Pitru Paksha: In Memory Of Departed Ancestors

Pitru Paksha: In Memory Of Departed Ancestors

Pitru Paksha – Shraddha — The dark half of Ashvina (September-October) is observed as Pitru Paksha throughout the Hindu world especially India, and sacrifices called Shraddha is offered to the dead and departed ancestors of the family. On each day of the fortnight oblations of water and Pindas or balls of rice and meal are offered to the dead relatives by the surviving relatives. A shraddha is not a funeral ceremony but a supplement to such a ceremony.

It is an act of reverential homage to dead person performed by relatives, and is supposed to supply the dead with strengthening nutriment after the performance of the previous funeral ceremonies has endowed the ethereal bodies.

It is believed that until Shraddha, has been performed the deceased relative is a preta or a restless wandering ghost and has no real body. Only after the shraddha, he attains a position among the Petris or Divine Fathers in their blissful abode called Pitri-loka. A shraddha is most desirable and efficacious when done by a son.

The elder son or some other elder male member of the family performs shraddha in honor of the dead and offers oblations. Part of the food offering is also given to the cows and the crows. Bhramins are fed and given dan-dakshina, for it is believed that whatever is given to the Brahmins also reach the departed souls. Khir, a sweet milk and rice preparation, is especially prepared and offered to the Pitris on this occasion.

On the last day of the fortnight, i.e. Amavasya oblations are offered to all those dead ancestors whose tithi (Date) of dead is not known. In Brahma Purana the significance of this ceremony is described. During Pitru Paksha shaving of the beard, cutting of the hair, wearing of new clothes, pairing of the nails is not allowed.

Pitru Paksha Dates:

  • 2021: September 20 (Monday) To October 06 (Wednesday)
  • 2022: September 10 (Saturday) To September 25 (Sunday)

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पितृपक्ष में भूलकर भी ना करें ये गलतियां, पितरों की आत्मा हो जाती है नाराज

श्राद्ध पक्ष में नहीं करने चाहिए ये काम, पितर होते हैं नाराज

पितृपक्ष में सनातन धर्म के लोग अपने पितरों की पूजा-अर्चना और पिंडदान करते हैं। इस दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म और तर्पण किए जाते हैं। इसलिए इस पूजा को विधि-पूर्वक किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पिंडदान की पूजा में किसी भी तरह की लापरवाही से पितर नाराज हो जाते हैं। इसलिए इसको करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक माना गया है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि पितृपक्ष (Pitru Paksha) के दौरान आपको कौन सी चीजें ध्यान में रखनी चाहिए, जिससे आपकी पूजा बिना किसी गलती के पूरी हो सके…

ऐसे बर्तनों का ना करें प्रयोग

श्राद्ध कर्म के दौरान भूलकर भी लोहे के बर्तनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। मान्यता के अनुसार, पितृपक्ष में लोहे के बर्तन के प्रयोग करने से परिवार पर अशुभ प्रभाव पड़ता है। इसलिए पितृपक्ष में लोहे के अलावा तांबा, पीतल या अन्य धातु से बनें बर्तनों का ही इस्तेमाल करना चाहिए।

न करें इनका प्रयोग

पितृपक्ष (Pitru Paksha) में पितरों के लिए श्राद्ध कर्म कर रहे हैं तो उस दिन शरीर पर तेल का प्रयोग नहीं करना चाहिए और ना ही पान खाना चाहिए। इसके साथ ही दूसरे के घर का खाना पितृपक्ष में वर्जित बताया है और इत्र का प्रयोग भी नहीं करना चाहिए।

न करें शुभ कार्य शुरू

पितृपक्ष (Pitru Paksha) में पूर्वजों को याद किया जाता है और उनकी आत्मा की शुद्धि के लिए पूजा की जाती है। इसलिए इस दौरान परिवार में एकतरह से शोकाकुल माहौल रहता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए, साथ ही नई वस्तु की खरीदारी करना भी अशुभ माना गया है।

नहीं करना चाहिए इनका अपमान

पितृपक्ष के दौरान भिखारी या फिर किसी अन्य व्यक्ति को बिना भोजन कराएं नहीं जाने देना चाहिए। इसके साथ ही पशु-पक्षी जैसे कुत्ते, बिल्ली, कौवा आदि का अपमान नहीं करना चाहिए। मान्यता के अनुसरा, पूर्वज इस दौरान किसी भी रूप में आपके घर पधार सकते हैं।

पुरुष ध्यान रखें यह चीज

पितृपक्ष में जो पुरुष अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर्म करते हैं, उन्हें दाढ़ी और बाल नहीं कटवाना चाहिए। शास्त्रों में बताया गया है कि पितृपक्ष के दौरान दाढ़ी और बाल कटवाने से धन की हानि होती है क्योंकि यह शोक का समय माना जाता है।

पितरों के लिए ऐसा भोजन उत्तम

पितृपक्ष में घर पर बनाए गए सात्विक भोजन से ही पितरों को भोग लगाना उत्तम माना गया है। अगर आपको अपने पूर्वज की मृत्यु तिथि याद है तो उस दिन पिंडदान भी करना चाहिए। अन्यथा पितृपक्ष के आखिरी दिन भी पिंडदान अथवा तर्पण विधि से पूजा कर सकते हैं।

