नन्हे छोटू की बड़ी कहानी: मानवाधिकार पर बाल-कहानी

नन्हे छोटू की बड़ी कहानी: मानवाधिकार पर बाल-कहानी

सर्दी की छुट्टियाँ आ गई थी और रिमझिम के तो खुशी के मारे पैर ज़मीन पर ही नहीं पड़ रहे थे। उसके पापा उसे उसकी बेस्ट फ्रैंड स्वाति के घर छोड़ने के लिए तीन दिन के लिए तैयार हो गए थे।

रिमझिम और स्वाति एक दूसरे के साथ जी भर कर मस्ती करना चाहती थी, इसलिए दोनों ही बहुत खुश थी। स्वाति की मम्मी को बागवानी का बहुत शौक था और वो ढेर सारे रंगबिरँगें फूल अपने बगीचे में लगाया करती थी इसलिए रिमझिम को स्वाति के बगीचे में बैठकर उसके साथ बातें करना बहुत पसंद था।

तभी रिमझिम के मम्मी ने उसे दुलारते हुए कहा – “तुम स्वाति के जा रही हो तो तीन दिन खूब जी भरकर खेल लेना, उसके बाद एक महीने खूब पढ़ाई करनी है आखिर फ़िर बोर्ड की परीक्षाएं भी है”।

रिमझिम के पापा हँसते हुए बोले – “तुम्हारी मम्मी घुमाफिराकर हर जगह पढ़ाई को ले ही आती है”।

ये सुनकर रिमझिम और मम्मी ठहाका मारकर हँस पड़े।

जैसे ही उसके पापा ने उसे कार में बैठाया वह खुश होते हुए मम्मी से बोली – “मैं तीन दिनों में लौट आऊँगी और हर रोज आपको फोन करुँगी”।

मम्मी रिमझिम की खुशी देखकर मुस्कुरा दी।

जैसे ही रिमझिम कार से उतरी, स्वाति पहले से ही दरवाजे पर उसे लेने के लिए खड़ी हुई थी।

रिमझिम दौड़ कर उसके गले लग गई।

रिमझिम के पापा ने मुस्कुराते हुए कार स्टार्ट करी और वहाँ से चले गए।

दोनों अभी सोफ़े पर बैठकर गप्पें लड़ा ही रही थी कि तभी स्वाति की मम्मी वहाँ आ गई।

रिमझिम ने उन्हें नमस्ते किया तो स्वाति की मम्मी बोली – “अरे बेटा, इतनी ठंड है और तुमने सिर्फ़ एक पतला सा स्वेटर पहना है। वो स्वाति की तरफ़ देखते हुए बोली – “स्वाति, रिमझिम को अपना एक नया स्वेटर दे दो, वरना उसे ठंड लग जाएगी”।

रिमझिम ने हँसते हुए कहा – “आंटी, मेरे बैग में स्वेटर है पर मुझे इस वक्त सर्दी नहीं लग रही है”।

“नहीं रिमझिम, आजकल पता ही नहीं कब सर्दी लग जाती है। तुम लोगों को बहुत बच कर रहना चाहिए”।

रिमझिम को स्वाति की मम्मी से मिलकर बहुत अच्छा लगा। उसने मन ही मन सोचा कि वो कितनी दयालु महिला है।

उसके मन में उनके लिए आदर और सम्मान के भाव जाग उठे। तभी स्वाति की मम्मी ने आवाज़ लगाई – “छोटू, जरा इधर आना”।

अंदर से किसी बच्चे की महीन आवाज आई – “अभी बर्तन माँज रहा हूँ”।

“अरे, बर्तन बाद में धो लेना। जल्दी से इधर आ”।

“आया… कहते हुए करीब 9 या 10 वर्ष का गोरा सा पतला दुबला लड़का खड़ा था। वो सफ़ेद रंग की महीन सूती बनियाइन और घुटनों तक की भूरी हाफ़ पेंट पहने थरथरा रहा था।

रिमझिम की आँखें आश्चर्य से खुली रह गई। दिसंबर की जिस कड़कड़ाती जिस ठंड में वो ऊनी दस्ताने, टोपी, जूते और मोजे पहन कर भी ठंडी हवा महसूस कर रही थी वहीं वो छोटा सा बच्चा आधी गीली बनियाइन में थरथराता हुआ खड़ा था।

स्वाति की मम्मी बोली – “जल्दी से जा और दीदी की दोस्त के लिए गरमा गरम कॉफी बनाकर ले आ… और हाँ, दोनों के लिए बाहर बगीचे में जाकर कुर्सी भी लगा देना”।

