भगवद चिन्तन

भगवद चिन्तन

  • सज्जन लोग जल्दी थक जाते हैं। हमारा जन्म ही इसलिए हुआ है ताकि हम संसार को सुंदर बना सकें। कुछ सृजन कर सकें, कुछ समाज को दे सकें। जब तक सफल ना हो जाओ हार मत मानना, सक्रिय रहना। सेवा से ही परमात्मा मिलते हैं।
  • आजकल अक्षरज्ञान और भाषाज्ञान को ही लोग सच्चा ज्ञान मानने लगे हैं, जबकि इस प्रकार का ज्ञान मनुष्य का बाहरी आवरण है।
  • सच्चा ज्ञान हमारे आंतरिक गुणों, प्रेम, करुणा और दया की भांति मौलिकता से पूर्ण है। जब इन सभी मौलिक गुणों का विकास होने लगे तब साधक ज्ञान प्राप्ति के पथ पर अग्रसर है।
  • सच्चे ज्ञान के माध्यम से हममें आचार-विचार, लोक-मर्यादा और सकारात्मक चिंतन पद्धति का विकास होता।
  • आप जैसे हैं निश्चित हैं की आपको दूसरे भी वैसे ही दिखाई देंगे। जो व्यक्ति भी अधिकतर निंदा या चुगली मे फंसा हुआ हैं उसे भीतर ईर्ष्या और द्वेष ही पल रहे हैं।उसके भीतरी दोषो ने इस प्रकार से उसकी दृष्टि बना दी हैं की उसे कुछ अच्छा दिखाई ही नही दे रहा। आप एक बात की तरफ ध्यान देना की आदमी तब दूसरे की बुराई का शोर ज्यादा मचाता हैं जब उसमे किसी बुराई, दोष की अधिकता होती हैं वह दूसरे के दोषो को दिखाने के लिए शोर नही मचाता बल्कि अपने ऐबो, अवगुणों पर पर्दा डालने के लिए शोर मचाता हैं। आपको लाख समझाया जाये की किसी मे से कोई गुण देखो परन्तु जब तक आप के भीतर कोई अच्छाई नही होगी तो आपको किसी मे अच्छाई,गुण दिखाई ही नही देंगे और फिर किसी मे गुण देखना भी तो एक गुण हैं एक कला हैं। अगर गुण देखने की कला होगी तो तभी तो गुण नज़र आएंगे।
  • जो बुराई में आपका साथ दे वो आपका मित्र नहीं हो सकता। किसी का साथ देना ही मित्रता का गुण नहीं है अपितु किसी को गलत कार्य करने से रोकना यह एक श्रेष्ठ मित्र का गुण है।
  • सही काम में किसी का साथ दो ना दो यह अलग बात है मगर किसी के बुरे कार्यों में साथ देना यह अवश्य गलत बात है। अगर आपके मित्र आपको गलत कार्यों से रोकते हैं तो समझ लेना आप दुनियाँ के खुशनसीब लोगों में से एक हैं।
  • बुरे समय में अवश्य मित्र का साथ दो, बुरे कार्यों में कदापि नहीं। कष्ट में अवश्य मित्र का साथ दो कष्ट पहुँचाने में कदापि नहीं। दुःख के क्षणों में अवश्य मित्र का साथ दो, किसी को दुखी करने के लिए कदापि नहीं।
  • मित्र का अर्थ है कि जो आपके लिए भले ही रुचिकर ना हो मगर हितकर अवश्य हो। जिसे आपका वित्त प्यारा न हो, हित प्यारा हो समझ लेना वो आपका सच्चा मित्र है।
  • आज के समय में एक अच्छे या बुरे की परिभाषा उसके कार्यों से नहीं अपितु निजी विचारों के आधार पर होती है। अलग-अलग विचारों के आधार पर कुछ लोग जिसे अच्छा कहने में लगे हैं, उसी को कुछ लोग बुरा भी कह रहे हैं।
  • एक झूठे आदमी के लिए हम तब अच्छे हैं जब हम उसकी हाँ में हाँ मिलाकर उसका साथ दें और उसी के लिए तब हम बड़े बुरे बन जाते हैं जब हम झूठ में उसका साथ देना बन्द कर देते हैं।
  • हम एक गलत काम करने वाले आदमी की नजरों में तब तक बुरे हैं जब तक कि हम गलत कार्यों में उसका साथ नहीं दे देते। हम जिस दिन से उसका साथ देना शुरू कर देंगे उसी दिन से उसकी नजरों में हमारी परिभाषा एक अच्छे आदमी की हो जाएगी।
  • अत: आपकी अच्छाई भी कई लोगों को रास नहीं आयेगी और बुराई का तो कहना ही क्या? इसलिए जब आप “क्या कहेंगे लोग” पर ध्यान ही नहीं देंगे तो फिर “क्यों कहेंगे लोग? आपका काम है सही रास्ते पर चलना, बेहिचक, बेपरवाह।
  • सत्संगी आदमी की एक पहचान यह भी हैं की वह किसी भी गुण दोष, अपना पराया, शत्रु मित्र, अच्छा बुरा का भाव न रखकर सभी मे ईशवर दर्शन का भाव ही रखता हैं।यानि कौन अपना और पराया हैं?
  • जब तक लेनी देनी हैं तब तक चाहकर या न चाहकर भी सब साथ रहते हैं परन्तु जब लेनी देनी समाप्त हो जाती हैं फिर चाहकर भी एक दूसरे के साथ कोई नही रह सकता। सुग्रीव अपने भाई बाली को अपना शत्रु अपना काल मानता था परन्तु जब राम जी से मिला तो सुग्रीव न कहा बाली मेरा सबसे बड़ा हितेषी हैं क्योंकि अगर बाली ने मुझे भगाया न होता तो आज मुझे राम कैसे मिलते?
  • सज्जन व्यक्ति की दृष्टि ही बदल जाती हैं फिर उसको फायदे होते नही बल्कि जो भी काम होता हैं उसे उसमे से ही फायदे नज़र आने शुरू हो जाते हैं। केवल नज़र बदलनी हैं।
  • अच्छा काम करना अवश्य बहुत अच्छी बात है मगर अच्छे काम का अभिमान करना बहुत बुरी बात है। नाम के लिए काम करना आपको पुन्य और प्रशंसा तो नहीं दिलाता मगर अभिमानी जरूर बना देता है।
  • अगर आप किसी के लिए कुछ अच्छा कर रहे हो तो समझ लेना कि परमात्मा आपके पुण्यों में वृद्धि करना चाहता है। जितना आपसे बन सके उतना करते रहो ताकि हर दिन आपको कुछ नये पुण्यों का फल प्राप्त होता रहे।
  • शास्त्र कहते हैं जिस दिन आपके मन में यह गलत फहमी पल जाती है कि मेरी वजह से किसी का भला हुआ या कोई काम सिर्फ मेरे कारण हुआ, तभी आपके अन्दर अभिमान प्रवेश कर जाता है। यही अभिमान आपके पतन का कारण भी बन जाता है।
  • कुछ अच्छा तो हर पल जरूर करते रहो पर ये सब प्रभु की कृपा के कारण हो रहा है, ऐसा सोचते रहोगे तो कार्य तो अच्छा होगा ही, आप भी अच्छे बने रहोगे।

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