अभी न सीखो प्यार - धर्मवीर भारती

अभी न सीखो प्यार – धर्मवीर भारती

यह पान फूल सा मृदुल बदन
बच्चों की जिद सा अल्हड़ मन
तुम अभी सुकोमल‚ बहुत सुकोमल‚ अभी न सीखो प्यार!

कुंजों की छाया में झिलमिल
झरते हैं चांदी के निर्झर
निर्झर से उठते बुदबुद पर
नाचा करतीं परियां हिलमिल
उन परियों से भी कहीं अधिक
हलका–फुलका लहराता तन!
तुम अभी सुकोमल‚ बहुत सुकोमल‚ अभी न सीखो प्यार!

तुम जा सकतीं नभ पार अभी
लेकर बादल की मृदुल तरी
बिजुरी की नव चमचम चुनरी
से कर सकतीं सिंगार अभी
क्यों बांध रही सीमाओं में
यह धूप सदृश खिलता यौवन?
तुम अभी सुकोमल‚ बहुत सुकोमल‚ अभी न सीखो प्यार!

अब तक तो छाया है खुमार
रेशम की सलज निगाहों पर
हैं अब तक कांपे नहीं अधर
पाकर अधरों का मृदुल भार
सपनों की आदी ये पलकें
कैसे सह पाएंगी चुम्बन?

तुम अभी सुकोमल‚ बहुत सुकोमल‚ अभी न सीखो प्यार!
यह पान फूल सा मृदुल बदन‚
बच्चों की जिद सा अल्हड़ मन!

∼ धर्मवीर भारती

Check Also

National Creators Award: Categories, Winners and Recognition

National Creators Award: Categories, Winners and Recognition

National Creators Award (NCA): Creators Awards 2024 took place on 08th March 2024, Prime minister …