“जी, अभी अभी बना कर लाता हूँ” कहते हुए छोटू ने रिमझिम की तरफ़ मुस्कुराकर देखा पर उसकी आँखों में उदासी साफ़ नज़र आ रही थी।

रिमझिम ने जब स्वाति की तरफ आश्चर्य से देखा तो स्वाति ने नजरें नीचे कर ली इसका मतलब स्वाति को भी छोटू का काम करना बिल्कुल पसंद नहीं आ रहा था।

जब तक वे दोनों बगीचे में पहुँचे तब तक छोटू वहाँ पर दो कुर्सियाँ लगा कर कॉफी लिए खड़ा था।

सर्दी के ढेर सारे रंगबिरँगें फूलों के बीच में बैठकर कॉफी पीना रिमझिम का सपना था पर जब छोटू ने उसे कॉफ़ी पकड़ाई तो पता नहीं क्यों वो छोटू से नज़रें नहीं मिला सकी। ना तो उसे कॉफी अच्छी लग रही थी और ना ही फूलों से लदा वो बगीचा। वो तुरंत अपने घर भाग जाना चाहती थी, पर क्या कहे स्वाति से। वो कितना खुश है उसे देखकर फ़िर तो उस घर में रिमझिम के लिए 3 दिन काटना मुश्किल हो गया।

जूतों में पॉलिश से लेकर घर के जूठे बर्तन तक की ज़िम्मेदारी छोटू की थी।

स्वाति की मम्मी जब रिमझिम से दया, ममता और त्याग की बातें करती तो उसे उनसे और वितृष्णा हो जाती। जब सब बैठकर डाइनिंग टेबल पर बैठकर लज़ीज़ व्यंजन उड़ा रहे होते तो बेचारा छोटू सबको चौके से गर्म गर्म फ़ुल्के लाकर पकड़ा रहा होता। रिमझिम के गले में हमेशा निवाला अटक जाता और वो छोटू की नज़रों का सामना नहीं कर पाती।

अपने घर जाने से पहले उसके कदम अचानक ही छोटू के कमरे की ओर मुड़ गए। कमरे के बाहर तक सिसकियों की आवाज़ें आ रही थी।उसने हल्का सा दरवाज़ा खोला तो छोटू घुटनों के बीच में सर झुकाए हिलक हिलक कर रो रहा था। रिमझिम उससे कुछ पूछना चाहती थी पर उसका गला रूंध गया और वो दौड़कर अपने कमरे में आ गई।

“क्या हुआ?” स्वाति ने घबराते हुए पूछा।

“मुझे अभी मेरे घर भेज दो। मैं अब यहाँ नहीं रह सकती”।

स्वाति बोली – “मैं जानती हूँ कि तुम छोटू को लेकर बहुत परेशान हो। मैं भी पापा मम्मी से कितनी बार कह चुकी हूँ कि उसे उसके घर भेज दो।”

“फ़िर… फ़िर, क्यों नहीं भेजते? तुम लोग तो कितने अमीर हो… तुम्हें कोई भी दूसरा नौकर मिल जाएगा” रिमझिम ने अपने आँसूं पोंछते हुए कहा।

“कहते हुए भी शर्म आ रही है कि मेरे मम्मी पापा ऐसे है। पर छोटू के पापा ने मम्मी से पाँच हज़ार रुपये उधार लिए थे और वो दे नहीं पाये इसलिए पापा छोटू को यहाँ पर काम करने के लिए ले आए”।

रिमझिम ने कहा – “मैं दे दूँगी अपने पापा से कहकर तुम्हें पाँच हज़ार रुपये, पर तुम प्लीज़ छोटू को छोड़ दो”।

“नहीं नहीं, तुम इस बारे में कुछ मत कहना, वरना पापा मुझे बहुत मारेंगे” कहते हुए स्वाति रुआँसी हो गई।

अचानक जैसे रिमझिम को कुछ याद आया और वो बोली – “तुझे याद है, हमारी शर्मा मैडम बता रही थी कि हमारे देश में 28 सितम्बर 1993 को मानवाधिकार कानून लागू किया गया था”।

“हाँ याद है, और इसी 12 अक्टूबर को सरकार ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का भी गठन किया जिसमें राजनीतिक और नागरिक अधिकार के साथ ही सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकार भी आते है” स्वाति उत्साहित होते हुए बोली।

