टल नही सकता - कुंवर बेचैन

टल नही सकता – कुंवर बेचैन

मैं चलते – चलते इतना थक्क गया हूँ, चल नही सकता
मगर मैं सूर्य हूँ, संध्या से पहले ढल नही सकता

कोई जब रौशनी देगा, तभी हो पाउँगा रौशन
मैं मिटटी का दिया हूँ, खुद तो मैं अब जल नही सकता

जमाने भर को खुशियों देने वाला रो पड़ा आखिर
वो कहता था मेरे दिल में कोई गम पल नही सकता

वो हीरा है मगर सच पूछिये तो है तो पत्थर ही
हज़ारों कोशिशें कर लो, पिघल या गल नही सकता

मैं यह एहसास लेकर, फ़िक्र करना छोड़ देता हूँ
जो होना है, वो होगा ही, कभी वो टल नही सकता।

~ कुंवर बेचैन

About Kunwar Bechain

कुंवर बेचैन, 1 जुलाई 1942 को उत्तर प्रदेश के ग्राम उमरी ज़िला मुरादाबाद में जन्मे कुंवर बहादुर सक्सेना उर्फ क़ुँअर बेचैन का बचपन चंदौसी में बीता। शिक्षा: एम. काम., एम. ए., पीएच. डी.। आपने ग़ाज़ियाबाद के एम एम एच महाविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष के रूप में अध्यापन किया। आज के दौर में आपका नाम सबसे बड़े गीतकारों तथा शायरों में शुमार किया जाता है। आपके मुक्तक, ग़ज़लियात, गीतांश और अशआर रोज़ाना मुशाइरों तथा कवि-सम्मेलनों के संचालन में प्रयोग किए जा रहे हैं। ग़ज़ल के व्याकरण पर आपकी विशेष पकड़ है। गीत, नवगीत और ग़ज़ल जैसी विधा को आपने न केवल साधा है अपितु नई पीढ़ी को इन जटिल विषयों से जोड़ने के लिए हिन्दी साहित्य में महती कार्य भी किया है। 7 गीत संग्रह, 12 ग़ज़ल संग्रह, 2 काव्य संग्रह, एक महाकाव्य तथा एक उपन्यास के अतिरिक्त अनेक पत्र-पत्रिकाओं, वेब पृष्ठों, संपादित ग्रंथों तथा स्मारिकाओं में आपको पढ़ा जा सकता है। गीत का परचम लिए देश-विदेश में भ्रमण करने वाले इस रचनाकार को सुनना अपने आप में एक अनोखा अनुभव है। आपने ग़ज़ल का व्याकरण लिखा और ‘रस्सियाँ पानी की’ नामक संग्रह के माध्यम से ग़ज़ल को अगली पीढ़ी तक पहुँचाने का पुनीत कार्य किया। व्यवहार से सहज, वाणी से मृदु, प्रतिभा से अतुल्य तथा व्यक्तित्व से अनुकरणीय; डॉ. कुंवर बेचैन की शाइरी में जीवन दर्शन के साथ-साथ सकारात्मकता का एक सौम्य सा मिश्रण है। इन रचनाओं में जहाँ एक ओर आधुनिकता और बेतहाशा अंधानुकरण के कारण उत्पन्न घुटन है तो दूसरी ओर संबंधों की ऊष्मा और संवेदना की छुअन भी है। वर्तमान में मंच पर मौजूद सबसे वरिष्ठ रचनाकारों में डॉ. कुंवर बेचैन एक हैं।

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