छत्रपति शिवाजी महाराज के अनमोल विचार छात्रों के लिए

छत्रपति शिवाजी महाराज के अनमोल विचार

छत्रपति शिवाजी महाराज के अनमोल विचार: वीरों की भूमि रही भारत में कई ऐसे वीरों ने जन्म लिया है जिनकी छाप आज तक हमारे समाज पर दिखाई पड़ती है। इन वीरों की वीरता के किस्सों से आज भी बच्चा-बच्चा वाकिफ है। इन्हीं वीरों की वीरगाथाओं के किस्से पढ़ कर हर भारतीय अपने उपर गर्व महसूस करता है कि उसने भारत की धरती पर जन्म लिया है। उन्हीं महान वीरों में से एक वीर थे छत्रपती शिवाजी महाराज। छत्रपति शिवाजी राव महाराज का जन्म 19 फरवरी 1627 को महाराष्ट्र के शिवनेरी गांव में एक मराठा परिवार में हुआ था। उनके पिता क नाम शाहजी व माता का नाम जीजाबाई था।

शिवाजी एक मराठा शासक थे जिन्होंने अपने दम पर एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया था। शिवाजी महाराज जितने बड़े शासक थे उतने ही बड़े योद्धा, बुधिमान, शोर्यवीर और बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। शिवाजी महाराज अपने दुश्मनो को जहां एक ओर पस्त रखने का दम रखते थे वहीं वो एक जनता के बीच एक दयालु शासक भी थे जो अपनी प्रजा के हर दुख-सुख का निवारण करता था। यही कारण है कि आज भी लोग उन्हें किसी भगवान से कम नहीं समझते उनकी पूजा करते हैं।

शिवाजी महाराज भेदभाव, जात-पांत की राजनीति से हमेशा दूर रहते थे। हालांकि, उन पर पक्षपात करने का आरोप भी कई लोगों ने लगाया है किन्तु उन्होंने अपनी नजरों में सभी जाति-समूदायों को सामान समझा था। यही कारण है कि उनकी सेना में कई मुस्लिम सेनापति और सेनिक शामिल थे। शिवाजी महाराज की एक नीति थी कि वो हमेशा स्वतंत्रता के अग्रणी थे उन्हें पराधीनता कतई स्वीकार नहीं थी। इसलिए उन्हें स्वतंत्रता सेनानी भी कहा जाता है। इस वर्ष शिवाजी जंयती 19 फरवरी के दिन मनाई जाएगी

नाम शिवाजी राजे भोसले (छत्रपति शिवाजी महाराज)
जन्म 19 फरवरी, 1630 शिवनेरी दुर्ग, महाराष्ट्र [Shivneri Fort is a 17th-century military fortification located near Junnar in Pune district in Maharashtra, India]
मृत्यु 03 अप्रैल, 1680 रायगढ़ [Raigad is a hill fort situated in the Mahad, Raigad district of Maharashtra, India]
उपलब्धि मराठा साम्राज्य की नींव रखने वाले महान योद्धा व कुशल रणनीतिकार
Shivaji Bhonsle was an Indian warrior king and a member of the Bhonsle Maratha clan. Shivaji carved out an enclave from the declining Adilshahi sultanate of Bijapur that formed the genesis of the Maratha Empire. In 1674, he was formally crowned as the Chhatrapati of his realm at Raigad.

शौर्य और साहस की मूर्ती, भारत के वीर सपूत छत्रपति शिवाजी महाराज एक महान देशभक्त व कुशल प्रशासक थे। जहाँ एक तरफ वे महा पराक्रमी थे वहीँ दूसरी ओर वे अपनी दयालुता के लिए भी जाने जाते थे। युद्ध में उनकी रणनीति का कोई सानी नहीं था, वे अपनी छोटी सी सेना से भी मुग़लों की भारी-भरकम सेना को परास्त कर देते थे।

 

