Brahmadaitya

ब्रह्मदैत्य

फिर उसने अपनी झोपडी के वाली जगह को चावल और पुआल रखने के लिए तैयार किया। सब काम खत्म करके ब्राह्मण सो गया।

जब सारा गाँव गहरी नींद में डूबा हुआ था, ब्रह्मदैत्य ने वटवृक्ष से सौ भूत बुलाए और उन्हें आदेश दिया कि ब्राह्मण का धान काटकर बोरियों में भर दिया जाए। भूत तो सहायता के लिए तत्पर थे। दरातियाँ हाथ में लिए, वे खेतों कि ओर चल दिए। सूर्योदय से पहले धान कट गया था, चावल और पुआल को अलग किया जा चूका था और सब कुछ ब्राह्मण के नए – नवेले गोदाम में भर दिया था।

अगली सुबह, ब्राह्मण और उसकी पत्नी ब्रह्मदैत्य का काम देखकर बहुत प्रसन्न हुए। गाँव वालों के लिए यह चमत्कार से कम नही था और उन्हें विशवास था कि ब्राह्मण पर स्वयं देवताओं की कृपा हुई है।

कुछ दिन बाद, ब्राह्मण कृतग्यता से हाथ जोड़े, एक बार फिर दयालु ब्रह्मदैत्य के सामने खड़ा था।

“हे ब्रह्मदैत्य, क्या तुम मेरी सहायता एक बार फिर करोगे? मैं देवताओं को उनकी कृपा के लिए धन्यवाद देना चाहता हूँ। उनके लिए मुझे हजार ब्राह्मणों को भोज पर बुलाना होगा। यदि तुम मुझे इस विशाल भोज के लिए साधन – सामग्री जुटा दो तो मैं आजीवन तुम्हारा आभारी रहूंगा,” वह कहने लगा।

ब्रह्मदैत्य बहुत ही भले स्वभाव का था। उसने कहा, “तुम्हारी इच्छा जरूर पूरी होगी। तुम मुझे वह स्थान भर दिखा दो, जहाँ पर मैं साधन – सामग्री जमा कर सकूँ।”

ब्राह्मण ने एक कमरा कामचलाऊ गोदाम बनाने के लिए तैयार कर दिया। ब्रह्मभोज से एक दिन पहले उसने देखा कि कमरा सामग्री से लबालब भरा पड़ा है – सौ डिब्बे देसी घी, आटे के विशाल ढेर, तरह – तरह के काजू – किशमिश और शाक – सब्ज़ी, करीब सौ डिब्बे चीनी, तकरीबन उतने ही दूध – दही के डिब्बे और बाकि सब सामान, जो एक भव्य भोज के लिए आवश्यक होता है। ब्राह्मण ये सब देखकर ख़ुशी से झूम उठा।

Happy Brahmin

फिर ब्राह्मण ने सौ रसोइयों को हजार ब्राह्मणों का खाना बनाने का काम सौंपा। अगले दिन मौसम एकदम साफ़ और स्वच्छ था। ब्राह्मण और उसकी पत्नी लगातार आते जा रहे ब्राह्मणों के स्वागत – सत्कार में लगे थे। उसने खुद कुछ नही खाया था क्योंकि वह इस भोज का आनंद ब्रह्मदैत्य के साथ उठाना चाहता था। ब्रह्मदैत्य ने उसकी इतनी सहायता जो की थी, पर ब्राह्मण की यह इच्छा पूरी नही हुई। ब्रह्मदैत्य ने ब्राह्मण की सहायता करके धरती पर अपना समय पूरा कर लिया था।

तभी धन के देवता कुबेर का पुष्पक विमान स्वर्गलोग से नीचे आया और ब्रह्मदैत्य को अपनी प्रेतयोनि से मुक्ति मिल गई। ब्रह्मदैत्य स्वर्ग में स्थान पाकर बहुत प्रसन्न हुआ।

ब्राह्मण का जीवन भी खुशियों से भर गया। उसके कई पुत्र – पुत्रियां हुए और कई वर्षों तक वह उनके और अपने पौत्र – पौत्रियों के साथ पृथ्वीलोक का आनंद लेता रहा।

भारत की लोक कथाएं ~ सुबीर घोष व ऋचा बंसल

Check Also

Shri Devikoop Bhadrakali Shaktipeeth Temple, Kurukshetra, India

Shri Devikoop Bhadrakali Shaktipeeth Temple, Kurukshetra, India

Shri Devikoop Bhadrakali Shaktipeeth Temple is situated on the Jhansa Road in the town of …