अंधा युग - धर्मवीर भारती

अंधा युग – धर्मवीर भारती

धर्मवीर भारती का काव्य नाटक अंधा युग भारतीय रंगमंच का एक महत्वपूर्ण नाटक है। महाभारत युद्ध के अंतिम दिन पर आधारित यह् नाटक चार दशक से भारत की प्रत्येक भाषा मै मन्चित हो रहा है। इब्राहीम अलकाजी, रतन थियम, अरविन्द गौड़, राम गोपाल बजाज, मोहन महर्षि, एम के रैना और कई अन्य भारतीय रंगमंच निर्देशको ने इसका मन्चन किया है ।

इसमें युद्ध और उसके बाद की समस्याओं और मानवीय महात्वाकांक्षा को प्रस्तुत किया गया है। नए संदर्भ और कुछ नवीन अर्थों के साथ अंधा युग को लिखा गया है और हिन्दी के सबसे मकबूल नाटक में रंगकर्मी के लिए धर्मवीर भारती जी ने ढेर सारी संभावनाएँ छोड़ी हैं,निर्देशक जिसमें व्याख्या ढूँढ़ लेता है। तभी इराक युद्ध के समय निर्देशक अरविन्द गौड़ ने आधुनिक अस्त्र-शस्त्र के साथ इसका मन्चन किया । काव्य नाटक अंधा युग में कृष्ण के चरित्र के नए आयाम और अश्वत्थामा का ताकतवर चरित्र है, जिसमें वर्तमान युवा की कुंठा और संघर्ष उभरकर सामने आता है।

पात्र— अश्वत्थामा, गान्धारी, धृतराष्ट्र, कृतवर्मा, संजय, वृद्ध याचक, प्रहरी-१, व्यास, विदुर, युधिष्ठिर, कृपाचार्य, युंयुत्सु, गूँगा भिखारी, प्रहरी-२, बलराम, कृष्ण

घटना-काल— महाभारत के अट्ठारहवें दिन की संध्या से लेकर प्रभास-तीर्थ में कृष्ण की मृत्यु के क्षण तक

स्थापना— अंधा युग

(नेपथ्य से उद्घोषणा तथा मंच पर नर्तक के द्वारा उपयुक्त भावनाट्य का प्रदर्शन। शंख-ध्वनि के साथ पर्दा खुलता है तथा मंगलाचरण के साथ-साथ नर्तक नमस्कार-मुद्रा प्रदर्शित करता है। उद्घोषणा के साथ-साथ उसकी मुद्राएँ बदलती जाती हैं।)

मंगलाचरण—

नारायणम् नमस्कृत्य नरम् चैव नरोत्तमम्।
देवीम् सरस्वतीम् व्यासम् ततो जयमुदीयरेत्

उद्घोषणा—

जिस युग का वर्णन इस कृति में है उसके विषय में विष्णु-पुराण में कहा है :
‘ततश्चानुदिनमल्पाल्प ह्रास
व्यवच्छेद्दाद्धर्मार्थयोर्जगतस्संक्षयो भविष्यति।’

उस भविष्य में
धर्म-अर्थ हासोन्मुख होंगे
क्षय होगा धीरे-धीरे सारी धरती का।

‘ततश्चार्थ एवाभिजन हेतु।’
सत्ता होगी उनकी।
जिनकी पूँजी होगी।

‘कपटवोष धारणमेव महत्व हेतु।’
जिनके नकली चेहरे होंगे
केवल उन्हें महत्व मिलेगा।
‘एवम् चति लुब्धक राजा
सहाश्शैलानामन्तरद्रोणी: प्रजा संश्रियष्यवन्ति।’
राजशक्तियाँ लोलुप होंगी,
जनता उनसे पीड़ित होकर
गहन गुफ़ाओं में छिप-छिप कर दिन काटेगी।

(गुफ़ाओं में छिपने की मुद्रा का प्रदर्शन करते-करते नर्तक नेपथ्य में चला जाता है)

युद्धोपरान्त,

यह अन्धा युग अवतरित हुआ
जिसमें स्थितियाँ, मनोवृत्तियाँ, आत्माएँ सब विकृत हैं

है एक बहुत पतली डोरी मर्यादा की
पर वह भी उलझी है दोनों ही पक्षों में
सिर्फ़ कृष्ण में साहस है सुलझाने का
वह है भविष्य का रक्षक, वह है अनासक्त

पर शेष अधिकतर हैं अन्धे
पथभ्रष्ट, आत्महारा, विगलित
अपने अन्तर की अन्धगुफ़ाओं के वासी
यह कथा उन्हीं अन्धों की है;
या कथा ज्योति की है अन्धों के माध्यम से

Check Also

BINU DANCE OF BAHAG BIHU

Bohag Bihu Festival Information: Assam Festival Rongali Bihu

Bohag Bihu Festival Information: The Rongali Bihu is the most important among all the three …