जान है तो जहान है

जान है तो जहान है

एक गाँव मे एक किसान रहता था। उन दिनों गाव पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था। गाँव में सुखा पड़ा था। लोगों को पीने के पानी के लिए भी लाले पड़ गए थे। धरती बंजर हो गई थी। और आसमान से बारिश गिरने के कोई भी आसार नजर नहीं आ रहे थे।

ऐसी परिस्थिति मे गाँव वालो ने गाँव छोड़कर कही दूर जहाँ पानी मिले ऐसी जगह जाने का निर्णय लिया। सभी लोग गाँव छोड़ने की तैयारी करने लगे पर बस वह बूढ़ा किसान गाँव छोड़ने के लिए तैयार नहीं था। सभी ने उन्हें बहुत समझाया पर वह बूढ़ा एक ही बात पे अड़ा रहा “जैसे अच्छे दिन आकर चले गए वैसे ही यह बुरे दिन भी चले जाएंगे। मैं यह गाँव छोड़कर कही नहीं जाऊंगा।”

गाँव वाले भी क्या करते? आखिरकार सबने अपने अपने सामन को बैलगाड़ी मे लादकर पानी की तलाश में निकल पड़े। रास्ते मे बहुत भयानक तूफान आया। उड़ती धूल और तपती धरती में वे बेबस लाचरो की तरह अपने सामान को तितर बितर होता देखते रहे।

एक गाँव वाला बोला “उस बूढ़े की बात मान ली होती तो अच्छा होता”।

इस पर मुखिया बोला “जान है तो जहान है। सब लोग जो सामान मिले उसे अपनी बेलगाड़ी में डाले सही स्थान पर पहुँच कर हम अपने अपने सामान का बटवारा कर लेंगे।”

सभी ने कुछ पल में सामान को बटोर लिया – अब वे फिर पानी की खोज में निकल पड़े। कई दिनों की लंबी मुसाफिरी के बाद वे एक झील के किनारे पहुंचे। सबने पहले ज़ी भर कर पानी पिया। और फिर तम्बू लगाये गए। अब वह उस जगह पर आराम से रहने लगे। कुछ महीनो बाद मुखिया बोले “अब शायद हमारे गाँव मे बारिश हुई होगी – मैं कुछ लोगो के साथ जाकर गाँव की स्थिति देखता हूँ अगर सब सही हुआ तो हम तुम्हे भी वहां बुलालेंगे और अगर अभी तक वहा अकाल हुआ तो…”

एक किसान: तो…

मुखिया: तो इसबार किसी भी तरह उस बूढ़े बाबा को हम यहा बुला लेंगे।

मुखिया के साथ कुछ लोग गाँव की ओर लौट पड़े। गाँव जाकर उन्होंने देखा हर तरफ हरियाली थी। कुवे पानी से भरे थे।

उन्होंने बूढ़े बाबा की तलाश की पर वह कहीं नहीं दिखाई दिए। तभी एक गाँव वाला हांफता हुआ आया और बोला “मुखिया जी मुखिया जी – बरगद के पेड़ के पास एक इंसानी कंकाल पड़ा है”।

सभी लोग वहां गए। जिस पेड़ के नीचे कंकाल पड़ा था उस पेड़ पर ख़ोदकर लिखा था “बुजदिलो मरते दम तक मेंने गाव नही छोड़ा”।

सभी ने मुखिया की ओर देखा। मुखिया बोले “अगर हम भी गाँव नही छोड़ते तो हमारे भी कंकाल यहाँ वहां पड़े होते”।

परिस्थिति को समझना बेहद जरूरी है। परिस्थिति से लाचार होने के बावजूद भी मौंत आने तक डटे रहना समजदारी नहीं है। हम बुजदिल नहीं क्योकि हम परिस्थिति को समझ कर सिर्फ कुछ वख्त के लिए पीछे हटे और पीछे हटने के लिए भी हमें संघर्ष करना पड़ा। बूढ़े बाबा उस संघर्ष से डर गए। और यहीं पड़े रहकर संघर्ष करना उन्हें आसान लगा… नतीजा आज हम सब इस गाव मे मौजूद है ओर वे…।

आगे का वाक्य मुखिया पूरा न कर आँख में आये आँसूवों को पोंछते हुए वे बोले “जंग मर कर नही जीती जाती”।

~ प्रशांत सुभाषचंद्र साळूंके

Check Also

Good Friday

Good Friday Celebrations On Most Solemn Day

Good Friday Celebrations: Celebrating Christian Festival Good Friday – The Friday before Easter is the …