महाकाली कालिके – मनोहर लाल ‘रत्नम’

महाकाली कालिके–

कपाल कंडः कारिणी, खड़ग खंड धारिणी।
महाकाली कालिके, नमामि भक्त तारिणी॥

मधुकैटप संहार के, निशुम्भ-शुम्भ मारके।
दुष्ट दुर्गम सीस को, धड़ से ही उतार के॥

कष्ट सब निवारिणी, शास्त्र हस्त धारिणी।
महाकाली कालिके, नमामि भक्त तारिणी॥

रक्तबीज को मिटाया, रक्त उसका पी गई।
नेत्र हो गए विशाल, जिव्हा ला हो गई॥

शिव पे चरण धारिणी, काली बन विहारिणी।
महाकाली कालिके, नमामि भक्त तारिणी॥

चण्ड-मुण्ड को चटाक, रूप धरा चण्डिका।
अपने भक्तो को दुलार, नाम लिया अम्बिका॥

मुण्ड-माल कारिणी, शंख को फंकारिणी।
महाकाली कालिके, नमामि भक्त तारिणी॥

सिंह पर सवार होक, नेत्र जब हिला दिया।
इस धरा के दानवों को धुल में मिला दिया॥

सदा ही शुभ विचारिणी, सकल विघ्न टारिणी।
महाकाली कालिके, नमामि भक्त तारिणीं॥

सुपारी, पान, लौंग-भेंट, नारियल के संग में।
श्वेत, रक्त, श्याम वर्ण, भगवती के अंग में॥

‘रत्नम’ सदा निहारिणी, आरी का रक्त चारिणी।
महाकाली कालिके नमामि भक्त तारिणी॥

– मनोहर लाल ‘रत्नम’

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One comment

  1. Is it possible to give translation of the poem…… please