हवाएँ ना जाने – परमानन्द श्रीवास्तव

हवाएँ
ना जाने कहाँ ले जाएँ।

यह हँसी का छोर उजला
यह चमक नीली
कहाँ ले जाए तुम्हारी
आँख सपनीली

चमकता आकाश–जल हो
चाँद प्यारा हो
फूल–जैसा तन, सुरभि सा
मन तुम्हारा हो

महकते वन हों
नदी जैसी चमकती चाँदनी हो
स्वप्न डूबे जंगलों में
गन्ध–डूबी यामिनी हो

एक अनजानी नियति से
बँधी जो सारी दिशाएँ
न जाने
कहाँ ले जाएँ

∼ परमानन्द श्रीवास्तव

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