राही के शेर - बालस्वरूप राही

राही के शेर – बालस्वरूप राही

किस महूरत में दिन निकलता है,
शाम तक सिर्फ हाथ मलता है।

दोस्तों ने जिसे डुबोया हो,
वो जरा देर में संभलता है।

हमने बौनों की जेब में देखी,
नाम जिस चीज़ का सफ़लता है।

तन बदलती थी आत्मा पहले,
आजकल तन उसे बदलता है।

एक धागे का साथ देने को,
मोम का रोम रोम जलता है।

काम चाहे ज़ेहन से चलता हो,
नाम दीवानगी से चलता है।

उस शहर में भी आग की है कमी,
रात दिन जो धुआँ उगलता है।

उसका कुछ तो इलाज़ करवाओ,
उसके व्यवहार में सरलता है।

सर्फ दो चार सुख उठाने को,
आदमी बारहा फिसलता है।

याद आते हैं शेर राही के,
दर्द जब शायरी में ढलता है।

∼ बालस्वरूप राही

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