Story of Famous Sufi Saint Hazrat Nizamuddin अभी दिल्ली दूर है

“अभी दिल्ली दूर है” की कहावत और हजरत निज़ामुद्दीन औलिया

संत की दरगाह की राजधानी दिल्ली की आम जनता में इसी बात की चर्चा रहती थी। लोगों ने देखा कि दरगाह पर दुर्ग की, फकीर पर बादशाह की जीत होने लगी है। इस बात से शेख निजामुद्दीन और उन के लाखों शिष्यों को बड़ा धक्का लगा। अंत में एक योजना बनाई गई।

तुगलकाबाद का निर्माण कार्य दिन में ही चलता था। दिन भर की कड़ी मेहनत के बाद मजदूर खापी कर रात को वहीं पड़े रहते थे। यदि कुछ मजदूर रात को दीपकों की रोशनी में काम करने लगें तो समस्या का समाधान हो सकता है। निजामुद्दीन के प्रति भक्ति और श्रद्धा होने के कारण अधिकांश मजदूर रात को भी काम करने को तैयार हो गए फलतः दरगाह का रुका हुआ काम फिर से चल पड़ा।

जब जासूसों ने सुलतान गियासुद्दीन तुगलक को इस बात की सूचना दी तो वह भड़क उठा। यह तो एक साधारण फकीर द्वारा दिल्ली के सुलतान की पराजय थी। उस ने हुक्म दिया, ‘दिल्ली और उसके आसपास सभी नगर, उपनगर तथा गांवों में तेल की बिक्री पर निषेधाज्ञा लागु कर दी गई। लोग उत्सुक हो कर प्रतीक्षा करने लगे कि देखें अब संत निजामुद्दीन क्या कदम उठाते हैं। लोगों के मुंह पर तरह-तरह की बातें थीं। कुछ कहते थे कि संत बादशाह से हार जाएगा, कुछ कहते थे संत कभी हार मान कर नहीं बैठेगा। इन दिनों राजधानी का वातावरण एक शक्तिशाली बादशाह के हठ और एक फकीर के साहस की टक्कर के कारण बड़ा उत्तेजित हो रहा था। कुछ लोग तुगलकशाह को गालियां देते, कुछ शेख भी समय देख कर चलने की बात कहते। ऐसे लोगों की भी कमी नहीं थी जो इन दोनों के ही पास जाते और उन्हें एक दूसरे विरुद्ध भड़का कर तमाशा देखने की कामना करते।

दों रातों तक तो दरगाह में काम रुका रहा, पर तीसरी रात हजारों दिल्ली वासियों ने आश्चर्यचकित हो कर देखा कि शेख की दरगाह पर और दिनों से दोगुने चिराग जल रहे हैं और उनकी तेज रोशनी में सैंकडों भक्त्त और मजदूर चिनाई कर रहे हैं। लोगों को आश्चर्य था कि सुलतान की कठोर आज्ञा के विपरीत फकीर को इतना तेल कहां से मिल गया। प्रातःकाल होते ही सारी दिल्ली तथा आसपास के इलाके में आग की तरह यह बात फैल गई कि शेख निजामुद्दीन ने गियासपुर के निकटवर्ती एक तालाब के जल को अपनी सिद्धि से तेल में बदल दिया है। शेख उस पानी में से जितने घड़े निकालते हैं, वे तुरंत देखते ही देखते तेल में बदल जाता है। सूफी संत की इस प्रचलित सिद्धि से सारी दिल्ली हिल गई। सुलतान के किले और महलों तक में मानो भूचाल आ गया, हड़कंप मच गया। सुलतान और उसके अमीर आतंकित और भयभीत हो उठे।

सुलतान ने विश्वस्त व्यक्तियों द्वारा उस तालाब के पानी की जांच कराई। निश्चय ही तालाब में पानी ही था, तेल नहीं। फिर शेख के पास इतना तेल कहां से आया? बहुत संभव है उस के लाखों शिष्यों में से कुछ ने गुप्त रूप से अपने तेल भंडार शेख को सौंप दिए हों। यह तो बादशाह की करारी हार थी। शेख निजामुद्दीन की प्रशंसा और उस की निंदा एक वाक्य में होने लगी। सुलतान क्रोध से पागल गया। उसने सारे शहर का कूड़ा करकट, कचरा, मलवा उठवा कर उस सुंदर, स्वच्छ तालाब में गिरवा दिया जिस से उसका सारा पानी दूषित हो गया। शेख निजामुद्दीन औलिया ने जब सुलतान के इस कुकृत्य को सुना तो उसने उसकी नई नवेली दुलहिन की तरह सजी राजधानी तुगलकाबाद की ओर हाथ उठा कर कहा, “या बसे गूजर, या रहे ऊजर।” अर्थात या तो इस जगह गुजर बसेंगे या यह वीरान हो जाएगी।

शेख निजामुद्दीन का शाप तुगलकाबाद पर सत्य उभरा। यहां कुछ दिन बाद सचमुच गूजरों का बोलबाला हो गया। क्योंकि सुलतान फिरोज ने जब से एक गूजर कन्या से विवाह किया था, उस का प्रभाव दिल्ली में बहुत बढ़ गया था। मुहम्मद तुगलक ने दिल्ली शहर को स्वयं उजाड़ कर वीरान कर दिया था। उसके कुछ वर्ष बाद तैमूर लंग के भयंकर आक्रमण ने भी दिल्ली और उसके आसपास की बस्तियों की सारी अट्टालिकाओं को रख कर दिया। नगर वासियों का तीन दिन तीन रात तक कत्लेआम हुआ और उनके घर से अनाज का एक एक दाना तक लूट लिया। कई लोगों ने संत के शाप को अपनी आखों से सत्य उतरते देखा था।

दिल्ली के गूजरों के बसने और वीरान होने के इस शाप से सुलतान गियासुद्दीन तुगलक भी आतंकित हो उठा। विद्रोह भड़कने के भय से वह शेख निजामुद्दीन औलिया को भी बंदी नहीं बना सकता था। वह किसी ऐसे उपाय की खोज में था जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। कुछ चुगलखोर दरबारियों ने सुल्तान को सुझाया कि शेख निजामुद्दीन को किसी मामले में उलझा लिया जाए। किसी भी कानून का विरोध करने के अपराध में उसे फांस लेना ठीक न होगा। अपने पिट्ठू काजी और उलेमाओं द्वारा शेख को अपराधी सिद्ध करवाना भी बहुत सरल है। इस तरह सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी।

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