किसका भगवान श्रेष्ठ?

किसका भगवान श्रेष्ठ?

किसी जंगल मे दो कबिले “इनसा” ओर “परिकान” थे। दोनो कबिलो मे संप्रदायीक लड़ाईया होती रहेती थी। इन लड़ाइयों में कई लोगो की जाने गई, कई परिवार ख़त्म हुए, पर इनकी दुश्मनी ख़त्म ना हुई! उस गॉव मे एक समझदार बूढ़ा रहता था। उसने इस लडाई को ख़त्म करने की ठानी, उसने दोनो गावो के मुखिया किंबो ओर ओलान्गो को बुलाया और कहा ‘अब वखत आ गया है कि हम अपनी दुश्मनी भुला कर आपस में प्रेमभाव से रहे, नही तो एक वखत ऐसा आयेगा की हमारे कबिलो के नाम पर सिर्फ यहा टूटे घर और कटी लाशें ही रह जायेंगी। अब हम सब इस आपसी दुश्मनी से तंग आ गये हे, इसलिये मैं चाहता हूँ की अब लडाई झगडे बंद हो ओर हम सब मिल जुल कर रहे, इस बात पर बड़ी बहस के बाद दोनो कबिले वाले एक दुसरे के गले मिले।

गले मिलते वक्त किंबो बोला “आलामाकुल”।

और ओलांगो बोला “जीलाबोरा”।

यह सुन फिर से तलवारे उठी, मार काट शुरू हुई, समजदार बूढ़ा फिर बीच मे आया ओर बोला: “क्यों लड़ रहे हो?”

तो किंबो बोला: “ये अपने भगवान का नाम ले रहा है!”

ओलांगोने भी ताव से कहा: “ये भी तो अपने भगवान का नाम ले रहा है, अगर हम एक हो रहे है तो हमारा भगवान भी एक होना चाहिये सिर्फ ओर सिर्फ जीलाबोरा”।

इस पर किंबो ने तलवार निकाल कर कहा: “नही सिर्फ ओर सिर्फ अलामाकुल”।

समजदार बूढ़े ने फिर रास्ता निकाला, वह बोला “ठीक है, हम एक प्रतीयोगीता रखेंगे। जिसमे भाग लेगे सिर्फ गावं के दो मुखीये, दोनो मुखियाओ को एक एक पत्थर दिया जायेगा, वह अपने अपने भगवान का नाम लेके एक साथ पत्थर फेकेंगे। जिस भगवान का नाम लेने से पत्थर दूर जायेगा बस आज से हम उसी भगवान को पुजेंगे, ओर हम सब का वही भगवान होगा।”

उस वखत बूढ़े की बात को सभी ने मान लिया… प्रतियोगिता शुरू हुई – किंबो ने आलामाकुल जोर से बोला ओर पत्थर को फेका और उसके साथ हि ओलान्गो ने जीलाबोरा बोल पत्थर फेका, किंबो का पत्थर काफी दूर गया, किंबो के कबिले वाले काफी खुश हुवे ओर चिल्ला उठे: “आलामाकुल की जय”।

पर ओलान्गो के कुछ लोग अभी भी हार मानने को तैयार न थे, ऐसा लग रहा था मानो फिर से लडाई शुरू होगी, एक शहरी इंसान जो दूर खडा ये तमाशा देख रहा था वो उन लोगो के पास आया ओर बोला “दोस्तो मे शहर से आया हूँ, काफी दिनो से जंगल में भटक रहा हूँ इसलिये आप की भाषा थोडी बहुत जानने लगा हूँ! में आप लोगो को कुछ समझाना चाहता हूँ।

इतना बोलकर वह फिर से दो पत्थर उठा लाया, ओर दोनो मुखियाओ के पास गया ओर बोला: “यह लो पत्थर ओर अब फिर से पत्थर फैंके पर शर्त यह है की तुम्हे अपने अपने भगवान का नाम न लेके एक दुसरे के भगवान का नाम लेना है, ओर याद रहे पुरी इमानदारी से उतनी ही ताकत से पत्थर फेकना है। कोई चालाकी नही क्योकि तुम्हारा भगवान तुम्हे देख रहा है। तुम्हारी चालाकी से वह नाराज हो सकता है, ओर उसका परिणाम – तुम्हारे कबिले पर प्रकोप…”

किंबो ओर ओलांगो एक साथ बोले: “पर हम एक दुसरे के भगवान का नाम क्यो ले?”

इस पर शहरी बोला: “ताकी पता चले की तुम्हारे भगवान आपसी भेदभाव तो नहीं रखते न? अब जब तुम एक ही भगवान को मानने वाले हो तो पता तो चले की वो दुसरे कबिले वाले को भी इतनी ताकत देता है या नही? यह भी तो जरुरी है? है की नही?”

