Hindi Bal Kavita about Eyes आँख - सूर्यकुमार पांडेय

Hindi Bal Kavita about Eyes आँख – सूर्यकुमार पांडेय

कुछ की काली कुछ की भूरी
कुछ की होती नीली आँख
जिसके मन में दुख होता है
उसकी होती गीली आँख।

सबने अपनी आँख फेर ली
सबने उससे मीचीं आँख
गलत काम करने वालों की
रहती हरदम नीची आँख।

आँख गड़ाते चोर–उचक्के
चीज़ों को कर देते पार
पकड़े गये चुराते आँखें
आँख मिलाने से लाचार।

आँख मिचौनी खेल रहे हम
सबसे बचा बचा कर आँख
भैया जी मुझको धमकाते
अक्सर दिखा दिखा कर आँख

आँख तुम्हारी लाल हो गई
उठने में क्यों करते देर
आँख खोल कर काम करो सब
पापा कहते आँख तरेर।

मम्मीं आँख बिछाए रहतीं
जब तक हमें न लेतीं देख
घर भर की आँखों के तारे
हम लाखों में लगते एक।

~ सूर्यकुमार पांडेय

आपको “सूर्यकुमार पांडेय” जी की यह कविता “आँख” कैसी लगी – आप से अनुरोध है की अपने विचार comments के जरिये प्रस्तुत करें। अगर आप को यह कविता अच्छी लगी है तो Share या Like अवश्य करें।

यदि आपके पास Hindi / English में कोई poem, article, story या जानकारी है जो आप हमारे साथ share करना चाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें। हमारी Id है: submission@sh035.global.temp.domains. पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ publish करेंगे। धन्यवाद!

Check Also

BINU DANCE OF BAHAG BIHU

Bohag Bihu Festival Information: Assam Festival Rongali Bihu

Bohag Bihu Festival Information: The Rongali Bihu is the most important among all the three …