महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन: पुण्यतिथि 26 अप्रैल

महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन: 22 दिसम्बर – राष्ट्रीय गणित दिवस

महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन ऐसे महापुरुषों में से एक थे, जिनके पास न तो धन था और न ही कोई सुख-सुविधा, परन्तु अपने ज्ञान से उन्होंने विश्व के महानतम गणिवज्ञों को आश्चर्यचकित कर दिया। आज भी उनके गणितीय सूत्र नवीन अनुसंधानों के लिए उपयोग किए जाते हैं।

त्रिकोणमिति (ट्रिग्नोमेट्री / Trigonometry) गणित की वह शाखा है जिसमें त्रिभुज और त्रिभुजों से बनने वाले बहुभुजों का अध्ययन होता है। त्रिकोणमिति का शब्दिक अर्थ है ‘त्रिभुज का मापन‘। अर्थात् त्रिभुज की भुजाओं का मापन अतः त्रिकोणमिति गणित का वह भाग है जिसमें त्रिभुज कि भुजाओं के मापन का अध्ययन किया जाता है। त्रिकोणमिति में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है समकोण त्रिभुज का अध्ययन। त्रिभुजों और बहुभुजों की भुजाओं की लम्बाई और दो भुजाओं के बीच के कोणों का अध्ययन करने का मुख्य आधार यह है कि समकोण त्रिभुज की किन्ही दो भुजाओं (आधार, लम्ब व कर्ण) का अनुपात उस त्रिभुज के कोणों के मान पर निर्भर करता है। त्रिकोणमिति का ज्यामिति की प्रसिद्ध बौधायन प्रमेय (पाइथागोरस प्रमेय) से गहरा सम्बन्ध है।

13 की उम्र में हल की ट्रिग्नोमेट्री (Trigonometry)

22 December, 1887 में तमिलनाडु के Erode नामक स्थान पर इनका जन्म Tamil Brahmin Iyengar परिवार में हुआ था। इनके पिता कपड़े की एक दुकान पर एक छोटे से क्लर्क थे। धन के अभाव में उचित शिक्षा को सुविधाएं इन्हें नहीं मिल पाईं।

महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन‘ जब वह केवल 13 वर्ष के थे, तभी उन्होंने एस. एल. लोनी (Sydney Luxton Loney) द्वारा रचित विश्व प्रसिद्ध त्रिकोणमिति (Trigonometry) की किताब को हल कर डाला था। इतना ही नहीं, मात्र 15 वर्ष में उन्हें जार्ज शूब्रिज कार (George Shoobridge Carr) द्वारा रचित गणित की एक प्रसिद्ध पुस्तक ‘सयनोपोसिस ऑफ एलिमेंट्री रिजल्ट्स इन प्योर एंड एप्लाइड मैथमेटिक्स (Synopsis of elementary results in pure mathematics)’ प्राप्त हुई। इसमें लगभग 6 हजार प्रमेयों (theorems) का संकलन था। उन्होंने इन सभी को सिद्ध करके देखा और इन्हीं के आधार पर नए थिअरम भी विकसित किए।

जब अन्य विषयों में पास न हो सके महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन

सन्‌ 1903 में उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय (Madras University) से छात्रवृत्ति प्राप्त को लेकिन अगले वर्ष ही यह छात्रवृत्ति उससे छीन ली गई क्योंकि वह दूसरे विषयों में पास न हो पाए। इसका कारण था कि वह गणित को ही अधिक समय देते थे और इस कारण अन्य विषय उपेक्षित रह जाते थे।

उनके परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने से उनके पिता को गहरा धक्का लगा। जब उनके पिता ने देखा कि यह लड़का सदा ही संख्याओं से खिलवाड़ करता रहता है तो उन्होंने सोचा कि शायद यह पागल हो गया है।

उसे ठीक करने के लिए पिता ने रामानुजन की शादी करने का निश्चय किया और जो लड़की उनके लिए पत्नी के रूप में चुनी गई, वह थी एक 8 वर्षीय कन्या जानकी। इसके पश्चात उन्हें नौकरी को तलाश थी। बहुत प्रयास करने पर उन्हें 25 रुपए महीने की क्लर्क की नौकरी मिली।

