पिंगली वेंकैया: राष्ट्रध्वज तिरंगे के शिल्पकार

पिंगली वेंकैया: राष्ट्रध्वज तिरंगे के शिल्पकार

जिन्होंने डिजाइन किया भारत का राष्ट्रध्वज, गरीबी में हुई उनकी मौत: नेहरू के भारत में झोपड़ी में रहने को थे मजबूर, बेटे ने इलाज बिना तोड़ा दम

उन्होंने ‘A National Flag for India‘ नामक पुस्तिका में भारत के राष्ट्रीय ध्वज के लिए 30 डिजाइंस सुझाए। 1909 से 1921 तक कॉन्ग्रेस के विभिन्न सत्रों में वो इस मुद्दे को उठाते रहे। आखिरकार विजयवाड़ा के कॉन्ग्रेस सेशन में महात्मा गाँधी ने उनकी डिजाइन को अनुमति दे दी।

भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को डिजाइन करने का श्रेय 2 अगस्त, 1876 को आंध्र प्रदेश के भात्लापेनुमार्रू में जन्मे स्वतंत्रता सेनानी पिंगली वेंकैया को जाता है। महात्मा गाँधी के अनुयायी रहे पिंगली वेंकैया का जीवन काफी गरीबी में बीता। असल में उन्होंने उस झंडे का डिजाइन किया था, जिस पर हमारा राष्ट्रध्वज आधारित है। एक तेलुगु ब्राह्मण परिवार में जन्मे पिंगली वेंकैया मद्रास से अपनी शुरुआती शिक्षा पूरी करने के बाद स्नातक के लिए कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी गए।

1947 में देश के स्वतंत्रता होने से पहले भारत का कोई एक राष्ट्रीय ध्वज नहीं था, बल्कि अलग-अलग संगठनों और स्वतंत्रता सेनानियों ने अलग-अलग समय में कई झंडों का प्रयोग किया। 1 अप्रैल, 1921 को जब महात्मा गाँधी विजयवाड़ा पहुँचे थे, जब कृष्णा जिले के पिंगली वेंकैया ने उन्हें अपना डिजाइन किया हुआ ध्वज दिखाया। पेशे से किसान और शिक्षाविद पिंगली वेंकैया ने मछलीपट्टनम में कई शैक्षिक संस्थानों की स्थापना की।

हालाँकि, उनका निधन 1963 में काफी गरीबी में हुआ और जिस देश का राष्ट्रध्वज उन्होंने डिजाइन किया था, वहीं के समाज ने उन्हें जीते-जी उन्हें भुला दिया था। 2009 और 2011 में उनके सम्मान में पोस्टेज स्टाम्प भी जारी किया गया। उन्हें ‘भारत रत्न’ देने की माँग भी उठती रही है। उनकी 146वीं जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें याद किया। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगाँठ के दौरान ‘आज़ादी के अमृत महोत्सव’ के तहत उनके सम्मान में कार्यक्रम आयोजित कर रहा है।

उनके सम्मान में एक और पोस्टेज स्टाम्प केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जारी किया। कई क्षेत्रों में विद्वता रखने वाले पिंगली वेंकैया की रुचि भू-विज्ञान में भी थी। जब वो ब्रिटिश-इंडियन आर्मी का हिस्सा हुआ करते थे, तब उन्हें अंग्रेजों ने द्वितीय बोअर युद्ध में भाग लेने के लिए दक्षिण अफ्रीका भेज दिया था। अक्टूबर 1899 से लेकर मई 1902 तक ये युद्ध बोअर गणराज्य में सोने के खदान मिलने के बाद प्रभावशाली अंग्रेजों के खिलाफ लड़ा गया था।

इसके बाद साक्षिण अफ्रीका के साथ-साथ ‘ऑरेंज फ्री स्टेट‘ की भी हार हुई और अंग्रेजों का वहाँ वर्चस्व कायम हो गया। अंग्रेजों की सेना में रहने के दौरान ही पिंगली वेंकैया को इसका अनुभव हुआ कि कैसे उनका झंडा यूनियन जैक अंग्रेजी सेना को एक रखने के लिए एक माध्यम की तरह काम करता था। यूनियन जैन के तले अंग्रेज दुनिया भर में युद्ध जीत रहे थे और अपनी सेना को संगठित कर रहे थे। जब सेना को यूनियन जैक को सलाम करना होता था, उसी समय पिंगली वेंकैया के मन में पूरे भारत के एक राष्ट्रीय ध्वज का सपना आया।

