Poems In Hindi

बच्चों की हिन्दी कविताएं — 4to40 का हिन्दी कविताओ का संग्रह | Hindi Poems for Kids — A collection of Hindi poems for children. पढ़िए कुछ मजेदार, चुलबुली, नन्ही और बड़ी हिंदी कविताएँ. इस संग्रह में आप को बच्चो और बड़ो के लिए ढेर सारी कविताएँ मिलेंगी.

प्रथम प्रणय – धर्मवीर भारती

पहला दृष्टिकोणः यों कथा–कहानी–उपन्यास में कुछ भी हो इस अधकचरे मन के पहले आकर्षण को कोई भी याद नहीं रखता चाहे मैं हूं‚ चाहे तुम हो! कड़वा नैराश्य‚ विकलता‚ घुटती बेचैनी धीरे–धीरे दब जाती है‚ परिवार‚ गृहस्थी‚ रोजी–धंधा‚ राजनीति अखबार सुबह‚ संध्या को पत्नी का आँचल मन पर छाया कर लेते हैं जीवन की यह विराट चक्की हर–एक नोक को …

Read More »

टूटा पहिया – धर्मवीर भारती

मैं रथ का टूटा हुआ पहिया हूँ लेकिन मुझे फेंको मत ! क्या जाने कब इस दुरूह चक्रव्यूह में अक्षौहिणी सेनाओं को चुनौती देता हुआ कोई दुस्साहसी अभिमन्यु आकर घिर जाय ! अपने पक्ष को असत्य जानते हुए भी बड़े-बड़े महारथी अकेली निहत्थी आवाज़ को अपने ब्रह्मास्त्रों से कुचल देना चाहें तब मैं रथ का टूटा हुआ पहिया उसके हाथों …

Read More »

फागुन के दिन की एक अनुभूति – धर्मवीर भारती

फागुन के सूखे दिन कस्बे के स्टेशन की धूल भरी राह बड़ी सूनी सी ट्रेन गुजर जाने के बाद पके खेतों पर ख़ामोशी पहले से और हुई दूनी सी आंधी के पत्तों से अनगिन तोते जैसे टूट गिरे लाइन पर, मेड़ों पर, पुलिया आस पास सब कुछ निस्तब्ध शांत मूर्छित सा अकस्मात्… चौकन्नी लोखरिया उछली और तेज़ी से तार फांद …

Read More »

नवम्बर की दोपहर – धर्मवीर भारती

अपने हलके-फुलके उड़ते स्पर्शों से मुझको छू जाती है जार्जेट के पीले पल्ले–सी यह दोपहर नवम्बर की। आयीं गयीं ऋतुएँ पर वर्षों से ऐसी दोपहर नहीं आयी जो कंवारेपन के कच्चे छल्ले–सी इस मन की उंगली पर कस जाये और फिर कसी ही रहे नित प्रति बसी ही रहे आँखों, बातों में, गीतों में, आलिंगन में, घायल फूलों की माला–सी …

Read More »

मुनादी: धर्मवीर भारती

ख़लक खुदा का, मुलुक बाश्शा का हुकुम शहर कोतवाल का… हर ख़ासो–आम को आगह किया जाता है कि ख़बरदार रहें और अपने अपने किवाड़ों को अंदर से कुंडी चढ़ा कर बंद कर लें गिरा लें खिड़कियों के परदे और बच्चों को बाहर सड़क पर न भेजें क्योंकि एक बहत्तर बरस का बूढ़ा आदमी अपनी काँपती कमज़ोर आवाज में सड़कों पर …

Read More »

नाम बड़े दर्शन छोटे – काका हाथरसी

नाम-रूप के भेद पर कभी किया है गौर? नाम मिला कुछ और तो, शक्ल-अक्ल कुछ और। शक्ल-अक्ल कुछ और, नैनसुख देखे काने, बाबू सुंदरलाल बनाए ऐंचकताने। कहं ‘काका’ कवि, दयारामजी मारे मच्छर, विद्याधर को भैंस बराबर काला अक्षर। मुंशी चंदालाल का तारकोल-सा रूप, श्यामलाल का रंग है, जैसे खिलती धूप। जैसे खिलती धूप, सजे बुश्शर्ट हैण्ट में- ज्ञानचंद छ्ह बार …

Read More »

तेली कौ ब्याह – काका हाथरसी

भोलू तेली गाँव में, करै तेल की सेल गली-गली फेरी करै, ‘तेल लेऊ जी तेल’ ‘तेल लेऊ जी तेल’, कड़कड़ी ऐसी बोली बिजुरी तड़कै अथवा छूट रही हो गोली कहँ काका कवि कछुक दिना सन्नाटौ छायौ एक साल तक तेली नहीं गाँव में आयो। मिल्यौ अचानक एक दिन, मरियल बा की चाल काया ढीली पिलपिली, पिचके दोऊ गाल पिचके दोऊ …

Read More »

काका के उपदेश – काका हाथरसी

आइये प्रिय भक्तगण उपदेश कुछ सुन लीजिये पढ़ चुके हैं बहुत पोथी आज कुछा गुन लीजिये हाथ में हो गोमुखी माला सदा हिलती रहे नम्र ऊपर से बनें भीतर छुरी चलती रहे नगर से बाहर बगीचे– में बना लें झेपड़ी दीप जैसी देह चमके सीप जैसी खोपड़ी तर्क करने के लिये आ जाए कोई सामने खुल न जाए पोल इस– …

Read More »

क्या करूँ संवेदना ले कर तुम्हारी – हरिवंश राय बच्चन

क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी? क्या करूँ? मैं दुखी जब-जब हुआ संवेदना तुमने दिखाई, मैं कृतज्ञ हुआ हमेशा, रीति दोनो ने निभाई, किन्तु इस आभार का अब हो उठा है बोझ भारी; क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी? क्या करूँ? एक भी उच्छ्वास मेरा हो सका किस दिन तुम्हारा? उस नयन से बह सकी कब इस नयन की अश्रु-धारा? सत्य को …

Read More »

ख़य्याम की मधुशाला (भाग एक) – हरिवंश राय बच्चन

चलो चल कर बैठें उस ठौर, बिछी जिस थल मखमल सी घास, जहाँ जा शस्य श्यामला भूमि, धवल मरु के बैठी है पास। घनी सिर पर तरुवर की डाल, हरी पाँवों के नीचे घास, बग़ल में मधु मदिरा का पात्र, सामने रोटी के दो ग्रास, सरस कविता की पुस्तक हाथ, और सब के ऊपर तुम प्राण, गा रही छेड़ सुरीली …

Read More »