लो वही हुआ – दिनेश सिंह

लो वही हुआ – दिनेश सिंह

लो वही हुआ जिसका था डर‚
ना रही नदी‚ ना रही लहर।

सूरज की किरण दहाड़ गई
गरमी हर देह उधाड़ गई‚
उठ गया बवंडर‚ धूल हवा में
अपना झंडाा गाड़ गई

गौरैया हांफ रही डर कर‚
ना रही नदी‚ ना रही लहर।

हर ओर उमस के चर्चे हैं‚
बिजली पंखों के खरचे हैं‚
बूढ़े महुए के हाथों से
उड़ रहे हवा में पर्चे हैं‚

चलना साथी लू से बच कर‚
ना रही नदी‚ ना रही लहर।

संकल्प हिमालय सा गलता‚
सारा दिन भट्टी सा जलता‚
मन भरे हुए‚ सब डरे हुए‚
किसकी हिम्मत बाहर हिलता‚

है खड़ा सूर्य सिर के ऊपर‚
ना रही नदी‚ ना रही लहर।

बोझिल रातों के मध्य पहर‚
छपरी से चंद्रकिरण छानकर‚
लिख रही नया नारा कोई‚
इन तपी हुई दीवारों पर‚

क्या बांचूं सब थोथे आखर‚
ना रही नदी ना रही लहर।

~ दिनेश सिंह

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