पंजाब केसरी लाला लाजपत राय

पंजाब केसरी लाला लाजपत राय: क्रांतिकारी समाज सुधारक

नेहरू से मतभेद, कॉन्ग्रेस में बढ़ता मुस्लिम तुष्टीकरण… ‘पंजाब केसरी’ ने ऐसे बढ़ाया हिन्दू महासभा को

पंजाब केसरी लाला लाजपत राय कॉन्ग्रेस में दिन-प्रतिदिन बढ़ने वाली मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति से अप्रसन्नता अनुभव करते थे, इसलिए स्वामी श्रद्धानन्द तथा मदनमोहन मालवीय के सहयोग से उन्होंने ‘हिन्दू महासभा’ के कार्य को आगे बढ़ाया।

“मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी।”

ये लाला लाजपत राय के आखिरी शब्द थे और यही भारत में अंग्रेजी हुकूमत के अंत की शुरुआत भी।

एक दौर था जब ब्रिटिश साम्राज्य में सूर्य कभी अस्त नहीं होता था। पूरी दुनिया में अंग्रेजों की तूती बोलती थी। सर्वशक्तिमान ब्रिटिश राज के खिलाफ 1857 में भारत में हुए बहुत बड़े सशस्त्र आंदोलन को बेहद निर्ममता के साथ कुचल दिया गया था। अंग्रेज भी यह मानते थे अब उन्हें भारत से कोई हिला भी नहीं सकता। फिर साल 1928 में भारत में एक शख्स की ब्रिटिश पुलिस की लाठियों से मौत हुई। और इस मौत ने ब्रिटिश साम्राज्य की चूलों को हिला दिया।

30 अक्टूबर 1928 को पंजाब में महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय पर बरसीं ब्रिटिश लाठियाँ दुनिया के सबसे बड़े साम्राज्य के ताबूत में आखिरी कील साबित हुईं। 17 नवंबर 1928 को हुई उनकी मौत के 20 साल के भीतर ही भारत को आजादी मिल गई।

1857 की क्रांति के बाद ब्रिटिश राज ने बड़ी चतुराई के साथ अपनी जड़ों को भारत में मजबूत किया था। लेकिन इन जड़ों को खोदकर भारतीय राष्ट्रवाद की परिभाषा को गढ़ने में जिन महान स्वतंत्रता सेनानियों ने भूमिका निभाई थी, उनमें लाल लाजपत राय अगली कतार के नेता थे।

एक साथ निभाई कई भूमिकाएँ

पंजाब के मोंगा जिले में 28 जनवरी 1865 को उर्दू के अध्यापक के घर में जन्मे लाला लाजपत राय बचपन से ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। एक ही जीवन में उन्होंने विचारक, बैंकर, लेखक और स्वतंत्रता सेनानी की भूमिकाओं को बखूबी निभाया था। पिता के तबादले के साथ हिसार पहुँचे लाला लाजपत राय ने शुरुआत के दिनों में वकालत भी की। स्वामी दयानंद सरस्वती के साथ जुड़कर उन्होंने पंजाब में आर्य समाज को स्थापित करने में बड़ी भूमिका निभाई।

लाजपत राय एक बुद्धिमान बैंकर भी थे। उन्होंने ही देश को पहला स्वदेशी बैंक दिया। पंजाब नेशनल बैंक (PNB) की स्थापना की पहल लाजपत राय ने ही की थी। एक शिक्षाविद के तौर पर उन्होंने दयानंद एंग्लो वैदिक विद्यालयों का भी प्रसार किया। आज देश भर में डीएवी के नाम से जिन विद्यालयों को हम देखते हैं, उनके अस्तित्व में आने का बहुत बड़ा कारण लाला लाजपत राय ही थे।

कॉन्ग्रेस में गरम दल के नेता थे लाला लाजपत राय

वह देश के उन अग्रणी नेताओं में से थे, जो ब्रिटिश राज के खिलाफ बेखौफ होकर सामने आए और देशवासियों के बीच राष्ट्रवाद की भावना का प्रसार किया। उस दौर में भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस किसी भी मसले पर सरकार के साथ सीधे टकराव से बचती थी। मगर उन्होंने लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चंद्र पाल के साथ मिलकर कॉन्ग्रेस के भीतर ‘गरम दल’ की मौजूदगी दर्ज कराई। इन तीनों को उस वक्त ‘लाल-बाल-पाल’ की त्रिमूर्ति के तौर पर जाना जाता था।

