खर्राटे: खर्राटे के कारण, लक्षण, प्रभाव और नियंत्रण करने की विधि

खर्राटे: खर्राटों के कारण, लक्षण, प्रभाव और नियंत्रण करने की विधि

संसार में लगभग 5% व्यक्ति निद्रा दोष / खर्राटे से पीड़ित हैं। इनमें 80% पीड़ितों को इस बात का पता नहीं है कि वे निद्रा दोष से ग्रस्त हैं। महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों की संख्या अधिक होती है।

प्राय: सोते समय कुछ व्यक्ति श्वास के साथ तेज, तीखी, कठोर, छरछरी आवाज और कम्पन निकालते हैं, तो उसको खर्राटे कहा जाता है। कई बार तो खर्राटे की आवाज हल्की होती है, लेकिन अधिकतर आवाज इतनी तेज और कर्कश होती है कि निकट में सो रहे अन्य लोगों की नींद उड़ा देती है। खर्राटे की आवाज मुँह या नाक से किसी भी समय आ सकती है। खर्राटे में श्वसन मार्ग से हवा के आते-जाते समय किसी भी कारण से कोई अवरोध पैदा हो जाता है। खर्राटे में उस अवरोध के कारण श्वास की मात्रा कम हो जाती है। लेकिन Sleep apnea (Common condition in which your breathing stops and restarts many times while you sleep) में श्वास मार्ग थोड़े समय के लिए पूर्णतया रुक जाता है और व्यक्ति घबराकर उठ बैठता है। दोनों में यह अन्तर है।

कारण: अधिकतर व्यक्तियों में खर्राटेआने के निम्नलिखित मुख्य कारण हैं:

  1. सोते समय श्वास में अवरोध होना: गले के पीछे वाले भाग के संकरे हो जाने पर ऑक्सीजन संकरे स्थान से होती हुई जाती है, जिससे निकट के टिशु वाइब्रेट होते हैं। इसी कंपन की आवाज को खर्राटे कहते हैं।
  2. पीठ के बल सीधा लेटकर सोना: इस स्थिति में जीभ पीछे की ओर हो जाती है, मृदुतालु (soft palate) के पीछे यूब्यूला (Uvula) होता  है, जो पिलपिला लटका हुआ मांस-सा होता है, उस पर जाकर लग जाती है और श्वास मार्ग को संकरा कर देती है। इससे श्वास लेने और छोड़ने में बाधा आती है और श्वास के साथ खर्राटे आने लगते हैं।
  3. नीचे वाले जबड़े का छोटा होना: इससे जीभ पीछे की ओर हो जाती है और श्वास नली में अवरोध उत्पन्न कर देती है। बची संकरी जगह से श्वास का दबाव बनने से आस-पास के गले के तंतुओं पर कम्पन से खरराटे की आवाज निकलती है।
  4. नाक के वायु मार्ग में अवरोध: नाक की हड्डी टेढ़ी होना और उसमें मांस बढ़ा होने से भी श्वास के दबाव से आवाज उत्पन्न होती है।
  5. जुकाम या अन्य एलर्जी के कारण बलगम का जमाव भी खर्राटों का कारण बन सकता है।
  6. अन्य कारण: वजन बढ़ना, शराब, धूम्रपान आदि नशीले पदार्थों का सेवन, अव्यवस्थित दिनचर्या, श्वास नली संकरी और कमजोर होना, गर्दन का छोटा होना, किसी वायरल रोग के पश्चात्‌ या किसी अन्य दवाई का सेवन करने से मांसपेशियों में कमजोरी होने के पश्चात्‌ भी खर्राट की समस्या पीछे लग सकती है। इस प्रकार नाक के वायुमार्ग में रुकावट, मांसपेशियों की कमजोरी, गले के ऊतकों में भारीपन, पैलेट या यूब्यूला का आकार बढ़ना और नरम होना आदि से श्वास मार्ग में अवरोध से उत्पन्न कम्पन से खर्राटि बनते हैं। लगभग 20% वयस्क व्यक्ति खर्राटों से प्रभावित हैं, जिसमें 60% 40 वर्ष से ऊपर की आयु के होते हैं।

खर्राटे के लक्षण:

  1. सोने के समय नाक या गले से तेज आवाज से श्वास लेना और छोड़ना।
  2. दिन में अधिक नींद आना, ऊंघना, आलस्य एवं सुस्ती होना। दिन में झपकियां आती हैं, जिससे वाहन चलाते समय दुर्घटना होने का डर रहता है।
  3. गले में खराश।
  4. नींद में बेचैनी तथा कम नींद आना।
  5. कई बार तेज आवाज आना, जिससे निकट में सो रहे सभी व्यक्तियों की नींद में बाधा उत्पन्न होना।
  6. श्वास लेने में बाधा उत्पन्न होना।
  7. बार-बार नींद से जाग जाना।
  8. दिन में क्रोध आना तथा निराश होना।
  9. थकान का अनुभव करना।

