कल्पेश्वर महादेव मंदिर चमोली जिला, उत्तराखंड

कल्पेश्वर महादेव मंदिर चमोली जिला, उत्तराखंड

कल्पेश्वर महादेव मंदिर चमोली: उत्तराखंड में चमोली जिले के हेलंग से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पंचकेदार में पांचवां केदार- कल्पेश्वर। उर्गम घाटी में स्थित कल्पेश्वर मंदिर समुद्र तल से लगभग 2134 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है तथा पंचकेदार में से एकमात्र है जो श्रद्धालुओं के लिए सालभर खुला रहता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भोलेनाथ ने यहां स्थितकुंड से समुद्र मंथन के लिए जल पात्र में जल दिया, जिससे चौदह रत्नों की उत्पत्ति हुई।

‘कल्पेश्वर महादेव मंदिर चमोली’ जहां होती है शिव जी के ‘जटा रूप’ की पूजा

Name: कल्पेश्वर महादेव मंदिर – Kalpeshwar Mahadev Temple
Location: GCXX+VJ8, Urgam, Chamoli  District, Uttarakhand 246443 India
Deity: Lord Shiva
Festivals: Maha Shivaratri
Affiliation: Hinduism
Creator: Pandavas (according to legend)
Architecture Type: North-Indian Himalayan Architecture

किंवदंती यह भी है कि दुर्वासा ऋषि ने यहां स्थित कल्पवृक्ष के नीचे भगवान शिव की तपस्या की थी, जिस कारण इसे कल्पेश्वर नाम दिया गया है। कल्पेश्वर को कल्पनाथ नाम से भी जानाजाता है । यहां हर वर्ष शिवरात्रि को विशेष मेला भी लगता है।

मंदिर में भगवान शिव के जटा रूप की पूजा की जाती है। एक विशालकाय चट्टान के नीचे छोटी -सी गुफा में स्थित मंदिर के गर्भगृह की यूं तो फोटो खींचना मना है लेकिन नेत्ररूपी कैमरे से देखने पर उस जगह की दिव्यता व भव्यता का एहसास होता है।

मंदिर के अंदर जिस जगह भगवान शिव के जटा रूप की पूजा होती है, उसके चारों ओर लिपटी रुद्राक्ष की माला शिव का जाप सा करती प्रतीत होती है। चांदी का छत्र जटाओं को छांव देता-सा मालूम होता है। वहीं एक ओर भगवान गणेश व दूसरी ओर जटाओं से लिपटे नाग ऐसे प्रतीत होते हैं मानों भगवान शिव के प्रहरी हों। मंदिर के प्रांगण में भगवान शिव से जुड़े नंदी, त्रिशूल, डमरू, भस्म, शिवलिंग इत्यादि  की पूजा होती है। प्रांगण में स्थित दो छोटे मंदिरों में से एक में कैलाश पर्वत पर विराजमान भगवान शिव-पार्वती व उनके बगल में बैठे गणेश जी की पूजा होती है, वहीं दूसरे मंदिर में हनुमान जी को पूजा-अर्चना की जाती है। सावन के महीने में हजारों श्रद्धालु कल्पेश्वर मंदिर में दर्शनार्थ आते हैं।

इतिहास व मान्यताएं: कल्पेश्वर महादेव मंदिर चमोली

माना जाता है कि यह मंदिर पांडवों द्वारा बनाया गया था। यह वह स्थान है, जहां महाभारत के युद्ध के पश्चात विजयी पांडवों ने युद्ध में अपने संबंधियों की हत्या करने की आत्मग्लानि से पीडि़त होकर इस पाप से मुक्ति पाने के लिए पांडव भगवान शिव के दर्शन करने यात्रा पर निकल पड़े। पांडव पहले काशी पहुंचे। शिव के आशीर्वाद की कामना की, परंतु भगवान शिव उन्हें अपने दर्शन देने इच्छुक नही थे। पांडवों को कुलहत्या का दोषी मानकर शिव पांडवों को दर्शन नही देना चाहते थे। पांडव केदार की ओर मुड़ गए। पांडवों को आते देख भगवान शंकर गुप्तकाशी में अंतर्ध्यान हो गए। उसके बाद कुछ दूर जाकर महादेव ने दर्शन न देने की इच्छा से बैल का रूप धारण किया व अन्य पशुओं के साथ जाकर मिल गए। कुंती पुत्र भीम ने विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर पैर फैला दिए, जिसके नीचे से अन्य पशु तो निकल गए, पर शिव रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नही हुए। भीम बैल पर झपट पड़े, लेकिन शिव रूपी बैल दलदली भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की पीठ को पकड़ लिया। भगवान शिव की बैल की पीठ की आकृति पिंड रूप में केदारनाथ में पूजी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान शिव बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए तो उनके धड़ का ऊपरी भाग काठमांडू में प्रकट हुआ, जहां पर पशुपतिनाथ का मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, नाभि मदमहेश्वर में, मुख रुद्रनाथ में तथा जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुई। यह पांच स्थल पंचकेदार के नाम से जाने जाते है।

कैसे पहुंचें:

कल्पेश्वर के लिए हेलंग से उर्गम गांव तक का रास्ता वन-वे व ठीक-ठाक सा है। निर्माण के बावजूद भूस्खलन के कारण सड़क जगह-जगह टूटी हुई है। सावन के महीने में बारिश के कारण सड़क जगह-जगह पर उखड़ी हुई मिलने के कारण खड़ी चढ़ाई में गाड़ी चलाने में दिक्कत आ सकती है, इसलिए कभी भी यदि खुद के वाहन से कल्पेश्वर आएं तो ध्यान रखें कि वाहन इतना पावरफुल हो कि पहाड़ की खड़ी चढ़ाई पर चढ़ सके।

हेलंग से ट्रैकर बुक कर भी कल्पेश्वर तक पहुंचा जा सकता है। पंचकेदार में कल्पेश्वर अकेला केदार है जिस तक मोटरमार्ग द्वारा पहुंचना संभव है।

प्रकृति की गोद में स्थित इस मंदिर के पास पहुंचते ही एक विशाल झरना श्रद्धालुओं का स्वागत करता है। दूर से देखने पर लगता है मानो झरने के नीचे शिवलिंग हो और जल रूपी दूध से उसका अभिषेक किया जा रहा हो। मंदिर के ठीक सामने से कल्पगंगा नदी बहती है, जिसे हिरणावती भी कहा जाता है। नदी के ठीक ऊपर झूला पुल मंदिर हेतु प्रवेश द्वार का काम करता है।

पूरी तरह से शांत उर्गम घाटी में पहाड़ से गिरता झरना और पुल के नीचे बहती कल्पगंगा नदी एक ऐसा जल-संगीत बिखेरे रहती हैं, मानो श्रद्धालुओं से कह रही हों कि इस जगह की शांति को बनाए रखें और केवल प्रकृति के संगीत को सुनें।

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