छत्रपति शिवाजी महाराज के अनमोल विचार

  • स्वतंत्रता एक वरदान है, जिसे पाने का अधिकारी हर कोई है।
  • यदि एक पेड़, जोकि इतनी उच्च जीवित सत्ता नहीं है, इतना सहिष्णु और दयालु हो सकता है कि किसी के द्वारा मारे जाने पर भी उसे मीठे आम दे; तो एक राजा होकर, क्या मुझे एक पेड़ से अधिक सहिष्णु और दयालु नहीं होना चाहिए?
  • नारी के सभी अधिकारों में, सबसे महान अधिकार माँ बनने का है।
  • कभी अपना सर मत झुकाओ, हमेशा उसे ऊँचा रखो।
  • भले हर किसी के हाथ में तलवार हो, यह इच्छाशक्ति है जो एक सत्ता स्थापित करती है।
  • वास्तव में, इस्लाम और हिन्दू धर्म अलग-अलग मामले हैं। वे उस सच्चे दिव्य चित्रकार द्वारा रंगों को मिलाने और खाका तैयार करने के लिए प्रयोग किये जाते हैं। यदि यह एक मस्जिद है, तो उसकी याद में ईबादत के लिए आवाज़ दी जाती है। यही यह एक मंदिर है तो सिर्फ उसी के लिए घंटियाँ बजाई जाती हैं।
  • एक छोटा कदम छोटे लक्ष्य पर, बाद मे विशाल लक्ष्य भी हासिल करा देता है।
  • जरुरी नही कि विपत्ति का सामना, दुश्मन के सम्मुख से ही करने मे वीरता हो। वीरता तो विजय मे है।
  • जब हौसले बुलन्द हो, तो पहाङ भी एक मिट्टी का ढेर लगता है।
  • शत्रु को कमजोर न समझो, तो अत्यधिक बलिष्ठ समझ कर डरो भी मत।
  • जब लक्ष्य जीत की हो, तो हासिल करने के लिए कितना भी परिश्रम, कोई भी मूल्य क्यों न हो उसे चुकाना ही पड़ता है।
  • सर्वप्रथम राष्ट्र, फिर गुरु, फिर माता-पिता, फिर परमेश्वर। अतः पहले खुद को नही राष्ट्र को देखना चाहिए।

  • अगर मनुष्य के पास आत्मबल है, तो वो समस्त संसार पर अपने हौसले से विजय पताका लहरा सकता है।
  • जो मनुष्य समय के कुच्रक मे भी पूरी शिद्दत से, अपने कार्यो मे लगा रहता है। उसके लिए समय खुद बदल जाता है।
  • शत्रु चाहे कितना ही बलवान क्यो न हो, उसे अपने इरादों और उत्साह मात्र से भी परास्त किया जा सकता है।
  • एक सफल मनुष्य अपने कर्तव्य की पराकाष्ठा के लिए, समुचित मानव जाति की चुनौती स्वीकार कर लेता है।
  • आत्मबल, सामर्थ्य देता है और सामर्थ्य, विद्या प्रदान करती है। विद्या, स्थिरता प्रदान करती है और स्थिरता, विजय की तरफ ले जाती है।
  • एक पुरुषार्थी भी, एक तेजस्वी विद्वान के सामने झुकता है। क्योंकि पुरुर्षाथ भी विद्या से ही आती है।
  • जो धर्म, सत्य, क्षेष्ठता और परमेश्वर के सामने झुकता है। उसका आदर समस्त संसार करता है।
  • जरूरी नहीं कि मुश्किलों का सामना दुश्मन के सामने ही करने में वीरता हो, वीरता तो विजय में है।
  • जीवन में सिर्फ अच्छे दिन की आशा नही रखनी चाहिए, क्योंकि दिन और रात की तरह अच्छे दिनों को भी बदलना पड़ता है।
  • बदला लेने की भावना मनुष्य को जलाती रहती है, संयम ही प्रतिशोध को काबू करने का एक मात्र उपाय है।
  • अपने आत्मबल को जगाने वाला, खुद को पहचानने वाला, और मानव जाति के कल्याण की सोच रखने वाला, पूरे विश्व पर राज्य कर सकता है।
  • कोई भी कार्य करने से पहले उसका परिणाम सोच लेना हितकर होता है; क्योंकि हमारी आने वाली पीढ़ी उसी का अनुसरण करती है।
  • जो धर्म, सत्य, क्षेष्ठता और परमेश्वर के सामने झुकता है। उसका आदर समस्त संसार करता है।
  • अंगूर को जब तक न पेरो वो मीठी मदिरा नही बनती, वैसे ही मनुष्य जब तक कष्ट मे पिसता नही, तब तक उसके अन्दर की सर्वोत्तम प्रतिभा बाहर नही आती।

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