होशियार बकरा

होशियार बकरा

लेकिन सियार बहुत डरा हुआ था बोला, “मेरी हिम्मत नहीं हो रही है! पर तुम कहते हो तो चलता हूँ! मगर मेरी एक शर्त है! अपनी पूछ से मेरी पूछ कस कर बांध लो और पीठ पर बैठाकर ले चलो!”

लंगूर बोला, “ठीक है!’ और फिर उसने जल्दी से अपनी लम्बी पूछ के साथ सियार की पूछ बांध ली और उसे पीठ पर बैठाकर उछलता-कूदता बकरे-बकरी की गुफा की ओर चल पड़ा! सामने पहाड़ की चोटी पर बैठे बकरे ने जब पीठ पर सियार को बैठाए लंगूर को गुफा की ओर आते देखा तो जोर से चिल्लाया, “अरी बकरी, ये बच्चे क्यों रो रहे है?”

यह सुनकर बकरी ने बच्चो के कान पर दाँतों से चिकोटी काटी! बच्चे रोने लगे और वही जवाब दे दिया की “बच्चे भूख से बिलबिला रहे है! कहते है कि सियार का कलेजा खाएंगे! अब में कहाँ से लाऊ सियार का कलेजा! तुम लाने वाले थे क्या हुआ?”

बकरा ऊँची आवाज़ में बोला, “वही इंतज़ाम कर रहा हू! मैंने अपने दोस्त लंगूर को कहा था, चार सियार पकड़ लाना! उनका कलेजा निकल कर बच्चो को खिलाऊंगा! लेकिन मैं देख रहा हू, वह एक ही सियार पकड़कर ला रहा है! मै अभी आ रहा हूँ तुम बच्चो को चुप कराओ! सियार ने जब यह सुना तो उसके होश उड़ गए वह थर-थर कांपने लगा! उसने डर के मारे जोर से छलांग लगाई और ये जा, वो जा! लेकिन पूछ टूटकर लंगूर कि पूछ के साथ ही बंधी रह गई! सियार को भागता देख कर लंगूर भी वहां से जान बचाकर भाग गया!”

“हा! हा! हा! अम्मा, कैसा लग रहा होगा बिना पूछ का सियार!”

“सियार ही क्यों बेटा, लंगूर कि पूछ पर भी लगता था जैसे झाड़ू बंधा हो!”

“हा! हा! हा! बस करो अम्मा! हँसते-हँसते हमारे पेट में बल पड़ गए है!

“तुम्हारे पेट मे क्यों बल पड़ रहे है, बल तो पड़े जंगल के जानवरो के पेट में! जो भी जानवर बिना पूछ के सियार को देखता या झाड़ू जैसी पूछ वाले लंगूर को देखता तो हँसते-हँसते उसका बुरा हाल हो जाता! उसके बाद तो उस जंगल के जानवर अक्सर एक दूसरे से कहा करते थे- बिना पूछ वाला सियार भाई देखा क्या? या पूछते – झाड़ू जैसे पूछ वाले लंगूर भाई तो नहीं देखे?”

“और अम्मा, बकरा-बकरी का क्या हुआ?”

“‘हुआ क्या, उसके बाद से वे जंगल में चैन से रहने लगे! उनके खूब बच्चे हुए उनके मिमियाने से गुफा सदा गुलजार रहने लगी! जानवरो ने उस गुफा का नाम बकरी गुफा रख दिया! बकरे की होशियारी देखकर जानवरों ने उसका नाम भी होशियार बकरा रख दिया! वे उसकी सलाह लेने लगे! बकरा अपनी दाढ़ी खुजलाकर उन्हें अच्छी सलाह देता! अब न वहां धूर्त सियार था और न बलि चढ़ाने वाले आदमी! बकरा-बकरी उस जंगल में सुख चैन से रहने लगे! हाँ तो बेटा कैसी लगी तुम्हे होशियार बकरे की कहानी?”

~ देवेंद्र मेवाड़ी

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One comment

  1. Rajneekant Choudhary

    I like it.