नेकी और नदी के बीच - राजकमल

नेकी और नदी के बीच – राजकमल

इसी बीच मैकेनिकआ गया था। एक चाय की पुकार लगाकर वह अपना ठीया सजाने लगा। मैंने उसे काम बताया और खोखे पर लौटकर चाय के पैसे देने लगा। वे बुजुर्ग एक किस्सा सुना रहे थे –

“कानों सुनी-आंखिन देखी, आप बीती बात है। महीना पहले का वाकया है। यही कोई, पचपन-साठ की उम्र की औरत, कैप्री के साथ टीशर्ट और पैरों में किसी नामी-गिरामी कंपनी के जूते पहने सैर पर निकली थी। संयोग से मैं उसके पीछे, लगभग दस गज दूरी पर चल रहा था। तभी क्या देखा कि एक छरहरी काठी का हमउम्र आदमी मेरे पीछे से स्पीड में आया और आगे जाकर उस औरत के पास क्षण भर को ठिठका, इशारों में कुछ कहा और कोहनी मार कर आगे बढ़ गया। औरत खामोश रही। मेरी नजर में यह सरेआम बदसलूकी थी। मैं लपक कर उसके पास पहुंचा, शायद कुछ मदद कर सकूं।”

इतना कहकर वह सज्जन चुप हो गए। श्रोताओं के चेहरे पर कौतूहल भरी जिज्ञासा छाने लगी। यह सन्नाटा सभी को खलने लगा। वाकया सुनकर मैं ज्यादा हैरान था। अजीब इत्तेफाक है! मैं कहूं तो क्या कहूं? कैसे कहूं? इस घटना का एक सच मैं भी जानता था। अगर बताउं तो क्या कोई यकीन करेगा? सब मुंह फेर कर हंसेंगे। मैं साहस नहीं जुटा पाया और निर्लिप्त होने की गरज से मैकेनिक की ओर देखने लगा, जो ट्यूब को टायर से बाहर खींच रहा था। लेकिन मेरे भीतर वह घटना खुलने लगी –

मैं और मेरी पत्नी किरण। सुबह की सैर हमारे जीवन में कभी नियमित नहीं रही। एक लंबे विराम के बाद हमने सैर पर फिर जाना शुरू किया था। मेरी और उसकी शारीरिक संरचना में कुछ गैरजरूरी फर्क हैं। वह तंदुरस्त हैं, मैं कृशकाय। उसे रक्तचाप के साथ सांस की तकलीफ भी है। वह धीरे-धीरे सैर करती है। सांस फूल जाता है तो रुककर फिर ताजादम होती है और फिर चल पड़ती है। जाहिर है इस तरह वह पीछे छूट जाती है। मैं तेज गति से सैर करता हूं। एक बार किसी डॉक्टर से सुना था – सैर में तेज चलना जरूरी है। शुरू करो तो पैंतीस-चालीस मिनट तक जारी रखो और बीच में ठहर कर बतियाना नहीं… वरना! सैर का कोई फायदा नहीं। लेकिन इस तरह की सैर में हमसफर का लुत्फ नहीं मिल पाता था।

सैर के वक्त हम असुरक्षा के भाव से डरे, अपने साथ मोबाइल या अन्य सामान-घड़ी, अंगूठी, चेन आदि भी नहीं रखते थे। हां, सुविधा के लिए एक सिस्टम बना लिया था। सैर का रूट, वापस घर लौटने का समय और यह कि दूध लेते हुए जाना है या नहीं – हम यह सब इशारों में तय कर लेते थे। मुझे चिंता अवश्य रहती कि पत्नी की तबियत ज्यादा खराब न हो जाए या किसी लूटपाट, छेड़छाड़ की शिकार न हो जाए! इसलिए मैं आगे जाकर पीछे लौट आता था- पत्नी के पास तक और फिर मुड़कर आगे चला जाता था। इस तरह तीन-चार बार उससे आमना-सामना हो जाता, खैरियत मालूम हो जाती थी। ऐसा करते हुए मैं स्वयं को जहाज का पंछी जैसा समझने लगता जो बार-बार अपने जहाज की ओर लौट आता है।

Check Also

Nitin Gadkari Biography: Early Life, Political Career, Achievements

Nitin Gadkari Biography: Early Life, Political Career, Achievements

Nitin Gadkari is the current Minister for Road Transport & Highway in the Government of …