जन्मदिन का उपहार: दिल को छू लेने वाली कहानी

जन्मदिन का उपहार: दिल को छू लेने वाली कहानी

जन्मदिन का उपहार: “तुम कल स्कूल क्यों नहीं आईं” रमा मैडम ने अंकिता से पूछा?

अंकिता का मन हुआ कि वह गायब हो जाए या फिर कहीं छुप जाए। पर कहाँ, ले देकर एक बेंच ही है जहाँ पर वह दूसरे बच्चों के पैरों के पीछे छुपने की कोशिश कर सकती थी पर उसे तो पता ही नहीं चलेगा कि मैडम उसे देख रही हैं या नहीं।

“पहले मेरे पास आओ” मैडम ने कहा।

जन्मदिन का उपहार: डॉ. मंजरी शुक्ला

अंकिता ने सोचा कि अब कोई चारा नहीं है इसलिए वह जितना धीरे चल सकती थी, उतना धीरे चलते हुए उसने रास्ता बनाया और मैडम के पास पहुँच गई।

मैडम ने अंकिता को ऊपर से नीचे तक गौर से देखा। उन्हें लगा जैसे वह चार फ़ीट की किसी गुड़िया को देख रही हैं। घुंघराले बाल, कंचे सी भूरी आँखें, गुलाबी होंठ और पूरे चेहरे पर स्याही के निशान।

“किसने किया है ये?” मैडम ने अंकिता के चेहरे को पकड़ते हुए पूछा।

“पता नहीं”।

“क्यों तुमने आवाज़ नहीं सुनी थी”?

“मुझसे बोला कि हम सब अपने चेहरों पर पेंसिल फेर रहे हैं तो तुम भी चेहरे पर पेंसिल चला लो और फिर तुम्हारी पेंसिल चलना सीख जायेगी”।

“ये सरासर झूठ है। मैंने कब कहा था कि पेंसिल चलाना सीख जायेगी” दक्ष चीखते हुए बोला!

“और इसने ये भी कहा था कि पेंसिल स्कूल से भाग जायेगी और बाहर बरसात में खेलेगी क्योंकि उसे बारिश बहुत पसंद है”।

“झूठ झूठ झूठ! मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा था” कहते हुए दक्ष का चेहरा लाल हो गया।

“पहले तो तुम ये बताओ कि तुम पेन क्यों लेकर आये और फिर तुमने अंकिता को क्यों दिया”?

दक्ष सकपका गया और चुपचाप सिर झुकाकर खड़ा हो गया।

मैडम ने एक बच्ची को बुलाया और कहा – “आज से अंकिता सबसे आगे की बेंच पर बैठा करेगी और अब किसी ने भी उसे तंग किया तो मैं प्रिंसिपल सर से उसकी शिकायत करुँगी”।

अंकिता की रुलाई फूट पड़ी।

मैडम ने उसे प्यार से गोदी में उठाकर प्यार से उसका माथा चूम लिया।

मैडम के डाँटने के बाद थोड़ी देर तक तो दक्ष चुपचाप बैठा रहा फिर उसने कहा – “जब अंधे बच्चों के लिए अलग स्कूल बने हैं तो तुम वहाँ क्यों नहीं जाती”?

अंकिता की आँखें छलछला उठी। तभी रिद्धि बोली – “तुम भी जानते हो कि वह कोई हमेशा से अंधी नहीं है”।

“हाँ, अगर उसका एक्सीडेंट नहीं हुआ होता तो वह भी देख सकती थी” चारु ने अंकिता का हाथ पकड़ते हुए कहा।

अंकिता रूंधे स्वर में बोली – “पापा कह रहे थे कि मेरी दवाई खत्म होते ही मैं देखने लगूँगी”।

“हाँ, बिलकुल देखने लगोगी” कहते हुए रिद्धि, अंकिता की कॉपी में ब्लैकबोर्ड पर लिखा हुआ लिखने लगी।

स्कूल की छुट्टी होने पर चारु ने अंकिता का बैग बंद किया और उसका हाथ पकड़कर क्लास के बाहर आ गई।

जब वे बगीचे के पास से निकल रहे थे तो अंकिता ने कहा – “बगीचे में बहुत सारे गुलाब खिले हुए हैं ना”!