“हाँ, मैडम ने हमें ये भी बताया था कि अलग अलग अपराधों के अंतर्गत बच्चों को खरीदना या बेचना, बाल मज़दूरी , मानव तस्करी, बाल विवाह, महिला उत्पीड़न जैसे कई और भी अपराध शामिल है”।

“हाँ… सुन रिमझिम धीरे से बोली – “हम पुलिस को खबर कर देते है”।

“नहीं नहीं… मैं अपने मम्मी पापा के बिना कैसे रहूँगी”… स्वाति घबराते हुए बोली।

“तू तो बहुत ही बेवकूफ़ है। ध्यान से सुन, मेरे पास एक प्लान है” रिमझिम बोली और उसने स्वाति को धीरे से कुछ बताया जिसे सुनकर स्वाति का चेहरा खिल उठा।

अगली सुबह जब स्वाति के मम्मी और पापा बैठकर चाय पी रहे थे तभी वहाँ एक इंस्पेक्टर और दो सिपाही आए।

इंस्पेक्टर के हाथों में हथकड़ी थी, जिसे देखकर स्वाति के पापा घबड़ा गए और बोले – “आप… आप कौन… आप यहाँ कैसे ?”

“बताएँगे… हम कौन… पहले ये बताओ कि बाल मज़दूरी कराते शर्म नहीं आती। इंस्पेक्टर उन्हें घूरते हुए बोला।

“स्वाति के पापा धम्म से कुर्सी पर बैठ गए और हकलाते हुए बोले – “बाल मज़दूरी”।

“आपके ख़िलाफ़ किसी ने अज्ञात रिपोर्ट दर्ज़ कराई है कि आप ने एक छोटे से बच्चे को ख़रीदा है और इस घर का सारा काम आप उसी से करवाते है।”

स्वाति की मम्मी तो ये सुनते ही दहाड़े मारकर रोने लगी और बोली – “मैंने इन्हें हज़ार बार समझाया था कि चौदह साल से कम उम्र के बच्चे से काम करवाना कानूनन जुर्म है और इसके लिए हमें जेल भी हो सकती है।”

“हाँ, आप बहुत समझदार है बहनजी, अब चलिए जेल” इंस्पेक्टर ने उनकी ओर देखते हुए गुस्से से कहा।

स्वाति के पिता के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी और वो हाथ जोड़ते हुए बोले – “हमें माफ़ कर दीजिये। इसके पापा ने हमसे पाँच हज़ार रुपये उधार लिए थे इसलिए… वो वो”।

“तो, तो क्या उसके मासूम बच्चे का जीवन बर्बाद कर देंगे आप। अब आप पहले हवालात की हवा खाइए फिर आगे देखते है” इंस्पेक्टर जोर से चीखते हुए बोला।

“नहीं नहीं, हमसे बहुत बड़ी गलती हो गई। हम आज ही उस बच्चे को उसके घर भेज देंगे।”

“और सुना है आपने उसको इतना काम करवाने के बाद भी कोई पैसा नहीं दिया” इंस्पेक्टर हवा में हथकड़ी घुमाते हुए बोला।

“दूँगा इन्स्पेक्टर साहब, सारे पैसे दूँगा” कहते हुए स्वाति के पापा का चेहरा डर के मारे पीला पड़ गया।

“कैसे विश्वास करू आपका?” इंस्पेक्टर ने उन्हें गौर से देखते हुए कहा।

“मैं अभी आपको पैसे दे देता हूँ। ये लीजिये दस हज़ार रुपये।”

“ठीक है… मैं शाम को छोटू के पिताजी को लेकर आऊँगा उसे लेने। ये पैसे भी बिना डराए धमकाए उन्हें ही दे दीजियेगा।”

“जी… ज़रूर ज़रूर…” कहते हुए स्वाति के पापा के आधे शब्द डर के मारे गले में ही अटक गए। और वे वहीँ मेज पर रखे जग से दो गिलास पानी गटक गए।

“ठीक है…” कहते हुए इंस्पेक्टर और उनके साथ आए सिपाही वहाँ से चले गए। स्वाति की मम्मी अभी भी रोए जा रही थी और पापा सर पर हाथ धरकर बैठे हुए थे। और छोटू, वो तो रिमझिम और स्वाति के साथ उसके कमरे में मस्ती कर रहा था। आखिर आज महीनों बाद वो अपने घर जाने वाला था।

स्वाति और रिमझिम के अलावा ये कोई नहीं जान पाया कि वो इंस्पेक्टर रिमझिम के पापा का दोस्त था जो उनके कहने पर छोटू को छुड़ाने आया था।

~ डॉ. मंजरी शुक्ला

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