पितृ दिवस पर कहानी: बाबूजी

परोपकार – श्री पारसनाथ सरस्वती

मुझे बड़ी निराशा हुई। मैंने एक बार मुड़ कर देखा तो उसके आसुँ बह रहे थे। मैं पशचाताप की आग में जलने लगा। वे कठोर ह्रदय न था व भावुक ह्रदय था। मैंने पास जाकर कहा “मुझे क्षमा करों बाबा जी। मैंने चोरी की झूठ कही थी।”

मेरी आवाज आसुओं में डुब गयी।

“रोते हो मास्टर जी। भला इसमें तुम्हारा क्या अपराध। जब मेरे लड़कों ने ही मुझे घर से निकाल दिया तब दूसरों की क्या शिकायत।”

“अपना अपना भाग्य है बाबू। उसने चुपके से अपने आसूं पोछ लिया।”

“नहीं बाबा जी। मैं बड़ी पापी हूँ। मेरी हिचकी बंध गयी।”

पागल हो गए हो मास्टर जी।

हम बातें करते हुई स्कूल में आ गए। काफी देर तक बैठे हम बाते करते रहे व मुझे सापों के किस्से सुनाते रहे। अंत में वह बोले “कितना ही जहरीला सांप हो मैं उसे हाथ से पकड़ सकता हूँ।”

“तो सांप काटे का मन्त्र भी है आपके पास बाबा जी।”

“मन्त्र तो नहीं हैं मेरे पास परन्तु मैं तो मुँह से चूसकर जहर बाहर निकाल देता हूँ।”

“मुँह से और जहर तुम पर असर नहीं करता।”

बाबा जी ने हँसकर जवाब दिया “असर अवश्य करता है बाबू परन्तु उसके लिये मेरे पास एक दवा है। झोपड़ी में एक काली से बोतल रखी हैं। उसमे एक बूटी का अर्क हैं। जहर चूस कर उसे थूक देता हूँ और अर्क से कुल्ला कर लेता हूँ।”

बाते करते करते बाबाजी फर्श पर लेट गये और तुरन्त सो गये। उनकी नाक बजने लगी। परन्तु मुझे नींद कहाँ। चारपाई पर करवट
बदलते बदलते प्यास लग आई। पानी का घड़ा कमरे के अन्दर था। सांप के डर से एक बार फिर से कलेजा काँप गया। लेकिन यह सोच कर साहस बाँधा कि बाबाजी तो पास ही हैं।

मैं पानी पीने के लिए जैसे हि उठा पैर पर मनो किसी ने जलता हुआ अंगारा रख दिया हो। उसी सांप ने कही से आ कर मेरे पैर पर डँस लिया था।

इस के बाद मैं बेहोश हो गया। जब मैं होश में आया तो धूप फैल रही थी। मेरे आस पास स्कूल के बच्चो का और कुछ किसानों का जमाव था। स्कूल के आस पास जिनके खेत थे वे किसान लोग जमा थे। मेरा सिर घूम रहा था। निर्बलता के कारण उठा नहीं जाता था। पैर में अब भी कुछ जलन हो रही थी।

मैंने किसानों से पूछा “बाबाजी कहाँ है?”

“बाबाजी तो भगवान को प्यारे हो गए। किसान ने जवाब दिया।”

“कैसे क्या हुआ।” मैंने अचकचाकर पुछा।

वही किसान कहने लगा “सुबह जब लड़के स्कूल आ रहे थे तो उनकी लाश झोपड़ी के पास पड़ी मिली। जहर से सारा शरीर नीला पड़ गया था। जीभ सूज कर बाहर निकाल आयी थी। मालूम होता है कि रात में आपको सांप ने काटा था। बाबाजी ने जहर खींच लिया। परन्तु दवा की बोतल झोपड़ी में थी। वहाँ तक जाते जाते जहर अपना काम कर गया।”

बेशक मुझे सांप ने काटा था। लेकिन उनको चाहिए था कि बोतल ले आकर जहर खींचते। मैंने कहा।

“तब तक आप भी मर जाते मास्टरजी। वही किसान बोला।”

मैं फिर बेहोश हो गया।

~ श्री पारसनाथ सरस्वती

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