अंत में कुछ अध्यापकों और शिक्षा-शास्त्रियों ने उनके कार्य से प्रभावित होकर उन्हें छात्रवृत्ति देने का फैसला किया और मई 1913 को मद्रास विश्वविद्यालय ने उन्हें 75 रुपए महीने की छात्रवृत्ति प्रदान की।

प्रो. हार्डी ने पहचानी प्रतिभा

इन्हीं दिनों रामानुजन ने अपने शोध कार्यों से संबंधित एक महत्वपूर्ण पत्र कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के विख्यात गणितज्ञ जी. एच. हार्डी (Godfrey Harold Hardy) को लिखा। इस पत्र में उन्होंने अपने 120 theorems प्रो. हार्डी को भेजे थे। हार्डी और उनके सहयोगियों को इस कार्य को गहराई परखने में देर न लगी। उनकी मदद से 17 मार्च, 1914 को रामनुजन ब्रिटेन के लिए समुद्री जहाज द्वारा रवाना हो गए।

उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अपने आपको एक अजनबी की तरह महसूस किया। तमाम कठिनाइयों के बावजूद भी वे गणित के अनुसंधान कार्यों में लगे रहे। प्रो. हार्डी नेउनमें एक अभूतपूर्व प्रतिभा देखी। उन्होंने संख्याओं से संबंधित अनेक कार्य किए।

इंगलैड में मिले कई सम्मान

उनके कार्यों के लिए 28 फरवरी, 1918 को उन्हें रॉयल सोसाइटी का फैलो (Fellow of the Royal Society) घोषित किया गया। यह सम्मान पाने वाले वह दूसरे भारतीय थे। फिर उन्हें ट्रिनिटी कॉलेज का फैलो चुना गया। इस सम्मान को पाने वाले वह पहले भारतीय थे।

अल्पायु में चल बसे महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन

जब रामानुजन इंगलैंड में अपने अनुसंधान कार्यों में लगे हुए थे, तभी उन्हें टी.बी. (Tuberculosis) का रोग हो गया। इसके बाद उन्हें भारत वापस भेज दिया गया इस अवधि में भी वह अंकों के साथ कुछ न कुछ खिलवाड़ करते रहते थे। अंतत: 26 अप्रैल, 1920 को मात्र 33 वर्ष की अल्पायु में ही भारत के इस महान गणितज्ञ का मद्रास (Chennai) के चैटपैट नामक स्थान पर देहांत हो गया।

‘रामानुजन पुरस्कार’ की स्थापना

उनकी याद में ही भारत में गणित के लिए ‘रामानुजन पुरस्कार‘ को स्थापना की गई और रामानुजन इंस्टीच्यूट बनाया गया।

Ramanujan Prize for Young Mathematicians:

  • Sponsored by: International Centre for Theoretical Physics (ICTP), Department of Science and Technology of the Government of India (DST), International Mathematical Union (IMU)
  • Eligibility: “less than 45 years of age on 31 December of the year of the award and has conducted outstanding research in developing countries”
  • Reward(s): Lecture and US$15,000 to support the research of the recipient

अबूझ पहेली हैं महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के अधिकांश लेख

रामानुजन के अधिकांश लेख अभी भी वैज्ञानिकों के लिए अबूझ पहेली बने हुएहैं। उनका एक पुराना रजिस्टर, जिस पर वह अपने प्रमेय (theorem) और सूत्र लिखा करते थे, 1976 में अचानक ट्रिनिटी कॉलेज के पुस्तकालय में मिला था।

करीब 100 पन्नों का यह रजिस्टर आज भी वैज्ञानिकों के लिए एक पहेली बना हुआ है। इस रजिस्टर को बाद में रामानुजन की नोट बुक के नाम से जाना गया। मुंबई के टाटा अनुसंधान संस्थान (Tata Institute Of Fundamental Research) द्वारा इसका प्रकाशन भी किया गया है। उनके शोधों की तरह उनकी गणित में काम करने की शैली भी विचित्र थी। वह कभी-कभी आधी रात को सोते से जाग कर स्लेट पर गणित से सूत्र लिखने लगते थे और फिर सो जाते थे इससे ऐसा लगता था कि वह सपने में भी गणित के प्रश्न हल कर रहे हों।

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