Lokmanya Bal Gangadhar Tilak Quotes in Hindi बाल गंगाधर तिलक के अनमोल विचार

बाल गंगाधर तिलक के अनमोल विचार विद्यार्थियों के लिए

उपनाम: बाल, लोकमान्य
जन्मस्थल: रत्नागिरी जिला, महाराष्ट्र
मृत्युस्थल: बम्बई, महाराष्ट्र
आन्दोलन: भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम
प्रमुख संगठन: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

बाल गंगाधर तिलक के अनमोल विचार

बाल गंगाधर तिलक (जन्म: 23 जुलाई, 1856 – मृत्यु: 1 अगस्त, 1920) हिन्दुस्तान के एक प्रमुख नेता, समाज सुधारक और स्वतन्त्रता सेनानी थे। ये भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता थे। इन्होंने सबसे पहले ब्रिटिश राज के दौरान पूर्ण स्वराज की माँग उठायी। इनका यह कथन कि “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा” बहुत प्रसिद्ध हुआ। इन्हें आदर से “लोकमान्य” (पूरे संसार में सम्मानित) कहा जाता था। इन्हें हिन्दू राष्ट्रवाद का पिता भी कहा जाता है। (Find more on Wikipedia)

बाल गंगाधर तिलक के अनमोल विचार

  • मनुष्य का प्रमुख लक्ष्य भोजन प्राप्त करना ही नहीं है! एक कौवा भी जीवित रहता है और जूठन पर पलता है।
  • स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है, मैं इसे लेकर ही रहूँगा।
  • यदि हम किसी भी देश के इतिहास को अतीत में जाएं, तो हम अंत में मिथकों और परम्पराओं के काल में पहुंच जाते हैं जो आखिरकार अभेद्य अन्धकार में खो जाता है।
  • ये सच है कि बारिश की कमी के कारण अकाल पड़ता है लेकिन ये भी सच है कि भारत के लोगों में इस बुराई से लड़ने की शक्ति नहीं है।
  • भारत की गरीबी पूरी तरह से वर्तमान शासन की वजह से है।
  • आप केवल कर्म करते जाइए, उसके परिणामों पर ध्यान मत दीजिये।
  • भारत का तब तक खून बहाया जा रहा है जब तक की बस कंकाल ना शेष रह जाये।
  • धर्म और व्यावहारिक जीवन अलग नहीं हैं। सन्यास लेना जीवन का परित्याग करना नहीं है। असली भावना सिर्फ अपने लिए काम करने की बजाए देश को अपना परिवार बना मिलजुल कर काम करना है। इसके बाद का कदम मानवता की सेवा करना है और अगला कदम ईश्वर की सेवा करना है।
  • प्रगति स्वतंत्रता में निहित है। बिना स्वशासन के न औद्योगिक विकास संभव है, न ही राष्ट्र के लिए शैक्षिक योजनाओं की कोई उपयोगिता है… देश की स्वतंत्रता के लिए प्रयत्न करना सामाजिक सुधारों से अधिक महत्वपूर्ण है।
  • कमजोर ना बनें, शक्तिशाली बनें और यह विश्वास रखें की भगवान हमेशा आपके साथ है।
  • यदि हम किसी भी देश के इतिहास को अतीत में जाएं, तो हम अंत में मिथकों और परम्पराओं के काल में पहुंच जाते हैं जो आखिरकार अभेद्य अन्धकार में खो जाता है।
  • भूविज्ञानी पृथ्वी का इतिहास वहां से उठाते हैं जहां से पुरातत्वविद् इसे छोड़ देते हैं, और उसे और भी पुरातनता में ले जाते हैं।
  • आपका लक्ष्य किसी जादू से नहीं पूरा होगा, बल्कि आपको ही अपना लक्ष्य प्राप्त करना पड़ेगा।
  • एक अच्छे अखबार के शब्द अपने आप बोल देते हैं।
  • जीवन एक ताश के खेल की तरह है, सही पत्तों का चयन हमारे हाथ में नहीं है, लेकिन हमारी सफलता निर्धारित करने वाले पत्ते खेलना हमारे हाथ में है।
  • आप मुश्किल समय में खतरों और असफलताओं के डर से बचने का प्रयास मत कीजिए, वे तो निश्चित रूप से आपके मार्ग में आयेंगे ही।
  • “हम हमारे सामने सही रास्ते के प्रकट होने के इंतजार में अपने दिन खर्च करते हैं, लेकिन हम भूल जाते हैं कि रास्ते इंतजार करने के लिए नहीं, बल्कि चलने के लिए बने हैं”।
  • हो सकता है ये भगवान की मर्जी हो कि मैं जिस वजह का प्रतिनिधित्व करता हूँ उसे मेरे आजाद रहने से ज्यादा मेरे पीड़ा में होने से अधिक लाभ मिले।
  • एक बहुत पुरानी कहावत है की भगवान उन्ही की सहायता करता है, जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं।
  • आलसी व्यक्तियों के लिए भगवान अवतार नहीं लेते, वह मेहनती व्यक्तियों के लिए ही अवतरित होते हैं, इसलिए कार्य करना आरम्भ करें।
  • मानव स्वभाव ही ऐसा है कि हम बिना उत्सवों के नहीं रह सकते। उत्सव प्रिय होना मानव स्वभाव है। हमारे त्यौहार होने ही चाहियें।
  • महान उपलब्धियाँ कभी भी आसानी से नहीं मिलतीं और आसानी से मिली उपलब्धियाँ महान नहीं होतीं।
  • यदि भगवान छुआछूत को मानता है तो मैं उसे भगवान नहीं कहूँगा।
  • जब लोहा गरम हो तभी उस पर चोट कीजिये और आपको निश्चय ही सफलता का यश प्राप्त होगा।
  • प्रातः काल में उदय होने के लिए ही सूरज संध्या काल के अंधकार में डूब जाता है और अंधकार में जाए बिना प्रकाश प्राप्त नहीं हो सकता।
  • अगर आप रुके और हर भौंकने वाले कुत्ते पर पत्थर फेंकेंगे तो आप कभी अपने गंतव्य तक नहीं पहुंचेंगे। बेहतर होगा कि हाथ में बिस्कुट रखें और आगे बढ़ते जायें।
  • गर्म हवा के झोंकों में जाए बिना, कष्ट उठाये बिना,पैरों मे छाले पड़े बिना स्वतन्त्रता नहीं मिल सकती। बिना कष्ट के कुछ नहीं मिलता।
  • कर्त्तव्य पथ पर गुलाब-जल नहीं छिड़का जाता है और ना ही उसमे गुलाब उगते हैं।
  • अपने हितों की रक्षा के लिए यदि हम स्वयं जागरूक नहीं होंगे तो दूसरा कोन होगा? हमे इस समय सोना नहीं चाहिये, हमे अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिये।
  • आपके लक्ष्य की पूर्ति स्वर्ग से आये किसी जादू से नहीं हो सकेगी! आपको ही अपना लक्ष्य प्राप्त करना है! कार्य करने और कढोर श्रम करने के दिन यही हैं।