ब्रिटिश राज के विरोध के चलते उनको बर्मा की जेल में भी भेजा गया। जेल से आकर वह अमेरिका भी गए, जहाँ सामाजिक अध्ययन करने के बाद वापस आकर भारत में गाँधी जी के पहले बड़े अभियान यानी असहयोग आंदोलन का हिस्सा बने।

चौरी-चौरा के बाद बनाई कॉन्ग्रेस इंडिपेंडेंस पार्टी

1920 में जब अमेरिका से लौटे तो लाजपत राय को कोलकाता में कॉन्ग्रेस के खास सत्र की अध्यक्षता करने के लिए आमंत्रित किया गया। जलियाँवाला बाग हत्याकांड के खिलाफ उन्होंने पंजाब में ब्रिटिश शासन के खिलाफ उग्र आंदोलन किया। जब गाँधीजी ने 1920 में असहयोग आंदोलन छेड़ा तो उन्होंने पंजाब में आंदोलन का नेतृत्व किया। जब गाँधी जी ने चौरी चौरा घटना के बाद आंदोलन को वापस लेने का फैसला किया तो उन्होंने इस फैसले का विरोध किया। इसके बाद उन्होंने कॉन्ग्रेस इंडिपेंडेंस पार्टी बनाई।

साइमन कमीशन के विरोध में हुए शहीद

ब्रिटिश राज के खिलाफ लालाजी की आवाज को पंजाब में पत्थर की लकीर माना जाता था। जनता के मन में उनके प्रति इतना आदर और विश्वास था कि उन्हें ‘पंजाब केसरी’ यानी ‘पंजाब का शेर’ कहा जाता था। साल 1928 में ब्रिटिश राज ने भारत में वैधानिक सुधार लाने के लिए साइमन कमीशन बनाया। इस कमीशन में एक भी भारतीय सदस्य नहीं था। बॉम्बे में जब इस कमीशन ने भारत की धरती पर कदम रखा तो इसके विरोध में ‘साइमन गो बैक’ के नारे लगे।

पंजाब में इसके विरोध का झंडा लाजपत राय ने उठाया। जब यह कमीशन लाहौर पहुँचा तो लाजपत राय के नेतृत्व में इसे काले झंडे दिखाए गए। बौखलाई ब्रिटिश पुलिस ने शांतिपूर्ण भीड़ पर लाठीचार्ज कर दिया। लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हुए और इन लाठियों की चोट के चलते ही 17 नवंबर 1928 को उनका देहांत हो गया।

लाला लाजपत राय की मौत का भगत सिंह कनेक्शन

लाजपत राय की मौत पर एक ओर जहाँ पूरे देश में शोक की लहर दौर गई वहीं ब्रिटिश राज के खिलाफ आक्रोश भी फैलने लगा। क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू ने लाला की मौत का बदला लेने के लिए अंग्रेज पुलिस अधिकारी सांडर्स को 17 दिसंबर 1928 को गोली से उड़ा दिया।

बाद में भगत सिंह और उनके साथी गिरफ्तार होकर फाँसी पर भी चढ़े। इन तीनों क्रांतिकारियों की मौत ने पूरे देश के करोड़ो लोगों को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ खड़ा करके एक ऐसा आंदोलन पैदा कर दिया, जिसे दबा पाना अंग्रेज सरकार के बूते से बाहर की बात थी।

लाजपत राय पूरे जीवन भर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ भारतीय राष्ट्रवाद को मजबूती से खड़ा करने की कोशिश में जुटे रहे, उनकी मौत ने इस आंदोलन को और मजूबत कर दिया। लाला ने ब्रिटिश लाठियों से घायल होते वक्त सही कहा था। उनके जिस्म पर पड़ी एक-एक लाठी वाकई ब्रिटिश राज के ताबूत की कील साबित हुई।

लाला लाजपत राय आजादी के मतवाले ही नहीं, बल्कि एक महान समाज सुधारक और महान समाजसेवी भी थे। यही कारण था कि उनके लिए जितना सम्मान गाँधीवादियों के दिल में था, उतना ही सम्मान उनके लिए भगत सिंह और चन्द्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों के दिल में भी था।