प्रभाव:

खर्राटे लेना एक साधारण-सी व्याकुलता है। प्रायः लोग इस समस्या का कारण थकान को मान कर उस पर विशेष ध्यान नहीं देते। कभी-भी सभी खर्राटे लेते हैं और ये अपने आप ठीक भी हो जाते हैं। लेकिन 45% पुरुष तथा 30% महिलाओं में खर्राटे स्थायी रोग है। जो स्थायी रूप से लंबे समय से अत्यधिक तेज खर्राटे लेते हैं, वे विभिन्‍न रोगों से ग्रसित हो जाते हैं। जैसे ऑक्सीजन का स्तर कम होने से हृदय रोग, स्ट्रोक का डर, रक्तचाप, संधिवात, मधुमेह, मुँह खोल कर सोने से फेफड़ों के रोग, नींद पूरी न होने से आलस्य, थकान, चिड़चिड़ापन तथा व्यक्ति के हॉर्मोन पर प्रभाव पड़ने से मोटापा।

खर्राटे नियंत्रण करने की विधि:

रोगी को अपनी जीवन-शैली या दिनचर्या में परिवर्तन करना आवश्यक है।

  1. अधिक पानी पीना: इससे आपकी नासिका की श्लेष्मिक क्रिया, साइनस, रक्त वाहिकाओं की क्रिया सुचारू रूप से होती रहेगी।
  2. सोने की विधि: प्रतिदिन पूरी नींद लें तथा सोने की आदतों में सुधार करें। करवट के बल सोएं। इससे श्वसन नली में वायु मार्ग संकुचित नहीं होगा और श्वास ठीक से ले सकेंगे।
  3. मोटापा कम करें: माँस बढ़ जाने से श्वास नली संकरी हो जाती है। शरीर पर अधिक चर्बी या मोटापा इसका कारण है।
  4. नेति क्रिया करें: सूत्रनेति तथा जलनेति से साइनस रोग नहीं होगा तथा नासिका से श्वास का आवागमन ठीक रहेगा।
  5. सादा और सुपाच्य भोजन: इससे वात, पित्त, कफ का संतुलन ठीक बनता है। गरिष्ठ भोजन से कब्ज बनती है, जिससे रोग पैदा होते हैं।
  6. योगाभ्यास: प्रतिदिन आसन, प्राणायाम का अभ्यास करें। श्वास नली और गले पर प्रभाव डालने वाले सभी आसन लाभकारी हैं। जैसे उष्ट्रासन, भुजंगासन, धनुरासन, मत्स्यासन, सिंहासन, सेतुबंधासन, पवनमुक्तासन, हलासन, सर्वांगासन आदि तथा भ्रामरी, उज्जायी, कपालभाति प्राणायाम एवं जालंधरबंध आदि लाभकारी हैं।
  7. मुद्राएं: खेचरी मुद्रा, विपरीतकरणी मुद्रा, सूर्य मुद्रा, उदान मुद्रा, थायरॉयड मुद्रा आदि लाभकारी हैं।
  8. गले का स्पन्दन: संगीत का अभ्यास, ओउम्‌ ध्वनि का उच्चारण तथा जीभ का व्यायाम करें।
  9. कुछ मामलों में रोगी को मास्क (Nozal Strips) दिया जाए, जो गले के अन्दर वायु मार्ग को खुला रखे। ये वायु को गले के अन्दर पहुँचाने में सहायक रहेगा।
  10. धूम्रपान तथा अन्य नशा न करें: नशीली चीजों के उपयोग से मांसपेशियां फैलने लगती हैं और खर्राटों का कारण बनती हैं।
  11. पर्याप्त नींद लें: वयस्कों को 7-8 घंटे, किशोरों को 9-10 घंटे तथा प्री-स्कूल की आयु के बच्चों को 10-12 घंटे की नींद आवश्यक है।

इन रोगों की किसी भी पद्धति में दवाई नहीं है।

बाजार में आजकल अनेकों उपकरण खर्राटे तथा Sleep apnea से छुटकारा दिलाने के लिए बिकते हैं। कुछ लोगों को इनसे मदद भी मिलती है। लेकिन स्थाई लाभ के लिये भोजन, योगाभ्यास, सावधानियां तथा ऊपर वर्णित क्रियाओं का अभ्यास करें।

~ Author: ‘Rai Singh Chauhan‘ Yog Manjari (46/3 – October-December 2023)

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