जानते हैं बाल गंगाधर तिलक का नारा ‘स्‍वराज हमारा जन्‍मसिद्ध अधिकार है‘, कैसे चर्चित हुआ

यह घटना तब की है जब देश को आजाद कराने के लिए आंदोलन जोर पकड़ रहा था। अनेक युवा भारत को स्वतंत्र कराने के लिए अपना सर्वस्व समर्पण करने को तैयार थे। दूसरी तरफ अंग्रेज प्रथम विश्व युद्ध में फंसे हुए थे, उन्हें इसमें आगे बढ़ने के लिए मदद चाहिए थी। उस वक्त मुंबई का क्राउन गवर्नर लॉर्ड विलिंग्डन था। लॉर्ड विलिंग्डन ने इस जंग में भारतीयों की सहायता लेने के लिए युद्ध परिषद का आयोजन किया। उसमें अनेक भारतीय नेताओं के साथ बाल गंगाधर तिलक को भी आमंत्रित किया गया।

युद्ध परिषद में कई भारतीय नेताओं ने अंग्रेजों को आश्वासन दिया कि वे विश्व युद्ध में अंग्रेजों की हर संभव मदद करेंगे। सभा में आए कई नेताओं की बात सुनकर विलिंग्डन को आशा थी कि तिलक भी यही कहेंगे। उन्होंने तिलक जी को मंच पर बोलने के लिए आमंत्रित किया। जैसे ही तिलक मंच पर आए, वे बोले, ‘किसी भी बाहरी आक्रमण का प्रतिकार करने के लिए हम भारतीय सदैव सहयोग के लिए तत्पर रहेंगे। लेकिन स्वराज और स्वदेश रक्षा के सवाल पर सरकार को बिलकुल साफ वचन देना होगा।’

स्वराज शब्द सुनते ही विलिंग्डन का चेहरा तमतमा उठा। वह कुर्सी से उठा और बोला, ‘यहां राजनीतिक चर्चा की अनुमति नहीं दी जा सकती। आप हमारी सहायता का आश्वासन दीजिए और बोलिए कि आप हमारे साथ हैं।’ यह सुनकर तिलक बोले, ‘गवर्नर साहब, स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। अगर आप यह शब्द सुनने को तैयार नहीं है, तो मेरे जैसा भारतीय यहां एक क्षण भी नहीं रुक सकता।’ दंग विलिंग्डन बोला, ‘हर समय तुम्हारे दिमाग में स्वराज ही घूमता रहता है?’ तिलक बोले, ‘यह तब तक गूंजता रहेगा, जब तक पूर्ण स्वराज नहीं मिल जाता।’ तिलक की बात, ‘स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’, फिर एक प्रसिद्ध नारा ही बन गया।

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