20 सितंबर को पहला और 6 अक्‍टूबर, 2021 को आखिर श्राद्ध

पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और समर्पण का पर्व पितृ पक्ष इस बार 21 सितंबर से आरंभ हो रहा है जो 6 अक्टूबर, 2021 तक रहेगा। वैसे कुछ प्रोष्ठपदी पूर्णिमा से ही पितृ पक्ष का आरंभ मान लेते हैं इसलिए ऐसे लोग 20 सितंबर से पितृपक्ष मान रहे हैं। जबकि पक्ष का मतलब होता है पखवाड़ा जो शुक्ल और कृष्ण दो भागों में बंटा है। इसलिए शास्त्रों में आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर अमावस्या तिथि तक को पितृ पक्ष कहा गया है। इस आधार पर आश्विन मास के कृष्ण पक्ष से अमावस्या तक ही पितृ पक्ष है। पूर्णिमा तिथि को ऋषि तर्पण किया जाता है जिसमें अगस्त मुनि को जल देकर पितरों का आह्वान किया जाता है और फिर प्रतिपदा तिथि से इनकी पूजा की जाती है। शुक्ल या कृष्ण पक्ष में जिस भी तिथि में पूर्वज देह त्याग करके परलोक गए हैं उस तिथि में उनके नाम से विशेष पूजन और ब्रह्म भोजन करवाया जाता है। जिन पितृगणों का देहांत पूर्णिमा तिथि में हुआ है उनका भी विशेष पूजन अमावस्या तिथि के दिन ही करना चाहिए। इस वर्ष पितृ पक्ष 16 दिनों का है। पितृ पक्ष पक्ष में पितृगणों को संतुष्ट करने के लिए कुछ खास बातों का ध्यान रखना चाहिए।

दोपहर में होनी चाहिए पूजा

शास्‍त्रों में बताया गया है कि देव पूजन का समय प्रातः काल है जबकि पितृ काल मध्याह्न काल है इसलिए पितृगणों की पूजा दोपहर के समय ही करना चाहिए। पितृगणों के निमित्त ब्राह्मणों को जो भोजन करवाना चाहिए उसके लिए दोपहर का समय रखना चाहिए। इसके अलावा पितृगणों के लिए दान किया जाने वाला भोजन गाय, कौए और कुत्ते को भी जरूर देना चाहिए।

पितर पक्ष में न करें ऐसे बर्तन का प्रयोग

पितरों के लिए जो भोजन तैयार किया जाता है या फिर जो भोजन परोसा जाता है उसमें लोहे के बर्तनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। मान्‍यता है कि पितृपक्ष में लोहे के बर्तनों का प्रयोग करना शुभ नहीं होता है। इस कार्य के लिए पीतल के बर्तनों का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि इसे पवित्र और शुभ माना जाता है। इससे आपके पितृगण संतुष्ट होते हैं और आपको समृद्धि का आशीर्वाद देकर जाते हैं।

तेल का प्रयोग न करें

पितृ पक्ष में जिस भी दिन आपके घर में पितृगण की मृत्यु तिथि हो उस दिन सात्विक जीवन जीना चाहिए और तेल लेपन नहीं करना चाहिए। इस दिन श्रृंगार भी नहीं करना चाहिए। पतृ गणों के प्रति आभार उनकी कमी को दर्शाने के लिए आपको पान भी नहीं खाना चाहिए। पितृ पक्ष में हो सके तो दाढ़ी और बाल नहीं कटवाने चाहिए। पितृ पक्ष के दौरान इत्र और सौंदर्य वर्धक साधनों का प्रयोग भी नहीं करना चाहिए। इसकी वजह यह भी है कि तंत्रशास्त्र में आश्विन मास के दोनों पक्षों को साधना के लिए उत्तम कहा गया है।

इसलिए न करें कोई शुभ कार्य और खरीदारी

शास्त्रों के अनुसार पितृ पक्ष का समय अपनी आत्‍मा की आवाज को सुनकर पितृगणों को याद करने का समय होता है। इसलिए इस वक्‍त कोई भी ऐसा शुभ कार्य करना सही नहीं माना जाता है जो पितृगणों को याद करने की क्रिया में किसी प्रकार की बाधा डाले, या आपका ध्‍यान भटकाए। यही वजह है कि इन दिनों में नई वस्‍तु खरीदने को अच्छा नहीं माना जाता है।

इनका न करें अपमान

पितृ पक्ष में एक बात का ध्‍यान रखें कि किसी का भी निरादर नहीं करना चाहिए। पितृ पक्ष के दौरान यदि आपके द्वार पर कोई भिक्षुक आए तो उसे खाली हाथ न जानें दें, कोई जानवर आए तो उसे भी कुछ खिला दें। इसके साथ ही यदि कोई आपसे मदद मांगे तो भी उसकी यथासंभव मदद जरूर करें। मान्‍यता है कि पितृ पक्ष में हमारे पूर्वज किसी भी रूप में हमारे घर पधार सकते हैं और हमारा व्यवहार देखते हैं।

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