देवी: प्रेमचंद की लघुकथा
सड़क पर मोटरों और सवारियों का तांता बन्द हो चुका था। इक्के-दुक्के आदमी नजर आ जाते थे। फ़कीर की आवाज जो पहले नक्कारखाने में तूती की आवाज थी, जब खुले मैदानों की बुलन्द पुकार हो रही थी। एकाएक वह औरत उठी और इधर-उधर चौकन्नी आंखों से देखकर फ़कीर के हाथ में कुछ रख दिया और फिर बहुत धीमे से कुछ कहकर एक तरफ़ चली गई। फ़कीर के हाथ में कागज का एक टुकड़ा नजर आया जिसे वह बार-बार मल रहा था। क्या उस औरत ने यह कागज दिया है?
यह क्या रहस्य है? उसको जानने के कुतूहल से अधीर होकर मैं नीचे आया और फ़कीर के पास जाकर खड़ा हो गया।
मेरी आहट आते ही फ़कीर ने उस कागज के पुर्जे को उंगलियों से दबाकर मुझे दिखाया और पूछा – बाबा, देखो यह क्या चीज है?
मैंने देखा – दस रुपये का नोट था। बोला – दस रुपये का नोट है, कहाँ पाया?
मैंने और कुछ न कहा। उस औरत की तरफ़ दौड़ा जो अब अन्धेरे में बस एक सपना बनकर रह गई थी। वह कई गलियों में होती हुई एक टूटे-फूटे मकान के दरवाजे पर रुकी, ताला खोला और अन्दर चली गई।
रात को कुछ पूछना ठीक न समझकर मैं लौट आया।
रात भर जी उसी तरफ़ लगा रहा। एकदम तड़के फ़िर मैं उस गली में जा पहुंचा। मालूम हुआ, वह एक अनाथ विधवा है। मैंने दरवाजे पर जाकर पुकारा – देवी, मैं तुम्हारे दर्शन करने आया हूँ।
औरत बाहर निकल आई – गरीबी और बेकसी की जिन्दा तस्वीर।
मैंने हिचकते हुए कहा – रात आपने फ़कीर…
देवी ने बात काटते हुए कहा – “अजी, वह क्या बात थी, मुझे वह नोट पड़ा मिल गया था, मेरे किस काम का था।”
मैंने उस देवी के कदमों पर सिर झुका दिया।
~ प्रेमचंद
मुंशी प्रेमचंद की कहानियां
समाज की सोच को सकरात्मक दिशा में ले जाने वाले महानतम महान लेखको में मुंशी प्रेमचन्द का भी नाम आता है। इनके साहित्य और उपन्यास में योगदान को देखते इन्हें “उपन्यास सम्राट” भी कहा जाता है। मुंशी प्रेमचन्द का जन्म 31 जुलाई 1880 को भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी शहर में हुआ था।
इनके पिता का नाम अजायबराय था और इनकी माता का नाम आनंदी देवी था। मुंशी प्रेमचन्द का वास्तविक नाम धनपतराय श्रीवास्तव था लेकिन इन्हें मुंशी प्रेमचन्द और नवाब राय के नाम से ज्यादा जाना जाता है।
बचपन से ही लिखने का शौक रखने वाले प्रेमचन्द एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा विद्वान संपादक थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में उनका योगदान अतुलनीय है। आधुनिक हिंदी कहानी के जनक माने जाने वाले प्रेमचन्द के लेखन की पहली शुरुआत 1901 में शुरू हुआ।
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