अपनी इज्जत न दाँव पर रखिये - राजीव कृष्ण सक्सेना

अपनी इज्जत न दाँव पर रखिये – राजीव कृष्ण सक्सेना

अपनी इज्जत न दाँव पर रखिये
वरना नीलाम सरे–आम करी जाएगी
जो जमा–पूँजी कमाई थी सभी जीवन में
एक ही चूक से मिट्टी में बदल जाएगी

जिनको ख़लती ही रही आपकी औकात सदा
वही औकात की बोली लगाने आएंगे
और औकात को बेख़ौफ जमीं पर रख कर
ठाहकों संग फ़कत ठोकरें लगाएंगे

जो अभी तक लगाए बैठे थे चेहरों पे नक़ाब
उनके खूँख़ार इरादों को मिलेंगे मंज़र
जो अभी तक बड़ी शिद्दत से मिला करते थे
उनके हाथों में नज़र आएंगे पैने ख़ंजर

राह में दलदलें मिलेंगी बहुत
हर कदम देखभाल कर रखिये
कहीं कीचड़ से लिपट जाए ना
अपना दामन संभाल कर चलिये

क्या हुआ‚ कैसे हुआ‚ और हुआ क्यों यह सब
इसकी तह तक न पहुँचने में समझदारी है
जो नज़र आते हैं दिलकश फरेब के पर्दे
उनके पीछे बड़ी ज़ालिम सी गुनहगारी

कभी भूले से भी बेपर्द न होने पाएं
वरना संबल सभी रेतीले नज़र आएंगे
सभी जज़बात जो जीने को जरूरी थे कभी
बेहिचक ताश के पत्तों से बिखर जाएंगे

∼ राजीव कृष्ण सक्सेना

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