जीवन एक अभिलाषा: तेजपाल सिंह गुलिया

जीवन एक अभिलाषा: तेजपाल सिंह गुलिया

जीवन एक अभिलाषा: तेजपाल सिंह गुलिया – द्रास नदी (Dras River) भारत के लद्दाख़ क्षेत्र के कर्गिल ज़िले में बहने वाली एक नदी है। यह ज़ोजिला दर्रे के समीप माचोई हिमानी में उत्पन्न होती है और खरबू के समीप शिंगो नदी से विलय करती है।

द्रास भारत के लद्दाख़ केन्द्रशासित प्रदेश के करगिल ज़िले में स्थित एक बस्ती है। ३,२३० मीटर (१०,९९० फ़ुट) पर बसा हुआ यह क़स्बा १६,००० से २१,००० फ़ुट के पहाड़ों से घिरा हुआ है। द्रास वादी ज़ोजिला दर्रे के चरणों में है और कश्मीर से लद्दाख़ जाने के लिये यहाँ से गुज़रना पड़ता है, जिस कारणवश इसे ‘लद्दाख़ का द्वार’ भी कहा जाता है।

यह भारत के सबसे ठंडे शहरों में से है और सर्दियों में यहाँ तापमान −४५ °सेन्टिग्रेड तक गिर जाता है और −६० °सेन्टिग्रेड तक मापा गया है। कई स्रोतों के अनुसार साइबेरिया के बाद यह दुनिया का दूसरा सबसे सर्द मानवी बसेरा है।

जीवन एक अभिलाषा: द्रास नदी – कर्गिल ज़िले में बहने वाली नदी

किसकी तुझे परिभाषा दू
सबको तू तरसाती।
कल कल करती, बलखाती
मस्ती में बहे चले जाती।
पहाड़ों को चीर तू
घाटी उनमे बनाती।
कंकड, पत्थर और मिट्टी
अपने मे तू समाती।
धूप पड़ें, तेज बहे
सर्दी में ठिठुर जाती।
लेकिन इस जीवन में
निरंतर बहे चले जाती।।

ना रूकती ना थमती
निरंतर बहे चले जाती।
तेरे किनारे मिलने लोगों की
भीड यहां उमड़ आती।
सर्दी में औड सवेत चादर,
गरमियों में हरियाली जो दिखाती।
निरंतर बह, जाने इस जीवन में
कितनो की ईद तूने मना दी।
कभी धीमी गति, कभी तेज गति
निरंतर बहे चली जाती।
निरंतर बहे चली जाती।।

ठंडी पावन तेरी काया
कल कल करती बह जाती।
धन्य हो तेरा जीवन
सबका मन बहलाती।
किसी को रेत, किसी को जल देकर
पर पयास सभी की बुझाती।
इस जीवन की कुछ शरद व गर्मियां
द्रास नदी किनारे मैने बिता दी।
शुभ दर्शन तेरे, इस जीवन मे
बने सभी तेरे दर्शन अभिलाषी।
द्रास नदी निरंतर बहे चली जाती
निरंतर बहे चली जाती।।

~ “जीवन एक अभिलाषा” poem by तेजपाल सिंह गुलिया

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