पहली कोशिश – राज नारायण बिसारिया

पहली कोशिश – राज नारायण बिसारिया

जिधर तुम जा रहीं थीं
उस तरफ मुझको न जाना था
बनाया साथ पाने के लिये
झूठा बहाना था

न कुछ सोचा विचारा था
कि क्या कहना–कहाना था
मुझे तो बस अकेले
साथ में चलना–चलाना था!

रुकीं दो पल चले दोनों
सभी कुछ तो सुहाना था
मगर बतिया नहीं पाए
कि चुप्पी का ज़माना था!

बहुत धीमे कहा कुछ था
कि जब मुड़ना–मुड़ाना था
इशारा था कि मुझको
इम्तिहां में बैठ जाना था

मगर मैंने शुरू से ही
करूँगा शोध ठाना था
अभी से नौकरी मुझको
अभी पढ़ना–पढाना था!

न तुम ज्यादा सयानी थीं
न मैं ज्यादा सयाना था
डरे कमज़ोर बच्चे थे
न कुछ होना–हुवाना था!

बड़ी बेकार कोुशश थी
नया पौधा लगाना था
उगा करता रहा यह खुद
अभी यह सच अजाना था!

~ राज नारायण बिसारिया

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