चारु ने बगीचे की तरफ़ देखा। चारों तरफ़ गुलाब के फूल खिले हुए थे। कई फूलों पर ओस की बूँदें चमक रही थीं जो दूर से देखने पर बर्फ़ से बनी हुई चमकीली मोती लग रही थीं।

उन गुलाबों के ऊपर पीले और नारंगी रंग की दो तितलियाँ मँडरा रहीं थी।

चारु ने अंकिता की तरफ़ देखा जो एकटक बगीचे की ओर ताक रही थी।

चारु बोली – “अभी तो और भी बहुत सारे गुलाब आएँगे, तब हम दोनों यहाँ आकर उन्हें देखेंगे”।

तभी पीछे से दक्ष भागता हुआ आया और बोला – “ये भला कैसे देखेगी। इसकी आँखें तो कभी ठीक नहीं होगी”।

“फिर बोला तुमने ये?” कहते हुए चारु ने दक्ष की टाई खींच ली और उसे धक्का देकर ज़मीन पर गिरा दिया।

दक्ष की कोहनी छिल गई पर तब भी वह बोलता ही रहा – “सच कह रहा हूँ मैं, ये कभी ठीक नहीं ठीक होगी”।

“मैं अभी इसकी शिकायत प्रिंसिपल सर से कर के आती हूँ” चारु गुस्से से दाँत किटकिटाते हुए बोली।

तभी रमा मैडम वहाँ से जाती हुई दिखाई दीं। चारु दौड़कर उनके पास जा पहुँची और उन्हें सारी बातें बताईं।

चारु का हाथ पकड़कर मैडम तुरंत दक्ष के पास जाकर खड़ी हो गईं।

मैडम को सामने देखकर दक्ष घबरा गया और बोला – “मैं तो बस ये कह रहा था…”

“तुम सही कह रहे थे। हो भी सकता है कि अंकिता देखने लगे और ये भी हो सकता है कि वह कभी नहीं देख पाए और फिर उसे सारी ज़िंदगी ऐसे ही गुज़ारनी पड़े” मैडम ने अंकिता की तरफ देखते हुए कहा।

अंकिता भरभराकर रो पड़ी। जितना दुःख उसे दक्ष के बोलने पर नहीं हुआ था उससे कहीं ज़्यादा तकलीफ़ उसे मैडम के कहने से हुई थी।

चारु भी आश्चर्य से मैडम को देखे जा रही थी। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मैडम दक्ष को डाँटने के बजाय अंकिता को हमेशा के लिए ना देख सकने के लिए कह रही हैं।

चारु की आँखें छलक उठी। उसने आगे बढ़कर अंकिता का हाथ पकड़ा और वहाँ से चल दी।

इस घटना के करीब दो महीने बाद अंकिता की आँखों की रौशनी वापस आ गई।

आज वह बहुत खुश थी क्योंकि उसे लगा ही नहीं था कि अपने जन्मदिन तक उसकी आँखें ठीक हो जाएँगी। वह खूबसूरत सी पीले रंग की झालर वाली फ्रॉक पहने पूरे स्कूल में टॉफ़ी बाँट रही थी।

तभी अंकिता बोली – “रमा मैडम कहीं नहीं दिखी सिर्फ़ उन्हीं को टॉफ़ी देना बाकी रह गया है”।

“उनका फ्री पीरियड होगा तो वह इस समय स्टाफ़ रूम में होंगी” चारु लापरवाही से बोली।

“चलो, वहीँ चलते हैं” अंकिता ने कहा।

“उन्हें तो टॉफ़ी क्या, टॉफ़ी का रैपर भी मत देना। तुम्हें याद नहीं है कि उन्होंने कहा था कि तुम कभी देख नहीं सकोगी” चारु गुस्से से बोली।

“मैं उन्हें यही बात याद दिलाने जा रही हूँ। मैं उन्हें बताउंगी कि उनके अलावा सभी टीचर बहुत अच्छे हैं, सिर्फ़ वही खराब हैं बहुत खराब” अंकिता ने कहा।

