खेरेश्वरधाम मंदिर, शिवराजपुर, उत्तर प्रदेश

खेरेश्वरधाम मंदिर, शिवराजपुर, उत्तर प्रदेश

खेरेश्वरधाम मंदिर कानपुर से 40 किलोमीटर दूर शिवराजपुर में गंगा नदी से लगभग 2 किलोमीटर दूर स्थित है। महाभारत काल से सम्बन्धित इस मंदिर के शिवलिंग पर केवल गंगा जल ही चढ़ता है। मान्यता है कि मंदिर को गुरु द्रोणाचार्य जी द्वारा बनवाया गया था और यहीं उनके पुत्र अश्वत्थामा का जन्म भी हुआ था।

खेरेश्वरधाम मंदिर, शिवराजपुर, उत्तर प्रदेश

कहते हैं कि मंदिर में रोजाना रात्रि में 12 से 1 बजे के बीच द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा पूजा करने के लिए आते हैं। मंदिर के पुजारी गोस्वामी जी के अनुसार रात्रि में मंदिर बंद होने के बाद जब सुबह 4 बजे मंदिर के पट खुलते हैं तो यहां स्थित मुख्य शिवलिंग पर जो सफेद फूल रखे जाते हैं, उनमें से एक फूल का रंग बदल कर लाल हो जाता है।

रात्रि में मंदिर के अन्दर किसी को रूकने नहीं दिया जाता परन्तु परिसर में रूका जा सकता है। मंदिर की उत्तर दिशा में गन्धर्व सरोवर है, जहां यक्ष ने युधिष्ठिर से सवाल पूछे थे।

खेरेश्वरधाम मंदिर की उत्तर दिशा स्थित सड़क के कारण मंदिर के चारों ओर बना नया आयताकार परिसर सन् 2005 में इस प्रकार निर्मित हुआ है कि पूर्वमुखी मंदिर के चारों ओर की दीवारें समानान्तर ना होकर तिरछी बनी हैं।

वर्तमान में चार शिवलिंग के बीच स्थित सिर्फ मुख्य शिवलिंग ही पुराना है, जिसमें दरारें आ गई है। मंदिर एवं मंदिर परिसर सभी नवनिर्मित है। पुजारी जी के अनुसार रात को मंदिर बन्द करने के पहले वह शिवलिंग को चन्दन लगाते हैं और सफेद फूलों से मुख्य शिवलिंग को सजा देते हैं। जब सुबह मंदिर के पट खुलते है तो उसमें पूजा की हुई होती है। जल चढ़ा हुआ होता है। रात्रि में जो सफेद फूल रखे जाते हैं, उनमें से एक फूल लाल रंग में बदल जाता है।

मंदिर परिसर का पुराना और नवनिर्मित दोनों द्वार उत्तर दिशा में हैं और मंदिर का मुख्य प्रवेशद्वार पूर्व दिशा में है जो कि लाल रंग से रंगा हुआ है। मंदिर से लगभग 100 फीट दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित बड़े आकार के गन्धर्व तालाब के कारण यह मंदिर प्रसिद्ध है। परिसर एवं मंदिर के उत्तर एवं पूर्व दिशा के दोनों वास्तुनुकूल द्वार भक्तों को आकर्षित करते हैं। मंदिर का पश्चिम दिशा स्थित पिछला द्वार भी वास्तुनुकूल हैं।

मंदिर परिसर के बाहर उत्तर ईशान कोण में मारुतिनन्दन का मंदिर है जहां एक कुंआ भी है। कुछ वर्ष पूर्व मंदिर से 100 गज दूर सरकार द्वारा जलस्तर बढ़ाने के लिए एक तालाब खुदवाया गया है। यह तालाब मंदिर परिसर के पूर्व ईशान कोण में बन गया है जो उत्तर दिशा स्थित गन्धर्व तालाब के कारण मंदिर को मिल रही प्रसिद्धि को और भक्तों को आकर्षित करने में और अधिक सहायक हो रहा है।

मंदिर से सटकर नैऋत्य कोण में जमीन का बड़ा भाग अन्य दिशाओं की तुलना में ज्यादा नीचा है, जहां बरसात में पानी एकत्र हो जाता है और हमेशा नमी बनी रहती है जहां घनी और ऊंची घास गर्मियों में भी देखने को मिलती है। परिसर की थोड़ी-थोड़ी दूरी पर दक्षिण दिशा में एक और पश्चिम दिशा में भी एक कुंआ है। दक्षिण, पश्चिम दिशा एवं नैऋत्य कोण के वास्तुदोषों से उत्पन्न नकारात्मक ऊर्जा के कारण ही यहां यह भ्रम फैला हुआ है कि मंदिर में रोजाना रात्रि में अश्वत्थामा आ कर पूजा करते हैं। इसी कारण शिवलिंग पर चढ़ाए गए सफेद फूलों में से एक लाल रंग का मिलता है।

आश्चर्य की बात है कि फूल का रंग पीला, हरा, नारंगी, नीला, काला या अन्य किसी कलर में बदला हुआ नहीं मिलता। यह निश्चित ही पुजारियों की चालाकी है जहां एक ओर नैऋत्य कोण के वास्तुदोषों से उत्पन्न नकारात्मक ऊर्जा के कारण पुजारियों द्वारा फैलाया गया भ्रम और छल है, वहीं मंदिर की वास्तुनुकूलताओं के कारण भक्तों के हृदय में यह भ्रम और छल पुख्ता होकर आस्था में बदल गया है।

मेरे द्वारा पुजारी से यह पूछने पर कि यदि मैं आज रात्रि को यहां रूक जाऊं तो क्या यह घटना मुझे देखने को मिल सकती है तो पुजारी जी ने जवाब दिया कि जरुरी नहीं है आप आज यह देख सकें, क्योंकि यह घटना कभी-कभी रोजाना तो कभी-कभी कभी हफ्ते, पन्द्रह दिनों के अंतर से होती है।

खेरेश्वरधाम मंदिर का वास्तु विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट है कि अश्वत्थामा रोजाना यह पूजा करने आते हैं यह भ्रम और छल केवल पुजारी परिवार एवं इससे लाभान्वित होने वाले लोगों द्वारा फैलाया गया है।

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