बात दोनो मुखियो के गले उतरी। एक बार फिर से पत्थर फेकने वह तैयार हुए! इस बार दोनो मुखियाओ ने एक दुसरे के भगवान के नाम लिए। किंबो ने जीलाबोरा जोर से बोला ओर ओलान्गो ने आलामाकुल जोर से बोल दोनो ने एक साथ पत्थर फेका, ओर आश्चर्य इस बार फिर से किंबो का हि पत्थर दूर गिरा! किंबो के कबिलेवालोका मुह लटक गया। वे बडे नाराज हुए। ओलोंगा के कबिले वाले तो खुशी से झूम उठे, वो बोले “अरे वाह! जीलाबोरा की जय, वह किसी में भेदभाव नही रखते। अपने से ज्यादा दुसरो का ख्याल रखते है! वही श्रेष्ठ है। अब वही सब के भगवान हैं।”

तब वह शहरी उन्हे समझाते हुवे बोला “कबिले वालो यह तुमारी अंधश्रधा है, किंबो की तरफ देखो ओर ओलान्गो की तरफ देखो, किंबो ओलान्गो से ज्यादा ताकतवर है, वो अगर किसी भगवान का नाम ना भी ले फिर भी उसी का पत्थर ओलान्गो से दूर जायेगा! भगवान कही नही है वो हमारे अंदर हि है, मेरे अंदर है, तुम्हारे अंदर है, हर इंसान मे भगवान है, ओर तुम एक दुसरे को मारकर भगवान की ही बनाई रचना का अपमान कर रहे हो, इसलिये आपसी बेर मिटा कर मिलजुल कर रहो, यही भगवान की इच्छा है, न जीलाबोरा बुरा है ना आलामोरा! दोनो एक हि हैं! उसने अपनी बेग में से एक केला निकाला ओर उसने ओलांगो को पुछा इसे क्या कहते हो? ओलांगो बोला “बेरीपिज” ओर फिर किंबो को पुछा ओर तुम इसे क्या कहते हो? किंबो बोला “पेरीकिस”, इस पर हंस कर वह शहरी बोला “तुम इसे कुछ भी बोलो मेरे लिए तो ये सिर्फ केला ही है! मेरे केला बोलने से या तुम्हारे अलग अलग पुकारने से केले का अस्तित्व नही बदल जाता ठीक उसी तरह से तुम भगवान को किसी भी नाम से पुकारो। रहेगा तो वो वही। उसका एक ही रंग है, एक ही रूप ही सिर्फ नाम अलग अलग। जो तुमने बनाये है! यह बात सुन कबिले वाले अपने कृत्य के लिए शर्मिदा हुए ओर उन्होने मिलजुल कर रहने की कसम खाई, हमेशा के लिए लड़ाई ख़त्म करने हेतु उसने आगे समझाया “तुम एक होकर अपने अपने भगवान की पूजा कर सकते हो या तो दोनो भगवान को मिलाकर एक ही नाम बना दो! ताकी तुम्हारी जिद्द भी पुरी हो जायेगी ओर शायद दो भगवान का आशीर्वाद भी तुम्हे मिल जायेगा!” किंबो ओर आलोंगो ने उक्सुकता से पुछा “एक नाम? दो भगवान का आशीर्वाद? वो केसे?”

उस पर उस शहरी ने कहा “तुम्हारे भगवान जीलामोरा ओर आलामाकुल है। सही है न? अब से तुम दोनो भगवान को एक नाम जिलामाकुल से पुकारो एक नाम में अपने आप दो भगवान की ताकत आ जायेगी!”

यह बात कबिले वालो को भा गई। वे बेहद खुश हुए ओर एक दुसरे के गले लगाकर बोले जिलामाकुल, जिलामाकुल…

उन दोनो को एक दूसरे के ऐसे गले लगते देख बूढ़ा बहुत खुश हुआ और वह शहरी से बोला “बाबू – अच्छा हुआ जो आप जेसे पढे लिखे लोग यहा आये और इन अनपढ़ लोगो को समझाया, काश ये लोग पढ़े लिखे होते तो आप जेसे समजदार होते, जीलाबोरा ओर अलामाकुल नही माफ करे जिलामाकुल आपकी रक्षा करे,” वह इंसान फिर हँसा ओर वहां से निकल पडा, बूढ़ा समझ न पाया उसकी हंसी का मतलब? असमंजस में उसने सिर हिला कर वह शहरी को जाते हुए देखने लगा।

