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अपने अधिकारोँ का उपयोग लोकहित मेँ करेँ-Use Your Rights Properly

अपने अधिकारोँ का उपयोग लोकहित मेँ करेँ-Use Your Rights Properly

अपने अधिकारोँ का उपयोग लोकहित मेँ करेँ-Use Your Rights Properly एक अत्यंत निर्दई और क्रूर राजा था| दूसरोँ को पीड़ा देने मेँ उसे आनंद आता था| उसका आदेश था कि उसके राज्य मेँ एक अथवा दो आदमियों को फांसी लगनी ही चाहिए| उसके इस व्यवहार से प्रजा बहुत दुखी हो गई थी| एक दिन उस राजा के राज्य के कुछ …

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पुण्य फलिभूत हुआ – अमरनाथ श्रीवास्तव

पुण्य फलिभूत हुआ कल्प है नया सोने की जीभ मिली स्वाद तो गया छाया के आदी हैं गमलों के पौधे जीवन के मंत्र हुए सुलह और सौदे अपनी जड़ भूल गई द्वार की जया हवा और पानी का अनुकूलन इतना बंद खिड़किया बाहर की सोचें कितना अपनी सुविधा से है आँख में दया मंजिल दर मंजिल है एक ज़हर धीमा …

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पुरुस्कार – शकुंतला कालरा

गीतों का सम्मेलन होगा, तुम सबको यह बात बतानी, अकड़–अकड़ कर मेंढक बोले, तुम भी चलना कोयल रानी। मीकू बंदर, चीकू मेंढक मोती कुत्ता, गए बुलाए जाकर बैठ गए कुर्सी पर, वे निर्णायक बन कर आए। आए पंछी दूर–दूर से बोली उनकी प्यारी–प्यारी, रंगमंच पर सब जा बैठे, गाया सबने बारी–बारी। चहक–चहक कर बुलबुल आई, गाया उसने हौले–हौले कैसा जादू …

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राख – कैफ़ी आज़मी

जाने क्या ढूंढती रहती हैं ये आँखें मुझमें राख के ढेर में शोला है न चिंगारी है अब न वो प्यार न उस प्यार की यादें बाकी आग यूँ दिल में लगी कुछ न रहा कुछ न बचा जिसकी तस्वीर निगाहों में लिये बैठी हो मैं वो दिलदार नहीं उसकी हूँ खामोश चिता जाने क्या ढूंढती रहती हैं ये आँखें …

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बेल पत्र के औषधीय प्रयोग-Medicinal properties of Bilva (Aegle Marmelos)

बेल पत्र के औषधीय प्रयोग-Medicinal properties of Bilva (Aegle Marmelos)

बेल पत्र के औषधीय प्रयोग-Medicinal properties of Bilva (Aegle Marmelos) बिल्व, बेल या बेलपत्थर, भारत में होने वाला एक फल का पेड़ है। इसे रोगों को नष्ट करने की क्षमता के कारण बेल को बिल्व कहा गया है। इसके अन्य नाम हैं-शाण्डिल्रू (पीड़ा निवारक), श्री फल, सदाफल इत्यादि। इसका गूदा या मज्जा बल्वकर्कटी कहलाता है तथा सूखा गूदा बेलगिरी। बेल …

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रंजिश ही सही – अहमद फ़राज़

रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिये आ आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिये आ कुछ तो मेरे पिंदारे–मुहब्बत का भरम रख तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिये आ पहले से मिरासिम न सही फिर भी कभी तो रस्मो–रहे–दुनियाँ ही निभाने के लिये आ किस–किस को बतााएंगे जुदाई का सबब हम तू मुझसे खफ़ा …

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रोज़ ज़हर पीना है – श्रीकृष्ण तिवारी

रोज़ ज़हर पीना है, सर्प–दंश सहना है, मुझको तो जीवन भर चंदन ही रहना है। वक़्त की हथेली पर प्रश्न–सा जड़ा हूं मैं, टूटते नदी–तट पर पेड़ सा खड़ा हूं मैं, रोज़ जलन पीनी है, अग्नि–दंश सहना है, मुझको तो लपटों में कंचन ही रहना है। शब्द में जनमा हूं अर्थ में धंसा हूं मैं, जाल में सवालों के आज …

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Sraddhatraya Vibhaga Yoga-Bhagavad Gita Chapter 17

Sraddhatraya Vibhaga Yoga-Bhagavad Gita Chapter 17 [The Three Divisions of Material Existence] Arjun Said > Shaloka: 1 English Arjuna said, O Krishna, what is the situation of one who does not follow the principles of scripture but who worships according to his own imagination? Is he in goodness, in passion or in ignorance? Purport In the Fourth Chapter, thirty-ninth verse, …

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Purusottama Yoga-Bhagavad Gita Chapter 15

Purusottama Yoga-Bhagavad Gita Chapter 15 [Realization of the Ultimate Truth] Krishna Said > Shaloka: 1 English There is a banyan tree which has its roots upward and its branches down and whose leaves are the Vedic hymns. One who knows this tree is the knower of the Vedas. Purport After the discussion of the importance of bhakti-yoga, one may question, …

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Gunatraya Vibhaga Yoga-Bhagavad Gita Chapter 14

Gunatraya Vibhaga Yoga-Bhagavad Gita Chapter 14 [The Three Qualities of Material Nature] Krishna Said > Shaloka: 1 English Again I shall declare to you this supreme wisdom, the best of all knowledge, knowing which all the sages have attained the supreme perfection. Purport From the Seventh Chapter to the end of the Twelfth Chapter, Sri Krishna in detail reveals the …

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