Clever Frog

चालाक मेंढक

एक नदी में एक मोटा – सा, हरे रंग का मेंढक था। मेंढक अपनी जिंदगी से खुश और संतुष्ट था। एक बार दुर्भायवर्ष वह नदी से निकलकर, नर्म – नर्म धुप का मजा लेने के लिए किनारे पर आ बैठा। तभी एक काले कौए ने उसे झपटकर अपनी चोंच में पकड़ लिया।

“वाह!” क्या स्वादिष्ट भोजन हाथ लगा,” मेंढक को देखकर कौए के मुह में पानी आ गया। उसने अपने पंख फैलाए और मेंढक को चोंच में दबाए, वह उड़ चला ऐसी जगह की तलाश में, जहाँ वह चैन से अपने भोजन का मजा ले सके।

बेचार मेंढक! डर के मारे उसका कलेजा मुह को आ रहा था। कौए की चोंच में जकड़ा उड़ा चला जा रहा था आकाश में।

वह जानता था कि उसका अंत निकट है। और यह भी कि अपने सदियों – पुराने चालाक दुश्मन को परास्त करना उसके वश में नही। फिर भी उसने तय किया कि वह अक्ल से काम लेगा और कौए को पता भी नही चलने देगा कि वह कितना डरा हुआ है। फिर हो सकता है, दिमाग में कोई तरकीब ही आ जाए।

कुछ देर उड़ने के बाद, कौआ एक सुनसान, अँधेरी गुफा के मुह पर आकर बैठ गया। फिर आश्वस्त होकर कांय – कांय करते हुए उसने मेंढक को अपने पंजों में जकड़ लिया। लेकिन जैसे ही उसकी नुकीली चोंच मेंढक कि ओर बढ़ी, वैसे ही मेंढक उच्च स्वर में बहुत कर्कशा हंसी हंसने लगा। कौआ हैरान! वह मेंढक को फ़टी – फ़टी आँखों से देखने लगा।

“अरे मेंढक, तू हँसता क्यों है?” मालूम होता है, तू शरीर से ही नही, अक्ल से भी मोटा है। क्या तू जानता नही कि तू मरने वाला है?”

“मै ही नही, तुम भी मरने वाले हो” मेंढक बोला। मेरे प्यारे दोस्त, इस गुफा में एक बहुत ही भयंकर सांप रहता है और शीघ्र ही तुम थाली में परोसे जाओगे!” कौआ सुनकर बहुत घबराया और बिना वक्त गवांए मेंढक को चोंच में दबाकर फिर उड़ चला।

कौआ बहुत ऊँचा उड़ा और आखिर में एक ऊंचे पेड़ के ऊपर जा बैठा। एक बार फिर वह मेंढक को खाने की तैयारी करने लगा और इससे पहले कि वह मेंढक के सिर को अपनी चोंच का निशाना बनाता, मोटा मेंढक फिर जोर से हंस पड़ा। कौआ फिर रुक गया और अपने शिकार को गुस्से से देखने लगा।

“हाँ जी, श्रीमान, यह बेवकूफों की तरह क्यों हंस रहे हो, इस ऊँचे पेड़ पर तुम्हारा दोस्त सांप तो मुझे कहीं दिखाई नही देता।”

“मित्र मेरे, सांप तो यहां कतई नही रहता,” मेंढक बोला। लेकिन मेरी एक और दोस्त, बिल्ली यहाँ जरूर रहती है और उसे कौओं का मॉस तो खासतौर पर पसंद है। तुम्हे अपने भोजन के रूप में यहाँ देखकर तो उसकी बांछे ही खिल जाएंगी!”

कौआ डर के मारे थर – थर काम्पने लगा। असहाय मेंढक को चोच में दबाए, वह एक बार फिर हवा में उड़ चला।

अब तक कौए का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा था। मेंढक को खाने की उसकी कोशिश दो बार बेकार हो चुकी थी। वह जल्दी ही एक दूर – दराज जगह पर जा बैठा – एक ऊंची, पथरीली पहाड़ के एक पुराने और उजाड़ मंदिर पर। मेंढक को पत्थरों पर रखते हुए, कौआ तिरस्कार भरे स्वर में बोला, “अरे मूर्ख मेंढक, जितना चाहे हंस ले, पर यहाँ तेरा कोई भी दोस्त तेरे प्राण बचाने नही आएगा। न सांप, न बिल्ली, यहाँ कोई नही आता! तुझे बचाने वाला यहाँ तो कोई नही है और अब मै तुझे तसल्ली के साथ, मजे से खाऊंगा!”