पंजाब केसरी लाला लाजपत राय: समाज सेवी

लालाजी ने यूँ तो समाज सेवा का कार्य हिसार में रहते हुए ही आरम्भ कर दिया था, जहाँ उन्होंने लाला चंदूलाल, पण्डित लखपतराय और लाला चूड़ामणि जैसे आर्य समाजी कार्यकर्ताओं के साथ सामाजिक हित की योजनाओं के कार्यान्वयन में योगदान किया, किन्तु लाहौर आने पर वे आर्य समाज के अतिरिक्त राजनैतिक आन्दोलन के साथ भी जुड़ गए। 1897 और 1899 के देशव्यापी अकाल के समय लाजपत राय पीड़ितों की सेवा में जी जान से जुटे रहे। जब देश के कई हिस्सों में अकाल पड़ा तो वो राहत कार्यों में सबसे अग्रिम मोर्चे पर दिखाई दिए। देश में आए भूकंप, अकाल के समय ब्रिटिश शासन ने कुछ नहीं किया। उन्होंने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर अनेक स्थानों पर अकाल में शिविर लगाकर लोगों की सेवा की।

उनके व्यक्तित्व के बारे में तत्कालीन मशहूर अंग्रेज लेखक विन्सन ने लिखा था, “लाजपत राय के सादगी और उदारता भरे जीवन की जितनी प्रशंसा की जाए, कम है। उन्होंने अशिक्षित गरीबों और असहायों की बड़ी सेवा की थी। इस क्षेत्र में अंग्रेजी सरकार बिल्कुल ध्यान नहीं देती थी।” 1901-1908 की अवधि में उन्हें फिर भूकम्प एवं अकाल पीड़ितों की मदद के लिए सामने आना पड़ा।

बंगाल विभाजन का विरोध

पंजाब केसरी लाला लाजपत राय ने देशभर में स्वदेशी वस्तुएँ अपनाने के लिए अभियान चलाया। अंग्रेजों ने जब 1905 में बंगाल का विभाजन कर दिया तो लालाजी ने सुरेंद्रनाथ बनर्जी और विपिनचंद्र पाल जैसे आंदोलनकारियों से हाथ मिला लिया और अंग्रेजों के इस फैसले का जमकर विरोध किया। 3 मई, 1907 को ब्रितानिया हुकूमत ने उन्हें रावलपिंडी में गिरफ्तार कर लिया। रिहा होने के बाद भी लाजपत राय आजादी के लिए लगातार संघर्ष करते रहे।

कॉन्ग्रेस में उग्र विचारों का प्रवेश

1924 में लालाजी कॉन्ग्रेस के अन्तर्गत ही बनी स्वराज्य पार्टी में शामिल हो गए और ‘केन्द्रीय धारा सभा’ के सदस्य चुन लिए गए। जब उनका पंडित मोतीलाल नेहरू से कतिपय राजनैतिक प्रश्नों पर मतभेद हो गया तो उन्होंने ‘नेशनलिस्ट पार्टी’ का गठन किया और पुनः असेम्बली में पहुँच गए। अन्य विचारशील नेताओं की भाँति वो भी कॉन्ग्रेस में दिन-प्रतिदिन बढ़ने वाली मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति से अप्रसन्नता अनुभव करते थे, इसलिए स्वामी श्रद्धानन्द तथा मदनमोहन मालवीय के सहयोग से उन्होंने ‘हिन्दू महासभा’ के कार्य को आगे बढ़ाया।

1925 में उन्हें ‘हिन्दू महासभा’ के कलकत्ता अधिवेशन का अध्यक्ष भी बनाया गया। ध्यातव्य है कि उन दिनों ‘हिन्दू महासभा’ का कोई स्पष्ट राजनैतिक कार्यक्रम नहीं था और वह मुख्य रूप से हिन्दू संगठन, अछूतोद्धार, शुद्धि जैसे सामाजिक कार्यक्रमों में ही दिलचस्पी लेती थी। इसी कारण कॉन्ग्रेस से उसे थोड़ा भी विरोध नहीं था। यद्यपि संकीर्ण दृष्टि से अनेक राजनैतिक कर्मी लालाजी के ‘हिन्दू महासभा’ में रुचि लेने से नाराज़ भी हुए, किन्तु उन्होंने इसकी कभी परवाह नहीं की और वे अपने कर्तव्यपालन में ही लगे रहे।