उसी दौरान 19 वर्षीय पिंगली वेंकैया ने दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गाँधी से भी मुलाकात की। इसके बाद अगले 5 दशकों तक दोनों में अच्छे सम्बन्ध रहे। आंध्र प्रदेश के बापतला शहर में एक बार उन्होंने एक पूरा का पूरा लेक्चर जापानी में दे दिया। अपने भाषाई ज्ञान की वजह से वो लोगों के बीच स्थापित हुए। उन्हें ‘जापान वेंकैया’ कहा जाने लगा। 1916 में उन्होंने सभी देशों के राष्ट्रीय झंडों की एक बुकलेट प्रकाशित की। भारत लौटने के बाद उन्होंने अपना समय राष्ट्रीय ध्वज के सपने को एकाकार करने में ही लगाया।

उन्होंने ‘A National Flag for India‘ नामक पुस्तिका में भारत के राष्ट्रीय ध्वज के लिए 30 डिजाइंस सुझाए। 1909 से 1921 तक कॉन्ग्रेस के विभिन्न सत्रों में वो इस मुद्दे को उठाते रहे। आखिरकार विजयवाड़ा के कॉन्ग्रेस सेशन में महात्मा गाँधी ने उनकी डिजाइन को अनुमति दे दी। इस झंडे में सबसे ऊपर सफ़ेद, उसके नीचे लाल और सबसे नीचे हरा रंग था। लाल और हरा हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रताक था, चरखा स्वराज का और सफ़ेद रंग शांति का।

उस समय वो आंध्र प्रदेश के एक कॉलेज में कार्यरत थे। शुरू में इस झंडे को ‘स्वराज ध्वज’ कहा गया। सफ़ेद रंग उन्होंने महात्मा गाँधी की सलाह पर डाला था। इस तिरंगे को आधिकारिक रूप से स्वीकृत तो नहीं किया गया था, लेकिन कॉन्ग्रेस के कार्यक्रमों में इसे फहराया जाने लगा था। 1931 में इस ध्वज के धार्मिक पहलुओं को लेकर सवाल खड़े किए गए। इसके बाद ‘पूर्ण स्वराज’ वाला झंडा आया। लाल की जगह केसरिया आ गया और सबसे ऊपर केसरिया को रखा गया।

इसके बाद इन रंगों का धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं रहा और इन्हें अलग-अलग चीजें दर्शाने के लिए रखा गया। केसरिया जहाँ साहस और बलिदान का प्रतीक बना, सत्य और शांति का, हरा विश्वास और मजबूती का, जबकि बीच में एक चरखा स्वराज का। जन-कल्याण इसका उद्देश्य था। आज़ादी के बाद ‘नेशनल फ्लैग कमिटी’ बनी, जिसकी अध्यक्षता डॉ राजेंद्र प्रसाद ने की। इसी समिति ने चरखे की जगह अशोक चक्र को रखने का निर्णय लिया।

2015 में तब भारत के शहरी विकास मंत्री रहे वेंकैया नायडू ने विजयवाड़ा के ‘ऑल इंडिया रेडियो’ का नाम पिंगली वेंकैया के नाम पर रखा और उस परिसर में उसकी प्रतिमा स्थापित करवाई। वेंकैया नायडू बाद में देश के उप-राष्ट्रपति बने। उन्होंने कहा कि पिंगली वेंकैया आज़ादी के ऐसे नायक हैं, जिनके योगदान पर उतनी चर्चा नहीं हुई। अफ़सोस ये कि पिंगली वेंकैया की मृत्यु के बाद उनके घर में एक रुपया तक नहीं मिला। वो कर्ज में डूबे हुए थे।

सब्जियाँ उगा कर परिवार का भरण-पोषण करने वाले पिंगली वेंकैया की किसी ने मदद नहीं की। अंतिम दिनों में उनका कर्ज बढ़ता ही चला गया। चित्तनगर में वो एक झोपड़ी में रहते थे, वो भी उस जमीन पर थी जो उन्हें सेना में सेवा के बदले में मिली थी। उनके छोटे बेटे चलपति राव ने इलाज के बिना दम तोड़ दिया। उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनका शरीर तिरंगे में लपेट कर अंतिम-संस्कार के लिए ले जाया जाए और प्रक्रिया के दौरान उसे एक पेड़ से बाँध कर रखा जाए। उस दौरान जवाहरलाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे।

Check Also

Sardar Vallabhbhai Patel Speech: Busts myth of 'Muslims chose India'

Sardar Vallabhbhai Patel Speech: Busts myth ‘Muslims chose India’

Sardar Vallabhbhai Patel Speech: ‘Myth-making‘ is an intrinsic feature of the establishment of any Republic. …