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लेकिन मेंढक एक बार फिर हंस पड़ा। और इस दफा तो कौए का चेहरा देखने लायक था। हैरानी के मारे उसकी चोंच खुली ही रह गई।

“मौत के फ़रिश्ते तुम्हारे सिर पर मंडरा रहे हैं और तुम हंस रहे हो?” वह गुस्से से तिलमिला उठा।

“मौत के फ़रिश्ते तो तुम्हारे पर भी मंडरा रहे हैं, मेरे दोस्त,” मेंढक ने कंधे उचकाकर जवाब दिया।

“ऐसा है भाई, कि तुम मुझे शिव मंदिर ले आए हो और मै भगवान शिव का अनन्य भक्त हूँ। वे तो कोई भी चमत्कार कर सकते हैं। तुम्हे क्या लगता है कि अगर तुम मुझे खा जाओगे तो क्या वे तुम्हे यहाँ से जीवित जाने देंगे? नही! कभी नही, मेरे दोस्त, कभी नही! तुम्हारा भी सर्वनाश होकर रहेगा…।”

ये शब्द सुनकर कौआ हताश हो गया। मेंढक की बातें उसे इतनी सच्ची लगी कि एक भी पल गवाएं बिना मेंढक पर झपटा और फिर उड़ चला।

थका – मांदा, भूखा – प्यासा, कौआ आखिर उसी नदी के किनारे आ बैठा, जहाँ उसे मेंढक मिला था। उसने मेंढक को नीचे रखा और बोला, “तुम्हे खाने के लिए यही स्थान श्रेष्ठ है। मै तुम्हे जहाँ भी ले गया हूँ, वहीँ पर तुम्हारा कोई न कोई दोस्त निकल आया, जो उल्टा मुझे ही मार डालता। लेकिन जाहिर है, यहाँ तुम्हारी पुकार सुनने वाला कोई नही क्योंकि यहीं से तो तुम्हे इतनी अस्सने से पकड़ा था मैंने। अब जितना हंसना है, हंस ले,” कौए ने ताना दिया। “अब, तू, बस, मरने ही वाला है।”

मेंढक बिल्कुल चुप रहा। फिर वह सिर झुकाकर रोने लगा। “यह सच है कि मेरा यहाँ कोई दोस्त नही है,” वह बोला, “और मै भी मरने के लिए तैयार हूँ। मै बस एक बात कहना चाहता हूँ – मेरी आखिरी इच्छा पूरी की जाए।”

“मै क्यों तुम्हारी कोई भी इच्छा पूरी करूँ?” कौए ने रूखेपन से कहा। “मै भी थका हुआ हूँ, भूखा हूँ।”

“मैंने तुम्हे तीन बार मौत के मुह से निकाला है,” मेंढक रोते – रोते बोला। “कृपा करो, मेरी आखिरी इच्छा पूरी कर दो…,” उसने विनती की, “मरते हुए भी तुम्हे दुआ ही दूंगा।”

“अच्छा, अच्छा, ठीक है,” कौआ अधीर होकर बोला। “जल्दी से अपनी इच्छा बताओ, मेरे पास फिजूल वक्त नही है।”

मेंढक अपनी डबडबाई आँखें उठाकर कौए की ओर देखने लगा। उसकी आवाज कांप रही थी। “मै तुम्हारी तरह बहादुर नही, प्रिय कौए। मै मरने से बहुत डरता हूँ। मेरी प्रार्थना है कि मेरी मृत्यु तत्काल ओर बिना दर्द के हो। तुम्हारी यह बड़ी – सी काली चोंच बहुत मोटी है और तेज भी नही है। मुझे डर है कि इससे जब तुम मेरा हृदय वेधोगे तो मुझे बहुत दर्द होगी। कृपा करने अपनी चोंच गीली करके उसे थोड़ा तेज करलो ताकि मै आसानी से मर सकूँ।”

कौआ कुछ सोचते हुए अपनी छोटी – छोटी काली आँखों से मेंढक की तरफ टकटकी लगाकर देखने लगा। आखिर कंधे उचकाते हुए उसने सोचा, “चलो, अपनी चोंच तेज करने में भला नुक्सान ही क्या है?”

“ठीक है, ठीक है,” उदारता देखते हुए कौआ बोला। “मै अपनी चोंच भाले जैसी तेज बनाकर आता हूँ। इस बीच तुम मेरी यहीं इन्तजार करो।”

मेंढक ने फटाफट सिर हिलाया। ज्यों ही कौआ उड़ा, त्यों ही एक छलांग में ही मेंढक जी नदी के अंदर पहुँच लिए और जब कौआ स्वादिष्ट भोजन के सपने लेते हुए जमीन पर घिस – घिसकर अपनी चोंच तेज कर रहा था, तब मेंढक खूब मजे से पानी में छपछपाते हुए तैरे जा रहा था।

आखिर जब कौए को लगा कि उसकी चोंच काफी तीखी हो गई है तो वह मुड़कर मेंढक को ढूंढने लगा।

“वापस आओ,” कौआ मेंढक को पानी में देखकर चिल्लाया। “मैंने अपनी चोंच को पैना कर लिया है और अब मै तुम्हे खाने के लिए तैयार हूँ।”

नदी के अंदर बैठा मेंढक खिलखिलाकर हंस पड़ा। “मेरे प्यारे कौए ,” उसने चुटकी ले, “अपनी चोंच ही नही, अपनी अक्ल को भी थोड़ा तेज करो।”

भारत की लोक कथाएं ~ शांतिनि गोविंदन्

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