छठ: सूर्य आराधना का पर्व

छठ: सूर्य आराधना का पर्व

छठ: सूर्य आराधना का पर्व – नीले गगन में लालिमा लिए अस्ताचलगामी सूर्य, गंगा घाट पर टिमसिमाते छोटे-छोटे दीपों का समूह, कमर तक पानी में करबद्ध खड़ी महिलाओं और पुरुषों का समूह और छठ के पारंपरिक गीतों समवेत स्वरों में घुल-मिल कर प्रकृति को सुगंधित और तन-मन को प्रफुछ्लित करती कपूर और धूप-दीप से उठने वाली सुगंध। यह है छठ पूजा का अलौकिक दृश्य। यह दृश्य 30 अक्तूबर, 2022 को नदी नहरों और तालाबों के किनारे देखा जा सकता है जहां छठ ब्रती सूर्य उपासना कर रहे होंगे।

मान्यता है कि सूर्य उपासना का यह पर्व मगध यानी आज के बिहार से शुरू हुआ था, जो व्यापक रूप लेता जा रहा है। आज छठ पूजा झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, पूर्वी उत्तर प्रदेश, नेपाल के तराई क्षेत्रों के साथ-साथ दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में भी मनाई जाती है। अब छठ पूजा क्षेत्र और राष्ट्र की सीमाओं को लांध पश्चिमी देशों में भी पहुंच चुकी है।

छठ: सूर्य आराधना का पर्व – कैसे और कब हुई शुरूआत

चंद्र के छठे दिन काली पूजा के छह दिन बाद छठ मनाया जाता है। लोक मान्याताओं के अनुसार इसकी शुरूआत बिहार के मुंगेर से हुई थी। मुंगेर जिले में सीता मनपत्थर, जिसे सीता चरण भी कहा जाता है, गंगा के नीच में एक शिला पर स्थित है।

माना जाता है कि माता सीता ने सबसे पहले मुंगेर में छठ पर्व मनाया था और यहीं से छठ पूजा की परंपरा शुरू हुई थी। माता सीता मिथिला की थीं, अतः मिथिलांचल में छठ को ‘रनबे माय‘ भी कहा जाता है और यह पर्व वहां जोर-शोर मनाया जाता है।

एक पौणणिक कथा के अनुसार पहले देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गए, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र को प्राप्ति के लिए देवारण्य के देव सूर्य मंदिर में रनबे (छठ मैया) की आराधना कौ थी।

तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुणसंपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलाई। सूर्य पूजा का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। कहा जाता है मगध नरेश ने भी कुष्ठ रोग दूर करने के लिए सूर्य की उपासना की थी। कर्ण की सूर्य उपासना के बारे में प्राय: हर कोई जानता है कि वह घंटों कमर तक जल में खड़े रह कर सूर्य की आराधना और उपासना करते और अर्घ्य देते थे। यह पर्व मुख्य रूप से ऋग्वेद मे सूर्य पूजन, ऊषा पूजन और आर्य परम्परा के अनुसार मनाया जाता है।

संध्या और प्रातः काल में ही पूजा क्यों

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य की शक्तियों का मुख्य खरोत उनकी पत्नौ ऊषा और प्रत्यूषा छठ में सूर्य के साथ-साथ उनकी दोनों शक्तियों की संयुक्त रूप से आराधना की जाती है। प्रात:काल में सूर्य कौ पहली किरण, जिसे प्रभात या ऊषा और साय॑ काल में सूर्य की अंतिम किरण जिसे प्रत्यूषा कहा जाता है, को आर्घ्य देकर दोनों का नमन करते हुए ब्रत का समापन किया जाता है। मुख्य रूप से छठ पूजा नदी, नहर या तालाब के किनारे की जाती है। यदि ऐसा संभव न तो तो घर के आंगन में किसी बड़े पात्र में शुद्ध जल भर कर भी सूर्य की उपसना कौ जा सकती है।

प्रसाद की बात करें तो इसमें 5 गन्ने, जिनमें पत्ते लगे हों, पानी वाला नारियल, अक्षत, पीला सिंदूर, दीपक, घी, बाती, कुमकुम, चंदन, धूपबत्ती, कपूर, दीपक, अगरबत्ती, माचिस, फूल, हरे पान के पत्ते, साबुत सुपारी, शहद का भी इंतजाम कर लें।

वैज्ञानिक महत्व

छठ पर्व को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो षष्ठी तिथि को एक विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है। इस समय सूर्य की ‘पराबैंगनी किरण भी चंद्रमा और पृथ्वी पर आती हैं।

सूर्य का प्रकाश जब पृथ्वी पर पहुंचता हैतो पहले वायुमंडल मिलताहै। वायुमंडल  में प्रवेश करने पर उसे आयन मंडल मिलता है। पराबैंगनी किरणों का उपयोग कर वायुमंडल अपने ऑक्सीजन तत्व को संश्लेषित कर उसे उसके एलोट्रोप ओजोन में बदल देता है।

इस क्रिया द्वारा सूर्य की पराबैंगनी किरणों का अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमंडल में ही अवशोषित हो जाता है।

पृथ्वी कौ सतह पर केवल उसका नगण्य भाग ही पहुंच पाता है, अतः सामान्य अवस्था में मनुष्यों पर उसका कोई विशेष हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि उस धूप द्वारा हानिकारक कौटाणु मर जाते हैं, जिससे मनुष्य या जीवन को लाभ होता है।

~ सिद्धार्थ

Check Also

Somvati Amavasya: Hindu Fasting Fest

Somvati Amavasya: Hindu Fasting Fest

Somvati Amavasya: The term Amavasya refers to the last day of the moon in waning …