश द्वार पर पड़ती है। यह मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है।

मंदिर कलिंग शैली में निर्मित है और इसकी संरचना रथ के आकार की है। स्थ में बारह जोड़ी पहिए हैं। एक पहिए का व्यास करीब 3 मीटर है। इन पहियों को ‘धूप घड़ी’ भी कहते हैं, क्योंकि ये वक्त बताने का काम करते हैं।

इस रथ में सात घोड़े हैं, जिनको सप्ताह के सात दिनों का प्रतीक माना जाता है। सूर्य मंदिर के प्रवेश द्वार पर दो मूर्तियां हैं, जिसमें सिंह के नीचे हाथी है और हाथी के नीचे मानव शरीर है। मान्यता है कि इस मंदिर के करीब 2 किलोमीटर उत्तर में चंद्रभागा नदी बहती थी, जो अब विलुप्त हो गई है।

यह मंदिर जगन्नाथपुरी से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसे 1984 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया था।

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