अब्दाली की लूट - Invasion of Ahmad Shah Abdali

अब्दाली की लूट – Invasion of Ahmad Shah Abdali

अब्दाली मन्नू खां के इस निर्भीक जवाब से बहुत खुश हुआ। उस ने न केवल उसे माफ कर दिया बल्कि ‘फरजंद खां बहादुर रुस्तेमेहिंद‘ की उपाधि भी प्रदान की और उसे लौहार का सूबेदार बना कर लौट गया।

मन्नू खां बहुत कुशल, वीर और साहसी सूबेदार था लेकिन सिखों के प्रति वह बहुत निर्मम और निर्दयी था। सन 1752 में उस की मृत्यु हो गई। तब उस की विधवा मुगलानी बेगम अपने पुत्र, जो अभी वयस्क नहीं हुआ था, की संरक्षिका बन कर पंजाब शासनप्रबंध देखने लगी। इसी बीच सिख प्रबल हो उठे। उन्होंने अमृतसर और कांगड़ा के बीच बहुत बड़े भाग पर अपना अधिकार कर लिया।

इधर पंजाब में अब्दाली, मन्नू खां और सिखों में तिकोना संघर्ष छिड़ा हुआ था, उधर दिल्ली की हालत भी अच्छी नहीं थी। पंजाब की नीति का संचालन अब भी बहुत कुछ दिल्ली होता था, दिल्ली में कई परिवर्तन हो चुके थे। हरम में सैकड़ों सुंदरियों और हिजड़ों की फौज खड़ी करने वाले ऐयाश बादशाह अहमदशाह को दरबारियों ने निकम्मा घोषित कर के सिहासन से उतार दिया व अंधा कर के कैद में डाल दिया था।

अहमदशाह के बाद सन 1754 में आलमगीर द्वितीय बादशाह बना। वह 55 साल का अनुभवहीन दुर्बल बूढा था जिस का सारा जीवन अंधेरे तहखानों की कैद में बीता था। दरबारियों ने उसे कैदखाने से निकाल कर दिल्ली के तख्त पर बैठा दिया। उसे यह भी पता नहीं था कि राज्य किस चिड़िया का नाम है। वह अपने वजीर इमादुल्मुल्क के हाथ की कठपुतली मात्र था।

वजीर बड़ा बेईमान था। उस ने शाही खजाने से अपनी जेबें खूब भरीं। उस का न कोई सिद्धांत था, न कोई ईमान। उस ने उत्तर भारत से मराठों का पत्ता काटने के लिए खूब षड्यंत्र रचे, पर उन की शक्ति बहुत बढ़ीचढ़ी थी। उस ने जब देखा कि वह उन का कुछ नहीं बिगाड़ सकता तो फिर उन की कृपादृष्टि पाने के लिए उन के चरण चूमने लगा। इस वजीर ने एक और निंदनीय काम किया। मीर मन्नू खां की विधवा मुगलानी बेगम के खिलाफ फौज ले कर उस ने लाहौर पर चढ़ाई की, बेगम को पकड़ कर दिल्ली ले आया और उस की बेटी से बलपूर्वक विवाह कर लिया। उस ने बेगम के स्थान पर अदीनाबेग को लाहौर का सूबेदार बनाया जो एकदम धूर्त था, यह दशा थी दिल्ली और पंजाब की।

कश्मीर की दशा भी उन दिनों अच्छी नहीं थी, जब तक शाहजहां जिंदा रहा, तब तक कश्मीर का सितारा चमकता रहा। अकबर, जहांगीर और शाहजहां ने अनेक बार कश्मीर की यात्राएं की थीं। जहांगीर ने तो अपनी अधिकांश गरमियां वहीँ व्यतीत कीं। इन तीनों मुगल बादशाहों ने कश्मीर के व्यापार तथा कलाकौशल की और ध्यान दिया।

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