क्रांति गीत – संतोष यादव ‘अर्श’

आ जाओ क्रांति के शहज़ादों,
फिर लाल तराना गाते हैं…

फूलों की शय्या त्याग–त्याग,
हर सुख सुविधा से भाग–भाग,
फिर तलवारों पर चलते हैं,
फिर अंगारों पर सोते हैं,
सावन में रक्त बरसाते हैं!
फिर लाल तराना गाते हैं…

मारो इन चोर लुटेरों को,
काटो इन रिश्वतखोरों को,
लहराव जवानी का परचम,
लाओ परिवर्तन का मौसम,
आओ बंदूक उगाते हैं!
फिर लाल तराना गाते हैं…

मैं बुनकर से कह आया हूँ,
वो कफ़न बुने हम लोगों के,
कह आया हूँ जल्लाद से भी,
फाँसी का तख्ता चमकाओ,
अशफ़ाक भगत सिंह आते हैं!
फिर लाल तराना गाते हैं…

∼ संतोष यादव ‘अर्श’

About Santosh Yadav Arsh

संतोष यादव ‘अर्श’ (जन्म: लखनऊ, उत्तर प्रदेश, भारत) हिन्दी के प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं। ये जितने समर्थ कवि हैं उतने ही समर्थ उपन्यासकार और कहानीकार भी। गीत, नई कविता, छोटी कविता, लंबी कविता यानी कि कविता की कई शैलियों में उनकी सर्जनात्मक प्रतिभा ने अपनी प्रभावशाली अभिव्यक्ति के साथ अपनी सार्थक उपस्थिति रेखांकित की। इसके अतिरक्त उपन्यास, कहानी, संस्मरण, यात्रावृत्तांत, डायरी, निबंध आदि सभी विधाओं में उनका साहित्यिक योगदान बहुमूल्य है।

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