Andar Bahar

अंदर बाहर – भाग 2

अब तक आपने पढ़ा की एक गाँव मे हुई तेज बारिश से बचने के लिए लोगो ने एक मंदिर का सहारा लिया। एक एक करके लोग बढ़ने लगे। तब सब ने निर्णय लिया की जो बहार है उसे बहार ही रहने दो, सभी के मना करने के बावजूद मुखिया ने एक बूढ़े को मंदिर के अंदर लिया, जब एक दूसरी औरत मंदिर मे साहरा लेने आई तब खुदगर्ज वही बूढ़ा मुखिया का विरोध करने लगा। अब आगे…

इस कहानी का पहला भाग यहाँ पढ़िये…

बुढे की बात सून मुखिया गुस्से से आग बबुला हो उठा ओर बोला “केसे स्वार्थी हो तुम सब? अपनी जान बच गई तो, दुसरो का दर्द भूल गये? याद करो तुम भी इसी लाचारी में बाहर थे। अगर मैं तुम सब को अंदर न लेता तो आराम से इस मंदिर में रह सकता था, पर मैंने सब का विचार किया। ये औरत भी अंदर आयेगी.” ऐसा बोल मुखिया ने दरवाजा खोला। दरवाजा खुलते ही ओरत अपने दो बच्चोें को लेकर अंदर आ गई! अब सच में वहा खडा रहना भी मुश्कील था। कुछ देर बाद बुढा तडप उठा, ओर बोला अब तो यहा घुटन सी हो रही है। इस पर वह औरत भी बोली: “हाँ – बैठना तो छोडो खडे रहने के भी लाले पड रहे है”।

मुखिया ने शांती से जवाब दिया “धीरज रखे कुछ ही देर में बारिश रुक जायेगी। तब हम मंदिर से बहार निकलेंगे”।

इस पर एक आदमी ने चीड़ कर कहा “मुखिया, आवाज सुनो पानी के टपकने की आवाज यहाँ तक आ रही है, यह बारिश रुकेगी नही, अब तो किसी एक को बहार निकालना ही पडेगा.”

मुखिया ने आश्चर्य से कहा: “पर हम किसे बाहर निकालेंगे?”

इस पर बुढे ने कहा: “किसे क्या? हम तुम्हे ही बहार निकालेंगे। अगर तुम अंदर रहे तो जरूर किसी न किसी को फिर से अंदर ले लोगे”।

सब एक साथ बोले: “सही बात है.”

इस पर मुखिया ने गुस्से से कहा “तुम ये ठीक नही कर रहे हो, तुम वही गलती कर रहे हो जो सोमगढ के लोगो ने की थी।

एक ने पुछा: कोनसी गलती? सोनगढ की क्या कहानी है?”

इस पर मुखिया ने थोडा रुककर कहा “ऐसी ही एक बारिश में सोनगढ के कुछ निवासियों ने एक झोपडे में सहारा लिया। वह झोपडा एक मनहूस ओरत का था। बाहर तेज बिजलीया चमक रही थी, अंदर के लोगो ने सोचा की अगर वह मनहूस ओरत झोपडे में रहेगी, तो जरूर बिजली झोपडे पे गीरेगी। ओर उन्होने उसे धक्के मार मार कर बहार निकाला, जेसे ही वो ओरत बहार गई, झोपडे पे बिजली गिरी ओर सब राख हो गया। उस ओरत के पुण्य प्रताप से ही वह अब तक बचे थे..। समझे?”

बुढे ने कहा: “ओ पुण्यशाली, हमारा जो होना है होगा। तू बहार जा। ओर सब ने उसे धक्के मार मार कर बहार निकाला। ओर झट से दरवाजा बंध किया”।

मुखिया ने बाहर से जोर जोरो से दरवाजा खटखटाया “अरे मेरी बात सुनो, दरवाजा खोलो। यह तुम अच्छा नही कर रहे। हम सब बच सकते है। मेरी बात सुनो”।

पर अंदर के लोगो ने उसकी एक बात नही मानी। ओरत को कुछ अच्छा नही लगा। उसने कहा “अरे मुखिया को अंदर ले लो, आखिर उसी ने तो हमारी जान बचाई है! अगर कुछ अमंगल हुआ तो?”

ओर ऐसा बोल वह दरवाजा खोलने लगी, तभी बुढे ने उसे रोककर कहा बेवकूफ लड़की बहार बारिश की आवाज सून। पानी अब बहुत बढ गया है, दरवाजा खोलते ही वह मंदिर में भी आ सकता है, ऐसा बोल उस बुढे ने एक ताला जेब से निकालते कहा “घर का दरवाजा खोला ही था की पानी मेरी ओर आते देख में भागा था, सो अच्छा हुआ ताला मेरे पास ही रह गया। अब कोई दरवाजा नही खोलेगा। ओर चाबी मेरे पास रहेगी। जब तक मैं न कहू दरवाजा नही खुलेगा, ओर ए लडकी – तू भी ज्यादा चटर पटर करेगी तो तुझे भी बहार निकाल देंगे.”