****

शहरी वहां से आगे चला गया पर ये क्या? उसकी आंख मे आंसू थे! वह आंसू खुशी के नही गम के थे! वह सोचने लगा काश! मेरे शहर के लोग भी इन कबिले वालो जेसे अनपढ ओर भोले होते! तो मैं भी उनको ऐसे ही दंगा मत करो ऐसे समझा पाता, और वे मान भी जाते, तब शायद दंगो में मेरा परिवार न मरता, मेरा घर न जलता और मुझे बेघर होकर इस तरह इस जंगल मे भटकना न पड़ता, और उसकी आंखो के सामने अमानवीय ढंग से हुवे दंगो के दृश्य गुजर गये, छोटे बच्चों की रोने की आवाज और औरतों की बेबस चीखे उसकी कानो में गुंजने लगी, उसने अपने कान बंध किये ओर आसमान की ओर देख चील्लाया… “ईश्वर तुझे ही लोग परमेश्वर, परमात्मा, विधाता, भगवान, अल्लाह, ख़ुदा, गॉड और याह्वेह कहते हैं। तेरे ही यह अलग अलग नाम है! इतनी बुद्धि इंसान को दी तो इतनी मामूली समझ देने से क्यो चुक गया भगवान? एक ही चीज के अलग अलग नाम को श्रेष्ठ मानने के लिए नादान लड़ रहे है। और भुगतना हम बेबसों को पड़ता है। वो बेबसी से रो पडा – खून के आसू रो पडा…

About Prashant Subhashchandra Salunke

कथाकार / कवी प्रशांत सुभाषचंद्र साळूंके का जन्म गुजरात के वडोदरा शहर में तारीख २९/०९/१९७९ को हुवा. वडोदरा के महाराजा सर सयाजीराव युनिवर्सिटी से स्नातक तक की शिक्षा ग्रहण की. अभी ये वडोदरा के वॉर्ड २२ में भाजपा के अध्यक्ष है, इन्होने सोश्यल मिडिया पे क्रमश कहानी लिखने की एक अनोखी शुरुवात की.. सोश्यल मिडिया पे इनकी क्रमश कहानीयो में सुदामा, कातील हुं में?, कातील हुं में दुबारा?, सुदामा रिटर्न, हवेली, लाचार मां बाप, फिरसे हवेली मे, जन्मदिन, अहेसास, साया, पुण्यशाली, सोच ओर William seabrook के जीवन से प्रेरित कहानी “एक था लेखक” काफी चर्चित रही है. इसके अलवा बहोत सी छोटी छोटी प्रेरणादायी कहानीया भी इन्होने सोश्यलमिडिया पे लिखी है, वडोदरा के कुछ भुले बिसरे जगहो की रूबरू मुलाकात ले कर उसकी रिपोर्ट भी इन्होने सोश्यल मिडिया पे रखी थी, जब ये ६ठी कक्षा में थे तब इनकी कहानी चंपक में प्रकाशित हुई थी, इनकी कहानी “सब पे दया भाव रखो” वडोदरा के एक mk advertisement ने अपनी प्रथम आवृती में प्रकाशित की थी, उसके बाद सुरत के साप्ताहिक वर्तमानपत्र जागृती अभियान में इनकी प्रेरणादायी कहानिया हार्ट्स बिट्स नामक कोलम में प्रकाशित होनी शुरू हुई, वडोदरा के आजाद समाचार में इनकी कहानी हर बुधवार को प्रकाशित होती है, वडोदरा के क्राईम डिविजन मासिक में क्राईम आधारित कहानिया प्रकाशित होती है, 4to40.com पे उनकी अब तक प्रकाशित कहानिया बेटी का भाग्य, सेवा परमो धर्म, आजादी, अफसोस, चमत्कार ऐसे नही होते ओर मेरी लुसी है. लेखन के अलावा ये "आम्ही नाट्य मंच वडोदरा" से भी जुडे है, जिसमें "ते हुं नथी" तथा "नट सम्राट" जेसे नाटको में भी काम किया है, इनका कहेना है "जेसे शिल्पी पत्थर में मूर्ती तलाशता है, वैसे ही एक लेखक अपनी आसपास होने वाली घटनाओ में कहानी तलाशता है", इनका इमेल आईडी है prashbjp22@gmail.com, आप फेसबुक पे भी इनसे जुड सकते है.

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16 comments

  1. Bahut hi badhiya kahani hai..

  2. जिलामाकुल, जिलामाकुल… nice one…

  3. Sirji mene aapki chhoti badi 100 se jyaada kahaniya padhi he sabhi nice he par in sab me ye sabse श्रेष्ठ kahani he

  4. Very nice… everyone must read it. This story is usefull to national unity

  5. बहोत बढ़िया रचना

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  16. अच्छी कहानी है।