अनकहे गीत – मनोहर लाल ‘रत्नम’

प्रेम के गीत अब तक हैं गाये गये।
दर्द के गीत तो, अनकहे रह गये॥

द्रोपदी पिफर सभा में, झुकाये नजर,
पाण्डवों का कहां खो गया वो असर।
फिर शिशुपाल भी दे रहा गालियां,
कृष्ण भी देख कर देखते रह गये।
दर्द के गीत तो, अनकहे रह गये॥

विष जो तुमने दिया, उसको मैंने पिया,
पीर की डोर से, सारा जीवन जिया।
पत्थरों का नगर, देखा रोता हुआ,
मुझसे जो भी मिले, चीखते रह गये।
दर्द के गीत तो, अनकहे रह गये॥

कल हरीशचन्द बिका, आज मैं बिक रहा,
दुख के तन्दूर में, मैं खड़ा सिक रहा।
आज मुझको सभी सरपिफरे ही मिले,
मन्द–मन्द सी हवा में सभी बह गये।
दर्द के गीत तो अनकहे रह गये॥

प्यार बिकने लगा, लोग गाने लगे,
सब पराये मिले, आके जाने लगे।
एक ‘रत्नम्’ मिला, दर्द के द्वार पर,
रेत के घर थे, लहरों से सब ढह गये।
दर्द के गीत तो अनकहे रह गये॥

∼ मनोहर लाल ‘रत्नम’

Check Also

International Design Day History, Activities, FAQs and Fun Facts

International Design Day History, Activities, FAQs and Fun Facts

International Design Day is an opportunity to recognise the value of design and its capacity …