तुम कितनी सुंदर लगती हो जब तुम हो जाती हो उदास! ज्यों किसी गुलाबी दुनिया में सूने खंडहर के आसपास मदभरी चांदनी जगती हो! मुख पर ढंक लेती हो आंचल ज्यों डूब रहे रवि पर बादल‚ या दिनभर उड़ कर थकी किरन‚ सो जाती हो पांखें समेट‚ आंचल में अलस उदासी बन! दो भूल–भटके सांध्य–विहग‚ पुतली में कर लेते निवास! …
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अंधा युग – धर्मवीर भारती
धर्मवीर भारती का काव्य नाटक अंधा युग भारतीय रंगमंच का एक महत्वपूर्ण नाटक है। महाभारत युद्ध के अंतिम दिन पर आधारित यह् नाटक चार दशक से भारत की प्रत्येक भाषा मै मन्चित हो रहा है। इब्राहीम अलकाजी, रतन थियम, अरविन्द गौड़, राम गोपाल बजाज, मोहन महर्षि, एम के रैना और कई अन्य भारतीय रंगमंच निर्देशको ने इसका मन्चन किया है …
Read More »भारत की बॉक्सिंग कैपिटल – भिवानी
हरियाणा के भिवानी कस्बे में सूर्य की पहली किरण के साथ ही बॉक्सिंग क्लब में सीटियों की आवाज़े सुनाई देने लगती हैं। इनमें से कुछ अपनी एकैडमी के बरामदे में खड़े कोच जगदीश सिंह की ओर से भी आती हैं। युवाओ को और जोश से व्यायम करने तथा मुक्के के लिए उत्साहित करते हुए उनके एक हाथ में सीटी तो दूसरे …
Read More »भारत के ये 11 अजब गज़ब गाँव जहाँ आप एक बार जरूर जाना चाहेंगे
| एक गाँव जहां दूध दही मुफ्त मिलता है यहां के लोग कभी दूध या उससे बनने वाली चीज़ो को बेचते नही हैं बल्कि उन लोगों को मुफ्त में दे देते हैं जिनके पास गायें या भैंसे नहीं हैं – धोकड़ा गुजरात के कक्ष में बसा ऐसा ही अनोखा गाँव है आज जब इंसानियत खो सी गयी है लोग किसी …
Read More »फागुन की शाम – धर्मवीर भारती
घाट के रस्ते, उस बँसवट से इक पीली–सी चिड़िया, उसका कुछ अच्छा–सा नाम है! मुझे पुकारे! ताना मारे, भर आएँ, आँखड़ियाँ! उन्मन, ये फागुन की शाम है! घाट की सीढ़ी तोड़–फोड़ कर बन–तुलसी उग आयी झुरमुट से छन जल पर पड़ती सूरज की परछाईं तोतापंखी किरनों में हिलती बाँसों की टहनी यहीं बैठ कहती थी तुमसे सब कहनी–अनकहनी आज खा …
Read More »सिरमौर (भारत-भारती से) – मैथिली शरण गुप्त
हाँ, वृद्ध भारतवर्ष ही संसार का सिरमौर है ऐसा पुरातन देश कोई विश्व में क्या और है भगवान की भव–भूतियों का यह प्रथम भंडार है विधि ने किया नर–सृष्टि का पहले यहीं विस्तार है यह ठीक है पश्चिम बहुत ही कर रहा उत्कर्ष है पर पूर्व–गुरु उसका यही पुरु वृद्ध भारतवर्ष है जाकर विवेकानंद–सम कुछ साधु जन इस देश से …
Read More »आँगन – धर्मवीर भारती
बरसों के बाद उसी सूने- आँगन में जाकर चुपचाप खड़े होना रिसती-सी यादों से पिरा-पिरा उठना मन का कोना-कोना कोने से फिर उन्हीं सिसकियों का उठना फिर आकर बाँहों में खो जाना अकस्मात् मण्डप के गीतों की लहरी फिर गहरा सन्नाटा हो जाना दो गाढ़ी मेंहदीवाले हाथों का जुड़ना, कँपना, बेबस हो गिर जाना रिसती-सी यादों से पिरा-पिरा उठना मन …
Read More »भारतीय समाज – भवानी प्रसाद मिश्र
कहते हैं इस साल हर साल से पानी बहुत ज्यादा गिरा पिछ्ले पचास वर्षों में किसी को इतनी ज्यादा बारिश की याद नहीं है। कहते हैं हमारे घर के सामने की नालियां इससे पहले इतनी कभी नहीं बहीं न तुम्हारे गांव की बावली का स्तर कभी इतना ऊंचा उठा न खाइयां कभी ऐसी भरीं, न खन्दक न नरबदा कभी इतनी …
Read More »केवल भारत में पाये जाते हैं अनूठे कर्दम हिरण
हिरणो की यूँ तो दुनिया भर में कई प्रजातियां मिल जाती हैं किन्तु ‘कर्दम हिरण‘ सिर्फ भारत में ही पाये जाते हैं। अलग – अलग क्षेत्रों में पाये जाने वाले कर्दम कर्दम हिरणों के सींगो की बनावट अलग-अलग तरह की होती है। सामान्यत: एक कर्दम हिरण के सींगो में 10 से 14 तक शाखाएं निकली होती हैँ किन्तु किसी-किसी कर्दम …
Read More »बातें – धर्मवीर भारती
सपनों में डूब–से स्वर में जब तुम कुछ भी कहती हो मन जैसे ताज़े फूलों के झरनों में घुल सा जाता है जैसे गंधर्वों की नगरी में गीतों से चंदन का जादू–दरवाज़ा खुल जाता है बातों पर बातें, ज्यों जूही के फूलों पर जूही के फूलों की परतें जम जाती हैं मंत्रों में बंध जाती हैं ज्यों दोनों उम्रें दिन …
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