भ्रम (Kannitverstan) Johann Peter Hebel Short German Story in Hindi

भ्रम (Kannitverstan) Johann Peter Hebel Short German Story in Hindi

Kannitverstan is a short story by the German author Johann Peter Hebel, which first appeared as a calendar story in 1808 in Rheinländischer Hausfreund (Rhenish family friend).

german-passengerएक जरमन यात्री घूमते हुए नीदरलैंड की राजधानी एमस्टर्डम पहुंचा वहां बहुत शानदार इमारत पर उस की नजर पड़ी। उस ने अपनी पूरी यात्रा में इस अधिक शानदार इमारत नहीं देखी थी। वह बड़े आश्चर्य से उस इमारत देखने लगा।

उस इमारत की सुंदरता से वह इतना प्रभावित हुआ कि उस के मालिक का नाम जानने की उस की इच्छा हुई। उस ने पास से गुजरते हुए एक आदमी से पूछा, “क्या आप बता सकते हैं कि यह इमारत किस की है?”

लेकिन वह आदमी जल्दी में था और जरमन भाषा से उतना ही अनभिज्ञ था, जितना कि जरमन यात्री डच भाषा से उस ने जवाब ही ‘कैन्निटवर्स्टन’ कहा और चला गया।

‘कैन्निटवर्स्टन’ डच भाषा का शब्द है, जिस का अर्थ होता है, “आप क्या बोल रहे हैं, मैं समझा।”

लेकिन जरमन यात्री ने समझा कि उस आदमी ने इमारत के मालिक का नाम ‘कैन्निटवर्स्टन’ बताया है, अतः वह खुशीखुशी आगे चल दिया।
घूमतेघूमते वह एक समुद्री मुहाने पर पहुंचा। वहां समुद्र में उसे कई जहाज नजर आए।

इतने सारे जहाजों को देख कर वह आश्चर्यकित रह गया।

एक जहाज से बहुत सी टोकरियों और बोरियों की कतार लगी हुई थी।

वह यह सब काफी देर तक देखता रहा। फिर टोकरी ढोने वाले एक मजदूर को रोक कर उस ने पूछा, “यह सारा सामान किस का है?”

मजदूर जरमन भाषा नहीं समझता था और टोकरी के बोझ से दबा जा रहा था, इसीलिए वह जातेजाते जल्दी में बोला, “कैन्निटवर्स्टन”

यह सुन कर जरमन यात्री सोचने लगा की कैन्निटवर्स्टन कितना धनी आदमी है। इतना धन होने के कारण यदि उस ने इतनी शानदार इमारत बनवा ली है तो इस में आश्चर्य की कोई बात नहीं है।

वह वहां से उदास हो कर लौट पड़ा।

उस के दिमाग में रहरह यह बात गूंज रही थी कि इस दुनिया के धनी लोगों की तुलना में वह कितना गरीब है। कैन्निटवर्स्टन की अमीरी से वह बहुत प्रभावित था।

उस ने निर्णय लिया कि कैन्निटवर्स्टन की तरह वह भी एक अमीर आदमी बनेगा।

अमीर का ख़्वाब देखते हुए वह आगे बढ़ रहा था कि तभी उसे सामने एक अर्थी दिखाई दी।

अर्थी के साथसाथ बहुत से लोग चल रहे थे।

यह दृश्य देख कर उस का दिल भर आया। उस ने सिर से टोपी उतार ली और एक किनारे खड़ा हो गया। कुछ क्षणों के बाद जब अर्थी उस के पास से गुजरी तो उस के साथ जाने वाले एक आदमी को रोक कर उस ने पूछा, “यह किसी की अर्थी है?”

उस आदमी ने जवाब में कहा, “कैन्निटवर्स्टन” और आगे बढ़ गया।

जरमन यात्री की आंखों में आंसू छलक आए। वह दुखी हो कर सोचने लगा, ‘अब कैन्निटवर्स्टन के लिए इतनी सारी संपत्ति का क्या महत्व रह गया है। मैं भी बहुत अमीर बन कर क्या करूंगा। आखिर मरने के बाद मेरे साथ भी केवल एक कफन ही तो जाएगा।”

वह भावुक हो उठा था। अर्थी साथ जाने वाले लोगों में वह भी शामिल हो गया।

थोड़ी देर बाद उस आदमी को, जिसे वह कैन्निटवर्स्टन समझता था, कब्रगाह दफना दिया गया। वह बुझे हुए दिल से लौट पड़ा।

इस घटना बाद जब भी उसे लोगों की अमीरी देख कर अपनी गरीबी एहसास होता तो उसे कैन्निटवर्स्टन की अमीरी, उस की शानदार इमारत और उस के मालदार जहाज़ों की याद आ जाती और साथ ही उस के दिमाग में उभर आती इतने बड़े अमीर व्यक्ति कैन्निटवर्स्टन की कब्र।

∼ जोहन पीटर हेबेल

A young workman from Tuttlingen (then part of the Duchy of Württemberg) visited the cosmopolitan city of Amsterdam for the first time in his life and was impressed by a particularly stately home and a large ship laden with precious commodities. He innocently asked people about the owners of the house and the boat and both times the answer was “Kannitverstan”, which means “I can not understand you”. The simple-minded workman, however, believed that it was the name of a man called “Kannitverstan”, and was impressed by the supposed Mr. Kannitverstan’s wealth, and at the same time felt victimized in the face of his own poverty. Later in the day, he observed a funeral procession and asked one of the mourners who the deceased was. When he received the answer “Kannitverstan” he mourned for the late Mr. Kannitverstan, but at the same time felt very light-hearted, because he realized that death knows no social differences and everything in life is fleeting. Thus, the workman suffered his own poverty much better.

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