“फिर तो मार पड़ेगी” चारु ने डरते हुए कहा।

“तुम स्टाफ़ रूम के बाहर खड़ी रहना। चाहे मुझे मार पड़ जाए पर मैं उनसे कहूँगी ज़रूर ताकि वह और किसी बच्चे को ऐसा ना बोले”।

चारु जब तक रोकती, अंकिता स्टाफ़ रूम की तरफ़ चली गई। चारु उसके पीछे दौड़ी और सीढ़िया चढ़ने लगी।

सीढ़ियों के खत्म होते ही, दाएँ हाथ पर स्टाफ़ रूम था। वे दोनों स्टाफ़ रूम के बाहर खड़ी हो गई।

चारु बोली – “जल्दी जाओ और पिट कर आओ। मैं फिर कह रही हूँ कि ना तो उन्हें टॉफ़ी दो और ना ही उन्हें कुछ कहो”।

चारु की बात पर ध्यान नहीं देते हुए जैसे ही अंकिता अंदर जाने को हुई।

तभी उन्हें दक्ष की आवाज़ सुनाई दी। वह कह रहा था – “मैडम, पर अब तो अंकिता मुझसे और आपसे दोनों से बहुत नफ़रत करेगी। यहाँ तक कि मैं जिस जगह पर बैठता हूँ वह उस बेंच से कम से कम दस बेंच छोड़कर बैठती है चाहे वह क्लास की आख़िरी बेंच क्यों ना हो”।

“कोई बात नहीं। अब वह पहले की तरह देखने लगी है, मेरे लिए इससे बड़ी ख़ुशी की कोई बात नहीं है” मैडम की रूँधी हुई आवाज़ आई।

“पर अगर आप उसे दवाई खाने के लिए कहती, तो वह आपके कहने से दवा ज़रूर खा लेती” दक्ष बोला।

“नहीं खाती। उसके दादा-दादी, मम्मी-पापा, सब मिलकर उसे हर समय दवाई खिलाने के लिए आगे पीछे दौड़ा करते थे पर दवाइयाँ थोड़ी कड़वी होने के कारण वह खाना तो दूर उन्हें देखना भी पसंद नहीं करती थी। मुझे पता था कि वह मेरे कहने से भी नहीं खायेगी इसलिए मैंने तुम्हें उसे परेशान करने के लिए कहा और खुद भी उसका दिल दुखाया। पर जिस दिन चारु ने तुम्हें धक्का दिया था और मैंने तुम्हारा ही पक्ष लिया था, उसी दिन से अंकिता ने तीनों समय दवाई खाना शुरू कर दिया ताकि वह जल्दी से ठीक हो जाए और देखो, दवा के कारण उसकी आँखें दो महीनों में ही ठीक हो गई”।

मैडम की बात सुनकर अंकिता के पैर काँपने लगे। वह स्टाफ़ रूम के अंदर दौड़ती हुई गई और मैडम के सामने जाकर खड़ी हो गई।

अंकिता ने टॉफ़ी का पैकेट मेज पर रखा और मैडम के गले लग कर जोरों से रो पड़ी।

आँसूं भरी आँखों से मैडम ने मन ही मन ना जाने कितने आशीर्वाद अंकिता को दे डाले और बोली-“तुम्हें अपने जन्मदिन का क्या उपहार चाहिए।”

“जो आपने दिया है वो कोई नहीं दे सकता था” अंकिता ने डबडबाई आँखों से कहा।

दक्ष बोला – “अब अगर मुझसे बात नहीं करी तो ये पूरा टॉफ़ी का पैकेट लेकर भाग जाऊँगा”।

रोते-रोते भी अंकिता खिलखिलाकर हँस पड़ी और दक्ष के मुँह में दो टॉफ़ी एक साथ डाल दी।

और स्टाफ़ रूम बहुत देर तक ठहाकों और खिलखिलाहट से गूंजता रहा।

~ “जन्मदिन का उपहार” हिंदी कहानी by “डॉ. मंजरी शुक्ला

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