पंजाब केसरी लाला लाजपत राय: लेखन कार्य

उन्होंने ‘तरुण भारत’ नामक एक देशप्रेम तथा नवजागृति से परिपूर्ण पुस्तक लिखी, जिसे ब्रिटिश सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था। उन्होंने ‘यंग इंण्डिया’ नामक मासिक पत्र भी निकाला। इसी दौरान उन्होंने ‘भारत का इंग्लैंड पर ऋण’, ‘भारत के लिए आत्मनिर्णय’ आदि पुस्तकें लिखीं, जो यूरोप की प्रमुख भाषाओं में अनुदित हो चुकी हैं। लालाजी परदेश में रहकर भी अपने देश और देशवासियों के उत्थान के लिए काम करते रहे थे। अपने चार वर्ष के प्रवास काल में उन्होंने ‘इंडियन इन्फ़ॉर्मेशन’ और ‘इंडियन होमरूल’ दो संस्थाएँ सक्रियता से चलाईं। लाला लाजपत राय ने जागरूकता और स्वतंत्रता के प्रयास किए। ‘लोक सेवक मंडल’ स्थापित करने के साथ ही वह राजनीति में आए।

ओजस्वी लेखक

लाला लाजपत राय जीवनपर्यंत राष्ट्रीय हितों के लिए जूझते रहे। वे उच्च कोटि के राजनीतिक नेता ही नहीं थे, अपितु ओजस्वी लेखक और प्रभावशाली वक्ता भी थे। ‘बंगाल की खाड़ी’ में हजारों मील दूर मांडले जेल में लाला लाजपत राय का किसी से भी किसी प्रकार का कोई संबंध या संपर्क नहीं था। अपने इस समय का उपयोग उन्होंने लेखन कार्य में किया।

उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण, अशोक, शिवाजी, स्वामी दयानंद सरस्वती, गुरुदत्त, मेत्सिनी और गैरीबाल्डी की संक्षिप्त जीवनियाँ भी लिखीं। ‘नेशनल एजुकेशन’, ‘अनहैप्पी इंडिया’ और ‘द स्टोरी ऑफ़ माई डिपोर्डेशन’ उनकी अन्य महत्त्वपूर्ण रचनाएँ हैं। उन्होंने ‘पंजाबी’, ‘वंदे मातरम्‌’ (उर्दू) और ‘द पीपुल’ इन तीन समाचार पत्रों की स्थापना करके इनके माध्यम से देश में ‘स्वराज’ का प्रचार किया।

लाला लाजपत राय ने उर्दू दैनिक ‘वंदे मातरम्’ में लिखा था, “मेरा मज़हब हक़परस्ती है, मेरी मिल्लत क़ौमपरस्ती है, मेरी इबादत खलक परस्ती है, मेरी अदालत मेरा ज़मीर है, मेरी जायदाद मेरी क़लम है, मेरा मंदिर मेरा दिल है और मेरी उमंगें सदा जवान हैं।”

लाजपत राय के प्रभावी वाक्य

“राजनीतिक प्रभुत्व आर्थिक शोषण की ओर ले जाता है। आर्थिक शोषण पीड़ा, बीमारी और गंदगी की ओर ले जाता है और ये चीजें धरती के विनीततम लोगों को सक्रिय या निष्क्रिय बगावत की ओर धकेलती हैं और जनता में आज़ादी की चाह पैदा करती हैं।”

“सब एक हो जाओ, अपना कर्तव्य जानो, अपने धर्म को पहचानो, तुम्हारा सबसे बड़ा धर्म तुम्हारा राष्ट्र है। राष्ट्र की मुक्ति के लिए, देश के उत्थान के लिए कमर कस लो, इसी में तुम्हारी भलाई है और इसी से समाज का उपकार हो सकता है।”

पंजाब केसरी लाला लाजपत राय ने एक बार देशवासियों से कहा था, “मैंने जो मार्ग चुना है, वह गलत नहीं है। हमारी कामयाबी एकदम निश्चित है। मुझे जेल से जल्द छोड़ दिया जाएगा और बाहर आकर मैं फिर से अपने कार्य को आगे बढ़ाऊँगा, ऐसा मेरा विश्वास है। यदि ऐसा न हुआ तो मैं उसके पास जाऊँगा, जिसने हमें इस दुनिया में भेजा था। मुझे उसके पास जाने में किसी भी प्रकार की कोई आपत्ति नहीं होगी।”

Check Also

Danavulapadu Jain Temple, Kadapa District, Andhra Pradesh, India

Danavulapadu Jain Temple, Kadapa District, Andhra Pradesh, India

Danavulapadu Jain Temple is an ancient Jain center located in Danavulapadu village, within the Jammalamadugu …