साथ - साथ - सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

साथ – साथ – सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

तुम सामने होती हो तो
शब्द रुक जाते हैं
तुम औझल होती हो तो
वही शब्द प्रवाह बन जाते हैं

तुम बोलती हो तो
प्रश्न उठते हैं कि क्या बोलूं
तुम बोलते हुए रूक जाती हो तो
अनसुलझे सवाल मेरी उलझन में समा जाते हैं

तुम चहकती हो तो
पूनमी रात का चाँद धवल चांदनी सा फ़ैल जाता है
तुम उदास होती हो तो
सारा उपवन अमावस सा सहम जाता है

तुम खिलखिलाती हो तो कोई मासूम परिंदा
मिट्टू की तरह ऊंचीं उड़ान भरता है
तुम मौन हो जाती हो तो वही परिंदा
अपनी ही कैद में अपनी हर उड़ान भूल जाता है

तुम साथ होती हो तो
हर सफर की दूरियां, नजदीकियों का एहसास देती हैं
तुम दूर हटती हो तो
दिख रही मंजिलें भी आँखों से ओझल हो जाती हैं

तुम रहो साथ मेरे,
बस यही दुआ है मेरी
जो कभी जाने की बात हो
तो वह भी साथ- साथ हो।

About Surinder Kumar Arora

हरियाणा स्थित जगाधरी में जन्मे सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा 32 वर्ष तक दिल्ली में जीव-विज्ञान के प्रवक्ता के रूप में कार्यरत रहने के उपरांत सेवानिवृत हुए हैं तथा वर्तमान में स्वतंत्र रूप से लघुकथा, कहानी, बाल - साहित्य, कविता व सामयिक विषयों पर लेखन में संलग्न हैं। आपकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, यथा “आज़ादी”, “विष-कन्या”, “तीसरा पैग” (सभी लघुकथा संग्रह), “बन्धन-मुक्त तथा अन्य कहानियाँ” (कहानी संग्रह), “मेरे देश की बात” (कविता संग्रह), “बर्थ-डे, नन्हे चाचा का” (बाल-कथा संग्रह) आदि। इसके अतिरिक्त कई पत्र-पत्रिकाओं में भी आपकी रचनाएं निरंतर प्रकाशित होती रही हैं तथा आपने कुछ पुस्तकों का सम्पादन भी किया है। साहित्य-अकादमी (दिल्ली) सहित कई संस्थाओं द्वारा आपकी कई रचनाओं को पुरुस्कृत भी किया गया है। डी - 184 , श्याम पार्क एक्स्टेनशन, साहिबाबाद - 201005 ( ऊ . प्र.) मो.न. 09911127277 (arorask1951@yahoo.com)

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