चंपा और चमेली कह दूँ - योगेश समदर्शी

चंपा और चमेली कह दूँ – योगेश समदर्शी

जीवन की
सूनी गलियों को कैसे रंग रंगीली कह दूँ
नकली फूलों को मैं कैसे चंपा
और चमेली कह दूँ

हर बगिया में
शूल बचे हैं कलियाँ तो सारी कुम्हलाईं
कैसे कह दूँ सब सुन्दर है जब बगिया सारी मुरझाई
बादल, बरसे बिन पानी के कैसी
अजब पहेली कह दूँ

जीवन के
सारे गुण सुन्दर लुप्त हुए हैं देखो तो
भलमानस के सारे किस्से विलुप्त हुए हैं देखो तो
दुष्कर्मो की नई खबर को कैसे
नई नवेली कह दूँ

बालकोनी में
पड़ी कुर्सियाँ पूछ रहीं है आँगन क्या ?
डबल बैड भी पूछ रहा है खटिया और बिछावन क्या?
नकली कालबैल की धुन को, क्या मैना
की बोली कह दूँ

गाँवों वाले
सारे रिश्ते, शहर गए और हो गए सर
रिश्ते केवल बचे नाम के कहाँ खो गए सब आदर
दो बच्चों से भर गए बँगले, कैसे
उन्हें हवेली कह दूँ

∼ योगेश समदर्शी

About Yogesh Samdarshi

जन्म- १ जुलाई १९७४, जन्म स्थान: ग्राम कलंजरी, मेरठ, उत्तर प्रदेश में। शिक्षा- पत्रकारिता विषय से स्नातक। कार्यक्षेत्र - सामाजिक विषयों पर चर्चा, कविता लेखन, नाटक लेखन, कहानी लेखन, भाषण करना, नाट्य विधा से विशेष लगाव। प्रसिद्ध नाटक कार श्री ललित मोहन थापल्यल जी के सानिध्य में ७ वर्षों तक मंचों पर अभिनय। संप्रति - प्रतिष्ठित समाचार पत्र मेल टुडे में असिसिटेंट ग्राफ़िक एडिटर के पद पर कार्यरत।

Check Also

World Heritage Day Information For Students

World Heritage Day: International Day for Monuments and Sites

World Heritage Day [International Day for Monuments and Sites]: Ancient monuments and buildings in the …