बात को दो दिन हो गये..। मंदिर का दरवाजा बाहर से कोई जोरो से खटखटा रहा था। अंदर थी निरव शांतता! अब दरवाजे पे कोई भारी चीज पटकने की आवाज आने लगी। ओर कुछ ही देर में दरवाजा खुल गया! मंदिर में मुखिया के साथ कुछ लोग अंदर दाखील हुए। अंदर पड़ी लाशो को देख मुखिया ने आह भरी, ओर कहा “मुझे लगा था ऐसा ही होगा! जब मुझे बाहर फेका गया मेने लाख कोशिश की उन्हे समजानेकी की भाई दरवाजा खोलो, बारिश रुक गई है! पानी उतर रहा है, अगर हम किनारे किनारे चलकर टील्ला उतर जाये तो सब बच सकते है, अगर वे दरवाजा खोलते तो मैं उन्हे दिखाता की बारिश का नहीं पर मंदिर के गुंबज पर जमा हुआ पानी सिर्फ टपक रहा है!

एक गावंवालो ने कहा: “पर मुझे यह समझ नही आ रहा की ये लोग दम घुटने तक अंदर क्यो रहे? बाहर निकलने का प्रयास क्यो नही किया?”

मुखिया ने कहा: यह ही बात तो मेरे भी समझ में नही आ रही।

अपने दोनो हाथो से मुट्ठी दबाये बुढे की लाश अभी भी कोने में पडी थी!

About Prashant Subhashchandra Salunke

कथाकार / कवी प्रशांत सुभाषचंद्र साळूंके का जन्म गुजरात के वडोदरा शहर में तारीख २९/०९/१९७९ को हुवा. वडोदरा के महाराजा सर सयाजीराव युनिवर्सिटी से स्नातक तक की शिक्षा ग्रहण की. अभी ये वडोदरा के वॉर्ड २२ में भाजपा के अध्यक्ष है, इन्होने सोश्यल मिडिया पे क्रमश कहानी लिखने की एक अनोखी शुरुवात की.. सोश्यल मिडिया पे इनकी क्रमश कहानीयो में सुदामा, कातील हुं में?, कातील हुं में दुबारा?, सुदामा रिटर्न, हवेली, लाचार मां बाप, फिरसे हवेली मे, जन्मदिन, अहेसास, साया, पुण्यशाली, सोच ओर William seabrook के जीवन से प्रेरित कहानी “एक था लेखक” काफी चर्चित रही है. इसके अलवा बहोत सी छोटी छोटी प्रेरणादायी कहानीया भी इन्होने सोश्यलमिडिया पे लिखी है, वडोदरा के कुछ भुले बिसरे जगहो की रूबरू मुलाकात ले कर उसकी रिपोर्ट भी इन्होने सोश्यल मिडिया पे रखी थी, जब ये ६ठी कक्षा में थे तब इनकी कहानी चंपक में प्रकाशित हुई थी, इनकी कहानी “सब पे दया भाव रखो” वडोदरा के एक mk advertisement ने अपनी प्रथम आवृती में प्रकाशित की थी, उसके बाद सुरत के साप्ताहिक वर्तमानपत्र जागृती अभियान में इनकी प्रेरणादायी कहानिया हार्ट्स बिट्स नामक कोलम में प्रकाशित होनी शुरू हुई, वडोदरा के आजाद समाचार में इनकी कहानी हर बुधवार को प्रकाशित होती है, वडोदरा के क्राईम डिविजन मासिक में क्राईम आधारित कहानिया प्रकाशित होती है, 4to40.com पे उनकी अब तक प्रकाशित कहानिया बेटी का भाग्य, सेवा परमो धर्म, आजादी, अफसोस, चमत्कार ऐसे नही होते ओर मेरी लुसी है. लेखन के अलावा ये "आम्ही नाट्य मंच वडोदरा" से भी जुडे है, जिसमें "ते हुं नथी" तथा "नट सम्राट" जेसे नाटको में भी काम किया है, इनका कहेना है "जेसे शिल्पी पत्थर में मूर्ती तलाशता है, वैसे ही एक लेखक अपनी आसपास होने वाली घटनाओ में कहानी तलाशता है", इनका इमेल आईडी है prashbjp22@gmail.com, आप फेसबुक पे भी इनसे जुड सकते है.

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14 comments

  1. Nice story… really amazing

  2. Very nice really good story plot by Prashant Subhashchandra Salunke

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  8. बहुत ही बेहतरीन कहानी

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  10. Kya behetarin kahani… mene dono part padhe. Dono badhiya he.. please writer ka contact number de

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  12. Kya baat he! Maja aa gaya

  13. Dono part badhya he…..

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