Heart Touching Story of A Teacher and A Student गुरु दक्षिणा

गुरु दक्षिणा – डॉ. मंजरी शुक्ला

दिन इसी तरह गुज़रते जा रहे थे, शर्मा जी का ब्लड प्रेशर नार्मल होने का नाम ही नहीं ले रहा था। वो दुनियाँ भर के शान्ति पाठ का सस्वर पाठ करते मन में ओम का मंत्र भी जपते पर जैसे ही सुरभि को धीरज से हर बात में अव्वल आते देखते , नके मस्तिष्क की कोई नस बेसुरे टेबल की भाँती बजने लगती थी। पर प्रत्यक्ष रूप में वो किसी को भी अपने मन के भाव नहीं पढ़ने देते थे और ना ही उनके तटस्थ चेहरे को कभी कोई पढ़ पाया था सिवा सुरभि के… वो जानती थी कि मास्टर जी उससे बहुत नफ़रत करते थे और जहाँ वे कक्षा के सभी छात्रों को बड़े उदार भाव से नंबर देते वहीँ उसकी कॉपी जाँचते वक़्त तो मच्छर से भी अपना खून चुसवाने को तैयार रहते पर उनकी निगाहें गलतियां ढूँढने से नहीं हटती। जब कोई गलती नहीं निकाल पाते तब अपने मन से नंबर काट लेते और कहने के लिए उनके पास सौ बहाने होते – “दूसरों की कॉपी में ताका-झांकी कर रही थी या फिर देर से कॉपी जमा की, इसलिए नंबर मजबूरन काटना पड़े।”

हालाँकि कहीं ना कहीं उनकी आत्मा ज़िंदा थी इसलिए वो कभी यह बात सुरभि की आँखों में आँखें डालकर नहीं कह पाए पर सुरभि ने कभी उनकी किसी बात का प्रतिरोध नहीं किया वो जानती थी उनके मन की पीड़ा और उनके गृहस्थ जीवन की लाचारियाँ।

इस साल मास्टर साहब रिटायर होने वाले थे और अगर इस साल धीरज पास ना हो सका या कहीं नौकरी नहीं पा सका तो उनके घर में दो जून रोटी की दिक्कत हो जायेगी। सुरभि बचपन से ही धीरज को बहुत पसन्द करती थी और बड़े होने पर उससे शादी के ख़्वाब भी देखती रहती थी पर वो जानती थी, उसके अरमान कपूर की भाँती है जो कब जल कर हवा में घुल कर अपने नामो निशान का कारवाँ लेकर गायब हो जाएँगे कोई जान ही नहीं पायेगा। समय बीतता रहा… धीरज की सेहत पता नहीं कैसे निखरने लगी। वो दिनों दिन बेहद आकर्षक होता जा रहा था। शर्मा जी खुद हैरान थे कि आखिर धीरज ने दुबारा संयमित जीवन कैसे जीना शुरू कर दिया। कहाँ तो वो कालेज जाते वक्त बड़ी मुश्किल से अपनी तीन बहनों और माँ के प्यार मनुहार के बाद ऐसे उठता जैसे राजा महाराजा उठा करते होंगे और कहाँ बिना नागा अलार्म घड़ी की ट्रिन ट्रिन से ठीक पाँच बजे बिस्तर छोड़कर सैर पर निकल जाता।

ना खाने में नखरा – ना बोलने में झिझक… अब पहले की तरह लौकी देखकर उसे पहलवानों का मुद्गर याद नहीं आता था और ना करेला देखकर मितली… ये सब कमाल सुरभि का ही था ये वो भली भांति जान चुके थे। जो काम वो बरसों में नहीं कर पाये थे वो सुरभि ने कुछ ही समय में कर दिखाया था पर मास्टर साहब इस बात से भी खुश नहीं थे क्योंकि उन्हें लगता था कि कही सुरभि उनसे बदला लेने के लिए ही तो उनके इकलौते बेटे को अपने बस में नहीं कर रही हैं। अकेले में बैठकर सोचते कि उन्होंने उम्र भर सुरभि की बेइज्जती कि और उसे बात बात पर नीचे दिखाया इसलिए सुरभि अब उनसे उनका बता हथिया लेना चाहती हैं। रातों को नींद ना आती वो जितना इस ख्याल को झटकते, वो उन पर और ज्यादा हावी हो जाते। कभी कभी नींद में उठकर बड़बड़ाने लगते कि बचाओ बचाओ… देखो वो धीरज को अपने साथ ले जा रही हैं। पत्नी, बेटियाँ और धीरज उन्हें घेरे खड़े रहते पर वो किसी की तरफ आँख उठकर ना देखते। जितना धीरज में आत्मविश्वास आ रहा था उतना ही शर्मा जी का मनोबल गिरता जा रहा था। जब उन्हें कुछ भी समझ में नहीं आता तो आधी रात में भी जाकर कुएँ से पानी भरकर नहाने लगते। पत्नी बेचारी अधपगला सी गई थी उसे लगता कि कहीं शर्मा जी किसी चिंता में डूबकर आत्महत्या ना कर ले, इसलिए उसकी नींद चैन सब उड़ चुका था और वो बस चुपचाप उनके पीछे -पीछे चलती रहती। कुछ दिनों बाद नतीजा यह हुआ कि पत्नी की हालत ज्यादा खराब रहने लगी क्योंकि शर्मा जी तो कालेज से आने के बाद खा पीकर दिन में सो जाते थे पर पत्नी को तो कोल्हू के बैल की तरह दिन भर काम करना पड़ता था और रात में जाग- जागकर शर्मा जी की चौकसी।

धीरज भी उनसे हर तरह से पूछ कर थक चुका था पर शर्मा जी आखिर बताते तो क्या बताते। किसी के सद्गुणों से वो जले मरे जा रहे हैं या फिर धीरज को उन्हें छोड़ देने का डर उन्हें चौबीसों घंटे सता रहा हैं। समय तो अपनी घड़ी से मुस्कुराता हुआ चलता रहा पर शर्मा जी जरूर थक कर बैठ चुके थे। परीक्षाओं के दिन नज़दीक आते जा रहे थे और कालेज की जिम्मेदारिओं ने उन्हें आजकल इतना व्यस्त कर रखा था कि वो सुरभि पुराण अपने दिमाग में लाने से बच रहे थे। परीक्षाएँ हुई और हमेशा की तरह इस बार भी सुरभि ने पूरा कालेज टॉप किया पर आश्चर्य और ख़ुशी तो उन्हें इस बात की हुई कि बड़ी मुश्किल से पास होने वाला धीरज बस कुछ ही नंबरों से सुरभि से पीछे था। मास्टरजी को पहली बार अपने पुत्र की योग्यता पर घी के दिए जलाने का मन हुआ हाँ, ये बात और हैं कि घर पर उन्होंने उस दिन जरा सा घी डलवाकर खीर बनवाई और अपने हाथों से धीरज को खिलाई। उनकी पत्नी भी निहाल हुई जा रही थी वो खीर में जितनी ममता उड़ेल सकती थी उससे ज्यादा अपने हाथों की फुर्ती से उड़ेल रही थी। बहनें आस पड़ोस में दौड़ दौड़ कर सबको अपने भाई की यशो गाथा का बखान कर आई थी। पर जिस इंसान की वजह से ये दुष्कर कार्य संभव हुआ था वो हमेशा की तरह कहीं अकेली बैठी मौन थी।

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