Rajgopal Singh

1 जुलाई 1947 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर ज़िले में जन्मे राजगोपाल सिंह उन चंद शाइरों में से एक हैं जिन्होंने ग़ज़ल की दुनिया में अपने अलग रंग से अपनी अलग पहचान क़ायम की है। राजगोपाल सिंह की ग़ज़लियात और दोहे जितने सहज हैं उतना ही उनका व्यवहार भी सरल और सादा था। दिल्ली जैसे महानगर में भी शांति की तलाश करते हुए एक कोने में नजफगढ़ में घर बनाकर इस समय आप ख़ुद की तलाश करते रहे। आई बी से सेवानिवृत्त होने के बाद वे जीवन के अंतिम समय तक पूर्णरूपेण काव्य साधना में संलग्न रहे। 6 अप्रैल 2014 को देह में बढ़ी मिठास (डायबिटीज़) ने आपकी मीठी आवाज़ को हमेशा-हमेशा के लिये ख़ामोश कर दिया।

बाकी रहा – राजगोपाल सिंह

बाकी रहा – राजगोपाल सिंह

कुछ न कुछ तो उसके – मेरे दरमियाँ बाकी रहा चोट तो भर ही गई लेकिन निशाँ बाकी रहा गाँव भर की धूप तो हँस कर उठा लेता था वो कट गया पीपल अगर तो क्या वहाँ बाकी रहा आग ने बस्ती जला डाली मगर हैरत है ये किस तरह बस्ती में मुखिया का मकाँ बाकी रहा खुश न हो …

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